मध्यप्रदेश चुनाव में PM मोदी ने आदिवासियों से भगवान राम को क्यों जोड़ा?
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में आदिवासियों को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जहां आदिवासी क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे है वहीं कांग्रेस की ओर से पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी लगातार आदिवासी बाहुल्य जिलों में रैली कर रहे है।
आदिवासियों को रिझाने के लिए बड़ा दांव चलते हुए पीएम मोदी ने रविवार को मध्यप्रदेश में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा पांच दशक तक राज करने वाली कांग्रेस को कभी आदिवासियों की याद नहीं आई जबकि आदिवासी और जनजाति अनंतकाल से भारत में निवास करते आए है। यही वहीं समाज है जिसने भगवान राम को पुरुषोतम राम बना दिया। भाजपा भगवान राम को पुरुषोतम बनाने वाले ऐसे आदिवासी समाज की पुजारी है।
पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने इतने दशकों तक देश में शासन किया और इस दौरान आदिवासी क्षेत्र की सबसे अधिक उपेक्षा की। जब कभी सुविधाओं की बात आती थी तो कांग्रेस कहती थी कि आदिवासी गांव को सबसे अंत में रखा जाए। अब भाजपा सरकार उनकी सुध ले रही है।
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार बैगा, भारिया और सहरिया जैसी पिछड़ी जनजातियों की सुध ली है। इनके विकास के लिए भारत सरकार 15000 करोड रुपए का एक खास मिशन शुरू करने जा रही है। कांग्रेस ने आजादी के बाद सिर्फ एक परिवार का ही गुणगान किया, आदिवासी समाज को कभी उचित स्थान नहीं दिया। अब कांग्रेस की इन गलतियों को भाजपा सुधार रही है। जनजातीय नायक टंट्या मामा हो, या भगवान बिरसा मुंडा हों, उनको उचित सम्मान भाजपा सरकार ने दिया है। 15 नवंबर को देश जनजातीय गौरव दिवस मनाएगा, यह भी भाजपा सरकार की पहल है। मध्यप्रदेश में लाखों साथियों को पेसा एक्ट का लाभ भी मिला है। लगभग 3 लाख परिवारों को वन अधिकार का पट्टा मिला है। यह दिखाता है कि भाजपा आदिवासी सशक्तिकरण के लिए कितनी प्रतिबद्ध है।
मोदी ने राम नाम से आदिवासियों को क्यों जोड़ा?- मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा में अयोध्या में बन रहे भगवान राम के भव्य मंदिर को मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि बता रही है। ऐसे में भगवान राम के नाम से आदिवासी को जोड़ कर पीएम ने बड़ा दांव चल दिया है। दरअसल मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स गेमचेंजर की भूमिका में नजर आ रहा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी, अनुसूचित जातियां (एससी) क़रीब 15.6 प्रतिशत हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।
आदिवासी वोटर जिसके साथ उसकी बनी सरकार-अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के चुनावी इतिहास को देखे तो पाते है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी।
इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
वहीं पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के साथ चला गया था और कांग्रेस ने 47 सीटों में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।