अब की बार वोटिंग परसेंट पर घमासान, जानें क्यों फॉर्म 17C को सार्वजनिक करने की हो रही मांग?
लोकसभा चुनाव अब अंतिम दौर में है। सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव में अब अंतिम दो दौर का मतदान बाकी है। जैसे-जैसे मतगणना की तारीख (4 जून) करीब आती जा रही है वैसे-वैसे वोटिंग के आंकड़ों में गड़बड़ी के आरोप को लेकर विपक्ष के तेवर तीखे होते जा रहे है। वहीं पूरा मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में वोटिंग प्रतिशत के आंकड़ों में हेरफेर होने का आरोप लगाया गया है और मांग की गई कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करने का आदेश दे। इसके साथ संस्था का दावा है कि चुनाव आयोग की ओर से जारी शुरुआती डेटा और फाइनल डेटा में 5 फीसदी का अंतर है।
वोटिंग परसेंट पर क्यों मचा घमासान?- देश में सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव में अब तक पांच चरण की वोटिंग हो चुकी है। 2019 की तुलना में इस बार जहां हर चरण वोटिंग प्रतिशत कम रहा है। वहीं वोटिंग के कई दिनों बाद चुनाव आयोग की ओर से वोटिंग के फाइनल आंकड़े जारी करने को लेकर सवाल उठ रहे है। चुनाव आयोग ने पहले चरण की वोटिंग प्रतिशत का फाइनल डेटा 11 दिन बाद जारी किया। इसके बाद चुनाव आयोग ने दूसरे चरण की वोटिंग के बाद वोटिंग प्रतिशत के फाइनल आंकड़े चार दिन बाद जारी किए।
19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग वाले दिन शाम 7.55 बजे चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि शाम 7 बजे तक 102 सीटों पर 60% से ज्यादा वोटिंग हुई। वहीं 26 अप्रैल को दूसरे चरण की वोटिंग वाले दिन रात 9 बजे चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज जारी की, इसमें बताया कि दूसरे चरण में 60.96% वोटिंग हुई। इसके बाद 30 अप्रैल को चुनाव आयोग ने पहले चरण और दूसरे चरण के वोटिंग प्रतिशत का फाइनल डेटा जारी किया। इसमें बताया कि पहले चरण में 66.14% और दूसरे चरण में 66.71% वोटिंग हुई। इस तरह चुनाव आयोग ने तीसरे और चौथे चरण की वोटिंग का फाइनल आंकड़ा चार दिन बाद जारी किया, इसी को लेकर अब सवाल उठ रहे है।
चुनाव आयोग पर हमलावर कांग्रेस-चुनाव आयोग की ओर से जारी वोटिंग परसेंट के अंतिम आंकड़ों को लेकर अब कांग्रेस हमलावर है। कांग्रेस के दिग्गज नेता और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल उठाते हुए कहा कि देश में वोटिंग के बाद मतदान प्रतिशत के बढ़ने का मामला गंभीर है।
चार चरणों के चुनाव के बाद लगातार मतदान प्रतिशत के आंकड़ें बढ़ते गए और क़रीब 1 करोड़ वोट बढ़ गए। ये बात लोगों के मन में संशय पैदा करती है और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर सवाल खड़े करती है। ADR ने भी इस मामले को उठाया है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगते हुए कहा है कि- ऐसा कैसे संभव है? चुनाव आयोग को इस मामले पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। हम बार-बार कह रहे हैं कि ये चुनाव देश में लोकतंत्र और संविधान बचाने का चुनाव है और हम इसे बचाने के लिए लड़ते रहेंगे।
वही मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी वोटिंग परसेंट को लेकर सवाल उठाए है। कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर लिखा कि "देश में चल रहे लोक सभा चुनाव में रियल टाइम मतदान और बाद में निर्वाचन आयोग द्वारा जारी संशोधित मतदान के आंकड़ों में अब तक 1.07 करोड़ वोटों की वृद्धि हुई है। रियल टाइम और संशोधित आंकड़ों में वोटों की इतनी बड़ी वृद्धि अभूतपूर्व एवं चौंकाने वाली है। मैं माननीय निर्वाचन आयोग से आग्रह करता हूँ कि वह तत्काल स्थिति को स्पष्ट करे। चुनाव प्रक्रिया स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने के साथ पारदर्शी भी होनी चाहिए। पारदर्शिता के अभाव में कई बार सही प्रक्रिया भी ग़लत दिखाई देने लगती है। माननीय निर्वाचन आयोग को सभी भ्रम और शंका दूर करने के लिए सामने आना चाहिए और स्पष्ट बताना चाहिए Paul आख़िर वोटिंग के आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर कैसे आया और इसकी क्या वजह है?"
फॉर्म 17C क्या है, जिसको सार्वजनिक करने की मांग?- चुनाव आयोग जो भारत में कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के तहत चुनाव प्रक्रिया का संचालन करता है, वह वोटिंग के दिन प्रत्येक पोलिंग बूथ पर दो प्रकार के फॉर्म उपलब्ध कराता है, जिनमें वोटरों का डेटा होता है। इसमें एक होता है फॉर्म 17A और दूसरा होता है फॉर्म 17C।
फॉर्म 17A में पोलिंग ऑफिसर पोलिंग बूथ पर वोट डालने आने वाले हरेक वोटर की डिटेल दर्ज करता है, जबकि, फॉर्म 17C में मतदान खत्म होने के बाद पोलिंग बूथ पर ही वोटर टर्नआउट का डेटा दर्ज किया जाता है।फॉर्म 17C में एक बूथ पर कुल रजिस्टर्ड वोटर्स और वोट देने वाले वोटर्स का डेटा होता है. इसी से पता चलता है कि पोलिंग बूथ पर कितने प्रतिशत वोटिंग हुई।फॉर्म 17C पर प्रत्याशियों की ओर से बनाए गए पोलिंग एजेंट के साइन होते है और फॉर्म 17C की एक कॉपी हर उम्मीदवार के पोलिंग एजेंट को भी दी जाती है। चुनाव के दौरान धांधली और EVM से छेड़छाड़ रोकने के लिए फॉर्म 17C जरूरी होता है। फॉर्म 17C के दो भाग होते हैं. पहले भाग में तो वोटर टर्नआउट का डेटा भरा जाता है. जबकि, दूसरे भाग में काउंटिंग के दिन रिजल्ट भरा जाता है।
ऐसे में अब जब लोकसभा चुनाव की मतगणना में 10 दिन का समय ही शेष बचा है औ वोटिंग परसेंट में गडबड़ी को लेकर जिस तरह विपक्ष हमलावर है इससे साफ है कि चुनाव परिणामों के बाद इस बार ईवीएम पर सवाल उठने के साथ वोटिंह परसेंट पर भी सियासी बखेड़ा खड़ा हो सकता है।