• Webdunia Deals
  1. चुनाव 2024
  2. लोकसभा चुनाव 2024
  3. लोकसभा चुनाव समाचार
  4. Why is Ghulam Nabi Azad hesitating to contest Lok Sabha elections?
Last Updated : गुरुवार, 11 अप्रैल 2024 (17:02 IST)

Lok Sabha चुनाव मैदान में उतरने से क्यों कतरा रहे हैं गुलाम नबी आजाद?

पार्टी ने कर दी है उम्मीदवारी घोषित

Lok Sabha चुनाव मैदान में उतरने से क्यों कतरा रहे हैं गुलाम नबी आजाद? - Why is Ghulam Nabi Azad hesitating to contest Lok Sabha elections?
Lok Sabha Elections 2024 : अपने 47 साल के राजनीतिक करियर में मात्र 3 बार प्रदेश से किस्मत आजमाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और डीपीएपी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) पार्टी द्वारा उनकी अनंतनाग सीट (Anantnag seat) से उम्मीदवारी घोषित किए जाने के बावजूद वे चुनाव मैदान में उतरने से कतरा रहे हैं। जम्मू से प्राप्त समाचार के अनुसार सूत्रों के अनुसार वे विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाकर भाजपा के सहारे मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनने का सपना देख रहे हैं।

 
उन्होंने इसके प्रति संकेत भी दिया है। कहा यही जा रहा है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद अपनी पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद आगामी आम चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, भले ही उनके नाम की घोषणा उनके द्वारा स्थापित पार्टी द्वारा की गई है। आजाद की पार्टी, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी या डीपीएपी ने अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की है।

 
आजाद बोले, मुझे अभी तक यह तय नहीं करना है कि मैं चुनाव लडूंगा या नहीं : पर आजाद ने पत्रकारों से कहा कि मुझे अभी तक यह तय नहीं करना है कि मैं चुनाव लडूंगा या नहीं। मेरी पार्टी ने इसकी घोषणा कर दी है लेकिन मैंने अंतिम फैसला नहीं लिया है। और अगर वे मैदान में उतरते है। तो 2022 में कांग्रेस छोड़ने के बाद से अनंतनाग में चुनाव जम्मू-कश्मीर में उनकी लोकप्रियता की पहली परीक्षा होने की उम्मीद है।
 
अनंतनाग सीट से, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच एक विवादित सीट बन चुकी है, अगर आजाद मैदान में शामिल होते हैं तो त्रिकोणीय मुकाबला हो जाएगा। आजाद, जो जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं, ने मतदाताओं की प्रतिक्रियाएं जानने के लिए पहले कई सार्वजनिक बैठकें की थीं। उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कह रहे हैं। मेरी संसद में रहने की मांग है। लेकिन ऐसी आवाजें भी हैं जो चाहती हैं कि मैं विधानसभा चुनाव लडूं।

 
गुलाम नबी आजाद कई सालों तक राज्यसभा सदस्य रहे : जानकारी के लिए अभी तक राज्य से मात्र एक बार विधानसभा का चुनाव जीत पाने वाले गुलाम नबी आजाद कई सालों तक राज्यसभा का सदस्य रहे हैं। अपने 47 साल के राजनीतिक करियर में उन्होंने राज्य में मात्र 3 बार ही किस्मत आजमाई थी। हालांकि 1977 में पहली बार जमानत जब्त करवाने वाले गुलाम नबी आजाद ने 30 सालों के बाद वोट पाने का रिकॉर्ड तो बनाया था लेकिन अब सवाल यह है कि क्या वे अब कश्मीर से लोकसभा चुनाव में अगर किस्मत आजमाते हैं तो वे जीत सकेंगें या नहीं क्योंकि एक बार 2014 में वे लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं।
 
वैसे 1977 में उन्होंने अपने गृह जिले डोडा से विधानसभा चुनाव जीतने की कोशिश में मैदान में छलांग मारी थी मगर वे उसमें कामयाब नहीं हो पाए थे। फिर वे केंद्रीय राजनीति की ओर ऐसे गए कि पीछे मुढ़ कर उन्होंने कभी नहीं देखा। यहां तक की उन्होंने कभी लोकसभा का चुनाव भी लड़ने की नहीं सोची। फिर गुलाम नबी आजाद ने 27 अप्रैल 2006 को उस मिथ्य को तोड़ा था जो उनके प्रति कहा जाता था कि वे राज्य से कोई चुनाव नहीं जीत सकते।

