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Last Updated : शुक्रवार, 3 जुलाई 2020 (19:14 IST)

नजरिया : अब शिवराज के सामने असंतुष्टों को मनाने की चुनौती

वरिष्ठ पत्रकार कृष्णमोहन झा का नजरिया

नजरिया : अब शिवराज के सामने असंतुष्टों को मनाने की चुनौती - Madhya Pradesh : Shivraj singh chouhan face big challenge after Cabinet,expansion
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान काफी मशक्कत के बाद अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने में कामयाब तो हो गए परंतु 28 नए मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के एक दिन पूर्व उनकी एक टिप्पणी ने कांग्रेस को उन पर निशाना साधने का अवसर उपलब्ध करा दिया।शिवराज सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस से भाजपा में आए उन 22 सिंधिया समर्थक विधायकों को संतुष्ट करने की थी जिनकी बगावत के बिना मध्यप्रदेश की सत्ता में भाजपा की वापसी नामुमकिन थी।
 
ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के 22 विधायकों में से 2 प्रमुख विधायक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह को शिवराज सिंह पहले ही अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर चुके हैं अब शेष 20 विधायकों में से सभी को तो मंत्री बनाना मुख्यमंत्री के लिए संभव नहीं था परंतु उन पर अधिक से अधिक सिंधिया समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करना भी एक ऐसी कठिन चुनौती थी जिससे पार पाने के लिए उन्हें भाजपा के उन वरिष्ठ विधायकों को त्याग करने हेतु मनाना पड़ा जो पहले शिवराज सिंह की सरकार का हिस्सा रह चुके हैं।

पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, रामपाल सिंह, गौरी शंकर बिसेन और संजय पाठक जैसे वरिष्ठ विधायकों को केवल इसलिए मंत्री पद से वंचित  रहना पड़ा क्योंकि सिंधिया खेमे के अधिकाधिक विधायकों को मंत्री पद से नवाजना मुख्यमंत्री ही नहीं भारतीय जनता पार्टी की विवशता बन गया था।
 
मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह के पिछले कार्य काल के दौरान संजय पाठक ने तो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में प्रवेश ही इस शर्त पर किया था कि उन्हें सरकार में मंत्री पद से नवाजा जाएगा।

इनके अलावा भी अनेक ऐसे नाम हैं, जिनके बारे में यह माना जा रहा था कि उन्हें मुख्यमंत्री चौहान से उनकी निकटता के बावजूद उन्हें मन मसोस कर रह जाना पड़ा। अब उन्हें सरकार या संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपकर मनाया जा सकता है परंतु मंत्री पद अर्जित करने में असफल होने का मलाल तो उनके मन में बना ही रहेगा।
इसे एक संयोग ही कहा जा सकता है कि जिस दिन नए मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की उसी दिन शिवराज सरकार के वर्तमान कार्य काल के 100 दिन पूरे हुए परंतु इस शुभ अवसर पर सरकार की उपलब्धियों से अधिक चर्चा इस बात की हो रही हैं कि नए मंत्रियों के नाम तय करने के लिए मुख्यमंत्री चौहान को भोपाल से लेकर नई दिल्ली तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी और इस कठिन कवायद ने मुख्यमंत्री को कितना थका दिया इसका अंदाजा भी मुख्यमंत्री के इस बयान से लगाया जा सकता है कि मंत्रिमंडल गठन अमृत मंथन की तरह होता है जिसमें निकला विष शिव पी जाते हैं।
 
मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यह तंज़ कसने में कोई देर नहीं की कि अब तो उन्हें रोज ही विष पीना पड़ेगा। वैसे इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है कि हमेशा ही भाजपा के सिद्धांतों और नीतियों के प्रति समर्पित रहे अनेक विधायकों के पास मंत्रीपद की योग्यता एवं अनुभव होने के बावजूद उन्हें मंत्री पद से केवल इसलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि मंत्रियों के चयन में इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया की सहमति अपरिहार्य हो चुकी थी।
 
