57 साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में महापौर का चुनाव हारी भाजपा, सवाल क्या खत्म हो रही 'महल' की सियासत?
भोपाल। मध्यप्रदेश में ग्वालियर नगर निगम के चुनाव परिणाम भाजपा दिग्गजों के लिए खासी परेशानी का सबब बन सकते है। संघ और भाजपा के गढ़ के रूप में देखे जाने वाले ग्वालियर महापौर के पद पर 57 बाद पहली बार कांग्रेस का कब्जा होने जाने को भाजपा दिग्गजों की बड़ी हार के रूप में देखा जा रहा है। ग्वालियर के चुनाव परिणाम कांग्रेस से भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
ग्वालियर में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण ही दिग्गजों के आपसी वर्चस्व की लड़ाई माना जा रहा है। ग्वालियर महापौर के टिकट के लिए आखिरी समय तक जोर आजमाइश चली थी। एक तरफ नरेंद्र सिंह तोमर जी का गुट था, तो वहीं दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने प्रत्याशी को टिकट दिलाने के लिए अड़े रहे। आखिरकार भाजपा संगठन के कहने पर सुमन शर्मा को पार्टी ने अंतिम दिन टिकट दे दिया। बताया गया कि स्थानीय नेताओं के दबाव में आकर सिंधिया की पंसद को दरकिनार कर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की समर्थक सुमन शर्मा को टिकट दिया गया। ग्वालियर महापौर चुनाव के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया, माया सिंह या फिर पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा की पत्नी को टिकट देने के पक्ष में था।
दिग्ग्गज नेताओं की आपसी खींचतान से भाजपा चुनाव में भितरघात का शिकार हो गई। भाजपा उम्मीदवार की हार का अंदाजा उसी वक्त हो गया था जब 6 जुलाई को 50 फीसदी से कम मतदान हुआ था। चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता जो बरसों से टिकट की आस लगाए बैठे थे उनको टिकट ना मिलने पर वह घरों से ही बाहर नहीं निकले जिसका असर वोटिंग के दौरान दिखा और ग्वालियर में प्रदेश में सबसे कम मतदान हुआ।
ग्वालियर के दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार हुए निकाय चुनाव में भाजपा के अंदर खेमेबाजी भी दिखाई देने को मिली। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक दिग्गज नेता और मंत्री सभी अपने-अपने प्रत्याशियों को जीत दर्ज करवाने के लिए सीमित क्षेत्र में प्रचार करते हुए दिखाई दिए। ऐसे में चुनाव के दौरान वह महौल नजर नहीं आया जैसा चुनावों में दिखाई देता है। ग्वालियर में चुनाव के आखिरी दौर में जरूर पार्टी में एकजुटता का संदेश देने के लिए भाजपा दिग्गजों ने एक साथ वोट किया लेकिन वह बूथ कार्यकर्ता में वह उत्साह नहीं भर पाए जिससे कि बूथ कार्यकर्ता वोटिंग के लिए लोगों को प्रेरित कर सके लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी
ग्वालियर में 57 साल बाद कांग्रेस का महापौर बनाने जा रहा है। ग्वालियर में कांग्रेस की जीत कई मायनों में बहुत खास है। ग्वालियर में माधवराव सिंधिया भी कभी कांग्रेस का महापौर नहीं बनवा सके थे। लगभग चार दशक तक कांग्रेस के एकछत्र नेता रहे माधवराव के दौर में भी ग्वालियर में जनसंघ, भाजपा के ही महापौर जीतते रहे। माधवराव सिंधिया के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दौर में 2004, 2009 और 2014 में भी कांग्रेस महापौर के चुनाव में जीत की बाट जोहती ही रह गई। वहीं 2020 में सिंधिया के भाजपा में जाते ही अब ग्वालियर में कांग्रेस की बड़ी जीत हो गई है।
ग्वालियर में भाजपा की हार को सिंधिया घराने की बड़ी हार के तौर पर देखा जा रहा है। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे और उसके बाद ग्वालियर जिले की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में से दो सीटों पर सिंधिया के प्रत्याशी हार गए थे। इनमें से एक सीट तो ग्वालियर पूर्व है जहां खुद सिंधिया का महल है। इस सीट पर ही शोभा सिकरवार के पति सतीश सिकरवार ने जीत दर्ज़ की थी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का 2019 का लोकसभा चुनाव गुना से हारना,उसके बाद उपचुनाव में ग्वालियर में विधानसभा के उपचुनाव में दो सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार होना और अब महापौर चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की हार होना ग्वालियर के साथ पूरे ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया घराने को बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।