 
अपने गृह कस्बे से चुनाव जीतना उनका एक सपना था : अपने गृह कस्बे से चुनाव जीतना उनका एक सपना था। वह 27 अप्रैल 2006 को पूरा हुआ था। इस सपने के पूरा होने की कई खास बातें भी थीं और कई रिकॉर्ड भी। अगर 30 साल पहले इसी चुनाव मैदान में आजाद की जमानत जब्त हो गई थी तो अब वे एक नए रिकॉर्ड से जीत दर्ज कर पाए थे।
 
तब गुलाम नबी आजाद ने 58515 मतों की जीत के अंतर से यह चुनाव जीता था। यह अपने आपमें एक रिकॉर्ड था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में अभी तक किसी भी नेता या मुख्यमंत्री पद के दावेदार किसी उम्मीदवार को इतनी संख्या में वोट नहीं मिले थे। अभी तक का रिकॉर्ड पूर्व मुख्यमंत्री शेख मुहम्मद अब्दुल्ला का रहा था जिन्होंने 1977 के विधानसभा चुनाव में गंदरबल सीट से चुनाव जीता तो था लेकिन जीत का अंतर 26162 ही था।
 
उधमपुर संसदीय क्षेत्र में 28 से लेकर 71 साल तक के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला : जैसे-जैसे जम्मू-कश्मीर में उधमपुर संसदीय सीट के लिए चुनावी लड़ाई तेज होती जा रही है, इस प्रतिष्ठित पद के लिए दावेदारी कर रहे उम्मीदवारों के बीच एक दिलचस्प उम्र का अंतर उभरकर सामने आ रहा है। 12 दावेदारों में से 28 वर्षीय अमित कुमार सबसे कम उम्र के दावेदार हैं जबकि 71 वर्षीय जीएम सरूरी चुनावी मैदान में अनुभवी दिग्गजों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
 
5 उम्मीदवार 40 वर्ष से कम उम्र के : उम्मीदवारों का विविध स्पेक्ट्रम राजनीतिक परिदृश्य में एक पीढ़ीगत बदलाव को दर्शाता है जिसमें 5 उम्मीदवार 40 वर्ष से कम उम्र के हैं और इतनी ही संख्या में 50 वर्ष से अधिक उम्र के उम्मीदवार हैं। 28 साल की उम्र में अमित कुमार का युवा जोश जीएम सरूरी के अनुभवी अनुभव के बिल्कुल विपरीत है जिनकी 71 साल की उम्र दशकों की राजनीतिक व्यस्तता का प्रतीक है।
 
दावेदारों में उल्लेखनीय उम्मीदवारों में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले 71 वर्षीय गुलाम मोहम्मद सरूरी शामिल हैं, उनके बाद 67 वर्षीय भाजपा उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र सिंह और 65 वर्षीय कांग्रेस के चौधरी लाल सिंह शामिल हैं। हालांकि, युवा ब्रिगेड को कम नहीं आंका जाना चाहिए, जिसमें बहुजन समाज पार्टी के अमित कुमार मात्र 28 साल की उम्र में नेतृत्व कर रहे हैं।
 
इसके अतिरिक्त स्वतंत्र उम्मीदवार स्वर्णवीर सिंह जराल, उम्र 30 वर्ष, और एकम सनातन भारत दल के उम्मीदवार मनोज कुमार, उम्र 32 वर्ष, चुनावी क्षेत्र में एक नया दृष्टिकोण लाते हैं। मिश्रण में अन्य उम्मीदवारों में स्वतंत्र दावेदार 36 वर्षीय मेहराज दीन और 37 वर्षीय सचिन गुप्ता शामिल हैं।

 
मोहम्मद अली गुज्जर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं, उनकी उम्र 43 वर्ष है जबकि डॉ. पंकज शर्मा और राजेश मनचंदा क्रमशः 44 और 56 वर्ष की उम्र में 40 के दशक का प्रतिनिधित्व करते हैं। जम्मू और कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के उम्मीदवार बलवान सिंह, उम्र 57 वर्ष, उधमपुर संसदीय सीट के लिए दावेदारों की एक विस्तृत श्रृंखला में शामिल हैं।
 
उधमपुर संसदीय क्षेत्र में 3 करोड़पतियों के बीच है मुकाबला : उधमपुर संसदीय क्षेत्र में 3 करोड़पतियों के बीच ही सही मायने में मुकाबला है। केंद्रीय मंत्री और उधमपुर-कठुआ-डोडा लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र सिंह पिछले एक दशक में संपत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ सबसे धनी उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं।
 