कभी शिवराज मंत्रिमंडल का सदस्य बनने के लिए तीन बार की विधायकी का अनुभव अनिवार्य था परंतु इस बार शिवराज मंत्रिमंडल के तीन सदस्यों ने पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति उनकी वफादारी ही मंत्री पद हासिल करने के लिए उनकी सबसे बड़ी योग्यता बन गई।
बहरहाल, सिंधिया के समर्थक जिन 22 विधायकों ने पूर्व वर्ती कमलनाथ सरकार के दौरान कांग्रेस छोड़कर भाजपा सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त किया था, उनमें से 12 विधायक अब शिवराज मंत्रिमंडल का हिस्सा बन चुके हैं। इनमें भी 6 मंत्री तो कमल नाथ सरकार में भी मंत्री थे। मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने कड़ी मशक्कत के बाद अपने मंत्रिमंडल का विस्तार तो कर लिया है परंतु यह विस्तार भाजपा में ऐसे असंतोष का कारण बन गया है, जिसे शांत कर पाना भी मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं होगा।
 
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने तो अपने असंतोष को व्यक्त करने से भी कोई परहेज नहीं किया। उन्होंने मंत्रिमंडल गठन में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन न रखे जाने का आरोप लगाया है। उधर इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला को मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने से नाराज़ उनके समर्थक भी उग्र विरोध का इजहार करने के लिए सड़कों पर उतर आए। मंत्रिमंडल गठन में महाकौशल की उपेक्षा से भी असंतोष पनपने की आशंकाएं निराधार नहीं है। 
 
पार्टी के पास राज्य की वर्तमान विधानसभा में पिछली तीन विधानसभाओं की भांति इतना विशाल बहुमत भी नहीं है कि मुख्यमंत्री किसी भी वर्ग के असंतोष को नजर अंदाज करने का जोखिम उठा सकें। कोरोना संकट अभी समाप्त नहीं हुआ है। शिवराज सिंह चौहान के पास अब पूरी टीम है वर्तमान में उनकी सरकार के सामने कोरोना संकट पर विजय पाना ही सबसे बड़ी चुनौती है।
राजनीतिक मोर्चे पर मुख्यमंत्री के सामने प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों में यथा स्थिति बनाए रखने की चुनौती है। चुनाव आयोग इन सीटों के लिए सितंबर तक चुनाव करा सकता है। सरकार और पार्टी  दोनों के लिए ये चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं। शिवराज सरकार का भविष्य भी इन चुनावों से जुडा हुआ है।
 
सिंधिया समर्थक जिन 22 विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर संस्था सरकार के पतन में अहम भूमिका निभाई थी उनमें से अधिकांशने गत विधान सभा चुनावों में ग्वालियर चंबल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधान सभा सीटें से जीत हासिल की थी, इसलिए मंत्रिमंडल विस्तार में ग्वालियर चंबल अंचल को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है।
 
मध्यप्रदेश में जिन 24 सीटों के लिए उप चुनाव होना है उन पर कांग्रेस भी नजर टिकाए हुए है और इन रंगीन कल्पनाओं में खोई हुई है कि गत विधान सभा चुनावों की भांति आगामी उपचुनावों में भी इस अंचल की पर्याप्त सीटें जीतकर भाजपा से सत्ता की बागडोर छीनने में सफल हो जाएगी। हालांकि कांग्रेस की इस कल्पना को दिव्य स्वप्न ही माना जा सकता है परंतु गत विधानसभा में भी कांग्रेस ने भाजपा को एकाधिक उपचुनावों में पराजित कर स्तब्ध कर दिया था, इसलिए भाजपा और शिव राज सरकार को अति आत्मविश्वास से बचना होगा। 
 
जिन वरिष्ठ और अनुभवी विधायकों को मंत्री पद से वंचित कर दिया गया है, उनको विश्वास में लेने के लिए उन्हें ऐसी जिम्मेदारियों से नवाजना अब जरूरी हो गया है ताकि वे यह न समझें कि पार्टी के लिए उनके अनुभवों का अब कोई मूल्य नहीं रह गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंत्रिमंडल गठन में अपनी अहमियत साबित कर दी है और अब यह उत्सुकता का विषय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य में शक्ति का दूसरा केंद्र विकसित होने से रोक पाएंगे।
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