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Last Updated : गुरुवार, 13 जनवरी 2022 (15:01 IST)

लोहड़ी पर्व की 10 दिलचस्प बातें : Lohri festival

लोहड़ी पर्व की 10 दिलचस्प बातें : Lohri festival - Lohri Festival 2022
Lohri Festival 2022
लोहड़ी का उत्सव पंजाब और हरियाणा में खासतौर पर मनाया जाता है। इस बार लोहड़ी का उत्सव 13 जनवरी 2022 की रात को मनाया जाएगा। आओ जानते हैं लोहड़ी पर्व की 10 दिलचस्प बातें।

 
 
1. कब मनाते हैं लोहड़ी : लोहड़ी उत्सव पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है।
 
2. लोहड़ी को पहले कहा जाता था तिलोड़ी : लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। पंजाब के कई इलाकों में इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।
 
3. लोहड़ी का शाब्दिक अर्थ : ल अर्थात लकड़ी, ओह या गोहा अर्थात सूखे उपले, ड़ी अर्थात रेवड़ी = लोहड़ी। लोहड़ी में लकड़ी, सूखे उपले और रेवड़ी को आग में डाला जाता है। रेवड़ी को खाया भी जाता है।
 
4. सती माता की याद में मनाया जाता है यह पर्व : पौराणिक मान्यता अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है।  उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है। इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है। साथ ही जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है।
 
5. ऐसे मनाते हैं लोहड़ी : लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।
Lohri 2022
6. बहुत पहले से ही शुरु हो जाता है यह त्योहार : गांवों में पौष मास के पूर्व से ही लड़के-लड़कियां लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले एकत्रित करते हैं। इसी से मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। सभी लोग अपने अपने काम से निपटकर अग्नि की परिक्रमा करते हैं और अग्नि को रेवड़ी अर्पित करते हैं। बाद में प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को रेवड़ी बांटी जाती हैं। घर लौटते समय लोहड़ी में से 2-4 दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।
 
7. महामाई : नव विवाहित लड़के या जिन्हें पुत्र होता है उनके घर से पैसे लेकर अपने क्षेत्र में रेवड़ी बांटते हैं ये काम बच्चे करते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे कुछ दिन पूर्व बालक बालिकाएं मोहमाया या महामाई का चंदा मांगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में उपयोग में लाते हैं।
 
8. लोहड़ी व्याहना : कहते हैं कि कुछ लड़के दूसरे मुहल्लों में जाकर 'लोहड़ी' से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। इसे 'लोहड़ी व्याहना' कहलाता है। कई बार इस कार्य में छीना झपटी और झगड़े भी होते हैं।
 
9. विशेष पकवान : लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।
 
10. दुल्ला भट्टी : लोहड़ी का त्योहार दुल्ला भट्टी से भी जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि अकबर के काल में पंजाब की लड़कियों को संदर बार में बल पूर्वक गुलामी के लिए अमीर मुस्लिम लोगों को बेच जाता था। जब ये बात दुल्ला भाट्टी को पता चलती तो उसने एक योजना के तहत सभी लड़कियों को केवल मुक्त करवाया बल्कि उनका विवाह भी हिन्दू लड़कों से करवाया। दल बार पकिस्तान में स्थित हैं।