Hajipur Lok Sabha : तो हाजीपुर में होगा चाचा और भतीजे का मुकाबला, क्या I.N.D.I.A में शामिल होंगे पशुपति पारस
विरासत को लेकर फिर दिखेगी जंग
Lok Sabha Elections 2024 : एनडीए ने बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए अपने सहयोगी दलों से सीटों का बंटवारा कर लिया। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 5 सीटें दी गईं, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (पशुपति पारस गुट) को एक भी सीट नहीं दी गई है। अब बिहार में चाचा और भतीजा आमने सामने होंगे। सियासी गलियारों में पशुपति पारस के अगले कदम को लेकर चर्चा तेज हो गई है। क्या पशुपति पारस इंडिया गठबंधन का दामन थाम सकते हैं।
घोषणा के बाद ही अगला कदम : राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के परशु पारस पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि वे घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। चिराग पासवान अपने पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान की सीट हाजीपुर से मैदान में उतरेंगे। चिराग पासवान ने कहा कि पार्टी के द्वारा जो मुझे जानकारी मिल रही है तो कहीं ना कहीं मैं हाजीपुर से चुनाव लड़ूंगा।
पशुपति पहले ही ऐलान कर चुके थे कि वे भी हाजीपुर से ही लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। पशुपति पारस ने कहा था कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी पार्टी राजग का छोटा हिस्सा है। इसलिए भाजपा से आग्रह है कि मेरी दावेदारी पर विचार किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी के तीनों सांसद चुनाव के लिए तैयारी कर रहे हैं और वे खुद भी हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे। माना जा रहा है कि पारस राजद के संपर्क में हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक कल सुबह पशुपति पारस प्रेस कॉन्फेंस कर सकते हैं।
2019 में चिराग ने लगाया था जोर : 2019 में यह सीट जीतने वाले पशुपति कुमार पारस ने भी हाजीपुर बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। चिराग हाजीपुर सीट को लेकर भाजपा की ओर देख रहे थे और पशुपति यह कहते हुए इस पर अपनी दांत किटकिटाए हुए थे कि उनके बड़े भाई रामविलास पासवान ने जीते जी यह सीट उन्हें सौंपी थी।
राज्यपाल और मंत्री पद का ऑफर : राजनीतिक गलियारों में पहले यह चर्चा थी कि पशुपति कुमार पारस को हाजीपुर सीट छोड़ने के बदले राज्यपाल पद का ऑफर दिया गया है और उनके भतीजे प्रिंस कुमार पासवान को बिहार की सरकार में मंत्री पद देने की पेशकश की गई थी।
भाजपा नहीं खोल पाई खाता : हाजीपुर सीट पर कुल 9 बार लोकसभा सांसद रहे रामविलास पासवान ज्यादातर इसी सीट से चुनाव जीतते रहे हैं। दो बार तो उन्होंने यहां से जीत का रिकॉर्ड भी बनाया। इस सीट खूबी यह भी है कि भाजपा अभी तक यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। 1957 के लोकसभा चुनाव में यह सीट अस्तित्व में आई थी। उस समय यहां से एक साथ 2 सांसद चुने जाते थे। एजेंसियां Edited By : Sudhir Sharma