भोपाल। “कोई आपके साथ नहीं, कोई मेरे साथ नहीं है। सभी भाजपा के साथ है और सभी भारतीय जनता पार्टी के साथ है। यह कांग्रेस पार्टी नहीं है जो आपका गुट रहे रहेगा और मेरा गुट रहेगा और किसी और का गुट रहेगा। यह सारे के सारे भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता है और जो जिताऊ है उसे जरुर टिकट मिलेगा”। यह बड़ा बयान कांग्रेस से भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विधानसभा चुनाव में अपने समर्थको को टिकट मिलने के मीडिया के सवाल पर दिया।
रविवार को भाजपा कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने पहुंचे केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य के समर्थक इन दिनों बैचेन है। मार्च 2020 में अपने महाराज के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए सिंधिया समर्थक इन दिनों टिकट की आस में ग्वालियर से लेकर भोपाल तक चक्कर लगा रहे है।
क्यों टेंशन में सिंधिया समर्थक?- मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जिन 39 उम्मीदवारों को पहली सूची जारी की है, उसमें सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल होने वाले गोहद विधानसभा सीट से टिकट के प्रबल दावेदार रणवीर जाटव का टिकट कट गया है। पार्टी ने गोहद विधानसभा सीट से अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य को उम्मीदवार बनाया है। दरअसल सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव को 2020 के उपचुनाव में गोहद में कांग्रेस उम्मीदवार मेवाराम जाटव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। रणवीर जाटव वर्तमान में संत रविदास हस्तशिल्प और हथकरघा विकास निगम के अध्यक्ष है और उनको मंत्री का दर्जा हासिल है।
उपचुनाव हारे नेताओं के टिकट पर संशय-रणवीर जाटव के टिकट कटने के बाद अब 2020 के उपचुनाव में हार का सामना करने वाले सिंधिया के अन्य समर्थकों के टिकट पर तलवार लटक गई है। इसमें बड़ा नाम डबरा से सिंधिया की कट्टर समर्थक इमरती देवी का नाम सबसे उपर आता है। रणवीर जाटव का टिकट कटने के बाद इमरती देवी अब टिकट के लिए ग्वालियर से भोपाल तक दौड़ लगा रही है। पिछले दिनों इमरती देवी प्रदेश भाजपा कार्यालय भी पहुंची और पार्टी संगठन के तमाम बड़े नेताओं से मिलकर टिकट की दावेदारी की।
दरअसल सिंधिया समर्थक उन नेताओं के टिकट सबसे ज्यादा खतरे में दिखाई दे रहा है जो उपचुनाव हार गए। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए 22 विधायकों में कई को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। सिंधिया के गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों में से डबरा से इमरती देवी, दिमनी से गिर्राज दंडोतिया, सुमावली से एंदल सिंह कंसाना मंत्री रहते हुए चुनाव हार गए थे। इसके साथ ही ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल, मुरैना से रघुराज सिंह कंषाना, गोहद से रणवीर जाटव, करैरा से जसमंत जाटव भी चुनाव हार गए थे। उपचुनाव में हार का सामना करने वाले यह सभी सिंधिया समर्थक एक बार टिकट की दावेदारी कर रहे थे, ऐसे में रणवीर जाटव का टिकट कटने के बाद उपचुनाव हारे सिंधिया समर्थकों का टिकट खतरे में दिखाई दे रहे है।
2023 चुनाव में सिंधिया चेहरा नहीं?-2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक होने के उनके समर्थक उनको बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रोजेक्ट कर रहे थे। हलांकि चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद राहुल गांधी के सीधे दखल के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। इसी से नाराज होकर मार्च 2020 में सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी ने सिंधिया को राज्यसभा सांसद बनाने के साथ केंद्र में मंत्री भी बनाया। वहीं अब 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने अपने प्रमुख नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी के साथ मैदान में उतार दिया है तब ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब तक कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलने से कई सवाल उठ रहे है। ग्वालियर से ही आने वाले नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का प्रमुख बनाकर पार्टी ने इशारों ही इशारों में सिंधिया को संदेश भी दे दिया है।
सिंधिया समर्थकों की घर वापसी से उठे सवाल?- मध्यप्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पहचान एक ऐसे नेता के तौर पर है जिनके समर्थकों को अपने महाराज पर अटूट विश्वास है, लेकिन अब 2023 के विधानसभा चुनाव के बेला नजदीक आ गई है तब सिंधिया समर्थकों को अपने महाराज पर विश्वास कम होने लगा है। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिंधिया समर्थक नेताओं की घर वापसी का सिलसिला तेज हो गया है। 2020 में सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल होने वाले नेता एक के बाद एक कांग्रेस में वापसी कर रहे है। पिछले दिनों मालवा से आने वाले सिंधिया के कट्टर समर्थक सनवर पटेल, शिवपुरी से आने वाले रघुराज सिंह धाकड़ के साथ शिवपुरी के कोलारस विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार रघुराज सिंह धाकड़ के साथ यादवेंद्र सिंह यादव और बैजनाथ यादव कांग्रेस में वापसी कर चुके है।
ग्वालियर-चंबल में गुटबाजी से उठे सवाल?-वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद पार्टी ग्वालियर-चंबल गुटबाजी से जूझ रही है। ग्वालियर-चंबल में भाजपा नई और पुरानी भाजपा में बंट गई है और आए दिन दोनों ही खेमे आमने सामने दिखाई देते है। बात चाहे पंचायत चुनाव की हो या नगरीय निकाय चुनाव में उम्मीदवारों के चयन की नई भाजपा और पुरानी भाजपा के नेताओं में टकराव साफ देखा गया था। ग्वालियर नगर निगम के महापौर में भाजपा उम्मीदवार के टिकट को फाइनल करने को लेकर ग्वालियर से लेकर भोपाल तक और भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोर अजमाइश देखी गई थी और सबसे आखिरी दौर में टिकट फाइनल हो पाया था। ग्वालियर नगर निगम में महापौर चुनाव में 57 साल बाद भाजपा की हार को भी नई और पुरानी भाजपा की खेमेबाजी का परिणाम बताया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा की महापौर उम्मीदवार को सिंधिया खेमे के मंत्री के क्षेत्र से बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।
इतना ही नहीं पंचायत चुनाव में ग्वालियर के साथ-साथ डबरा और भितरवार में जनपद पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने समर्थकों को बैठाने के लिए महाराज समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी और भाजपा के कई दिग्गज मंत्री आमने सामने आ गए थे। पंचायत चुनाव में दोनों ही गुटों ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए खुलकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था।