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) से जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री गुलाम मोहम्मद सरूरी और कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन कर रहे इंडिया ब्लाक (नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को मिलाकर) से पूर्व सांसद चौधरी लाल सिंह के पास भी पर्याप्त संसाधन हैं, हालांकि वे सिंह से संपत्ति के मामले में बहुत पीछे हैं।
 
जितेंद्र सिंह के वित्तीय पोर्टफोलियो में उल्लेखनीय वृद्धि : केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के वित्तीय पोर्टफोलियो में पिछले एक दशक में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। उनकी संपत्ति 2014 में 3.19 करोड़ रुपए से बढ़कर इस साल लगभग 8 करोड़ रुपए हो गई है। इस संपत्ति में 3.33 करोड़ रुपए से अधिक की चल संपत्ति और 7.04 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति शामिल है। उनके जीवनसाथी की संपत्ति में वृद्धि देखी गई है, 2024 में चल और अचल संपत्ति का मूल्य 1.64 करोड़ रुपए था। उनकी संयुक्त वित्तीय ताकत ने इस वृद्धि में योगदान दिया है।
 
डॉ. सिंह की वार्षिक आय में भी लगातार वृद्धि देखी गई है, जो 2013-2014 में 8 लाख रुपए से बढ़कर 2022-23 में 33 लाख रुपए हो गई है। चल संपत्ति के मामले में सिंह के पास 3.33 करोड़ रुपए हैं जबकि उनकी पत्नी के पास 88.88 लाख रुपए हैं। वे अपने बैंक खातों और सावधि जमाओं में पर्याप्त शेष भी बनाए रखते हैं। 
इसके विपरीत, उनके प्रतिद्वंद्वी, इंडिया ब्लाक के चौधरी लाल सिंह (पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री) और डीपीएपी का प्रतिनिधित्व करने वाले गुलाम मोहम्मद सरूरी (पूर्व मंत्री), हालांकि उतने समृद्ध नहीं हैं, फिर भी उनके पास पर्याप्त संसाधन हैं।
 
दिलचस्प बात यह है कि जहां डॉ. सिंह और सरूरी ने किसी भी लंबित पुलिस मामले के बिना साफ रिकॉर्ड बनाए रखा है, वहीं चौधरी लाल सिंह ने अपने रिकॉर्ड में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच के तहत चल रहे एक मामले का उल्लेख किया है। डीपीएपी का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व मंत्री गुलाम मोहम्मद सरूरी ने 5 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की है जबकि उनकी पत्नी के पास भी महत्वपूर्ण सोने के आभूषण हैं।
 
सरूरी, जो पहले उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन सरकार में मंत्री थे, लेकिन पिछले साल गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली डीपीएपी में शामिल हो गए, उनकी वार्षिक आय 7.55 लाख रुपए है, मुख्य रूप से उनकी पेंशन से। उनकी पत्नी सेवानिवृत्त सरकारी शिक्षिका हैं जिनके पास काफी संपत्ति है।
 
कांग्रेस कांग्रेस के चौधरी लाल सिंह ने 2013-14 में 11.41 लाख रुपए की वार्षिक आय अर्जित की, हालांकि उनकी हालिया घोषणा में गिरावट देखी गई है। उन्होंने 2022-23 में 4.55 लाख रुपए की आय घोषित की। उनकी पत्नी, जो एक पूर्व विधायक भी हैं, को 2022-23 की घोषणा के अनुसार 16.74 लाख रुपए की वार्षिक आय प्राप्त होती है। वह अपनी आय का स्रोत एक विधायक के रूप में पेंशन, बचत से ब्याज और एक शैक्षिक ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में वेतन के रूप में दिखाती हैं।
 
चौधरी के खिलाफ किसी भी थाने में कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। हालांकि, आरबी एजुकेशन ट्रस्ट मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज धनशोधन निवारण मामले के तहत उनकी जांच की गई है। तरल संपत्ति के मामले में, चौधरी के पास 45,000 रुपए नकद हैं, जबकि उनकी पत्नी के पास 40,000 रुपए हैं। उनके पास कई बैंक खातों में क्रमशः 26.53 करोड़ रुपए और 73.60 लाख रुपए का बैलेंस भी है। 
 
Edited by: Ravindra Gupta
ये भी पढ़ें
Lok Sabha Elections : भाजपा को भारी पड़ेगा चुनाव में लद्दाख के इस आंदोलन को दबाना