जापान के मियाको ओकिनावा द्वीप के लोग यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से सहमे हुए हैं। उन्हें लगता है कि चीन के साथ उनकी तनातनी कहीं जंग में ना बदल जाये और ऐसा हुआ तो बमों की बारिश उनके द्वीप पर होगी।
साइहान नाकाजातो चाहते हैं कि उनके खरबूजों के बाग के बगल में खड़ा मिसाइल ट्रक वहां से चला जाये। हालांकि मियाको द्वीप पर रहने वाले कम ही लोग चाहेंगे कि जापान की सेना इन हथियारों को वहां से हटाए। नाकाजातो को इन लोगों से बड़ी शिकायत है, उन्हें लगता है कि इन हथियारों की वजह से चीन इस द्वीप को निशाना बना सकता है।
सेना की तैनाती से भी डर
अपने ग्रीनहाउस के बगल में खड़े 68 साल के नाकाजातो कहते हैं, "हम एक छोटे से समुदाय से हैं और यहां रिश्ता बहुत जटिल है। द्वीप पर रहने वाले कुछ लोग सेना के लिए काम करते हैं और दूसरे लोगों के सेना में रिश्तेदार हैं।" नाकाजातो को डर है कि उनके बागों पर बम गिराए जा सकते हैं।
जापान के प्रमुख सीमा चौकी के पास रविवार को जब खरबूजों की फसल काट रहे थे उसी समय ओकिनावा अमेरिकी कब्जा खत्म होने की 50वीं सालगिरह मना रहा था।
दूसरे विश्व युद्ध में भारी तबाही के बाद जब अमेरिका ने यहां अपना कब्जा खत्म किया तो फिर हालात सामान्य होने की उम्मीद जगी। हालांकि ताइवान से लगते पूर्वी चीन सागर के पास मौजूद द्वीपों के समूह के कारण चीन की सेना यह डर जगाती है कि इलाका एक बार फिर युद्ध में घिर सकता है।
ओकिनावा के गवर्नर डेनी तमाकी ने 6 मई को प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, "हम राष्ट्रीय सांसदों के बयानों से चिंतित हैं कि ताइवान पर आकस्मिक घटना जापान के लिए आकस्मिक घटना होगी, और हाल में जो चर्चा हुई है उससे लगता है कि ओकिनावा एक सशस्त्र संघर्ष में शामिल होगा।"
यूक्रेन पर रूस के हमले ने इनकी चिंताएं बढ़ा दी हैं, इस बीच जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा एशिया में सुरक्षा की स्थिति पर चेतावनी दे रहे हैं। किशिदा की पार्टी के जापानी सांसदों ने कहा है कि वे देश के हथियारों में हमला करने वाली मिसाइलें शामिल करना चाहते हैं। ऐसे हथियार ओकिनावा में तैनात किये जा सकते हैं।
जापान की तुलना में पांच गुना ज्यादा पैसा रक्षा पर खर्च करने वाला चीन कह रहा है कि उसका इरादा इलाके में शांति रखने का है। ओकिनावा के मुख्य द्वीप पर रायकुस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर मासाकी गाबे कहते हैं, "जापान और चीन के बीच लड़ाई हुई तो मोर्चा ओकिनावा में होगा। "
मासाकी बताते हैं कि जब अमेरिका का कब्जा खत्म हुआ था तब वो 17 साल के किशोर थे और खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। उनका कहना है, "50 साल भी असुरक्षा की भावना जारी है।"
द्वीप का रणनीतिक महत्व
कोरल रीफ के किनारों और गन्ने से ढंका गाबे का घर सेना की एक अहम चौकी है। यहां दो एयरपोर्ट हैं, एक बड़ा बंदरगाह है और यह ताइवान से 400 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है। यह पूर्वी चीन सागर के वीरान द्वीपों से महज 200 किलोमीटर की दूरी पर है और चीन के साथ जापान की बढ़ती इलाकाई तनातनी के केंद्र में है।
नाकाजातो के खेतों के बगल में मौजूद ग्राउंड सेल्फ डिफेंस फोर्स की चौकी कभी गोल्फ कोर्स थी लेकिन आज यह जापान का नया सैन्य अड्डा है। यहां तैनात मिसाइलों का लक्ष्य चीन के वो जहाज हैं जो पश्चिमी प्रशांत महासागर से आती जाती हैं। जापान के यही हथियार चीन के सबसे करीब हैं।
73 साल के हायाको शिमिजु उस समूह के नेता हैं जो यहां सैनिक अड्डे का विरोध करता है। नाकाजातो की जमीन पर लगाए झंडों के साथ वो हर गुरुवार विरोध जताने के लिए खड़े होते हैं। शिमिजु का कहना है, "मुझे डर है कि पूरा द्वीप किसी किले में बदल जायेगा। यहां ज्यादा लोग ऐसे नहीं हैं जो बोल सकें, हालांकि मेरा ख्याल है कि बहुत से लोग इससे नाखुश हैं।"
सैनिक अड्डे के कमांडर 52 साल के कर्नल मासाकाजू इयोता का मानना है कि ज्यादातर द्वीपवासी जीएसडीएफ के 700 सैनिकों और हथियारों की मौजूदगी का समर्थन और उसे स्वीकार करते हैं। इयोता इसे मोर्चे की जरूरत मानते हैं। उनका कहना है, "मुझे नहीं लगता कि हमारी मौजूदा हालत पर्याप्त है।"
सरकार का अगला कदम
इस साल जब जापान अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की समीक्षा करेगा तो मुमकिन है कि इयोता को और ज्यादा सैनिक और असलहे मिलें। सत्ताधारी सांसदों ने कहा है कि वो और ज्यादा रक्षा खर्च की प्रतिबद्धता चाहते हैं इसमें वैसी मिसाइलें भी होनी चाहिये जो विदेशी जमीन पर हमला कर सके। जापान ऐसे हमले करने वाली मिसाइलों को मियाको में तैनात करना रोक सकता है क्योंकि इससे 600 किलोमीटर दूर चीन भड़क सकता है। हालांकि गाबे का अनुमान है कि ओकिनावा में हवाई जहाज और मिसाइलें तैनात की जायेंगी।
मियाको में सेना के विस्तार का अगल चरण शिमोजी एयरपोर्ट हो सकता है। रक्षा मंत्रालय के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर यह जानकारी दी। जंबो जेट के पायलटों को ट्रेन करने के लिए बना यह एयरपोर्ट सैन्यीकरण के प्रतिरोध का प्रतीक रहा है। अमेरिकी कब्जा हटने के बाद ओकिनावा के पहले गवर्न चोब्यो यारा ने सरकार से वादा लिया था कि यहां कभी भी सेना के जहाजों की तैनाती नहीं होगी।
सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी, जापान यानी एलडीपी के सांसदों ने इस वादे को खत्म करने की मांग की है। पूर्व रक्षा उप मंत्री मासारिसा सातो का कहना है,"ओकिनावा के मुख्य द्वीप के अलावा यह एक मात्र वो जगह है जहां से एफ-15 लड़ाकू विमान उड़ाये जा सकते हैं। सातो ने 2020 में यहां एयर फोर्स के विमानों को रखने की बात कही थी। उनका कहना है, "जैसा कि हमने यूक्रेन में देखा है आप कभी नहीं जान सकते कि लड़ाई कब शुरू हो जायेगी।"
द्वीप की राजनीति
किशिदा की पार्टी को ओकिनावा में और अड्डे बनाने के लिए स्थानीय समर्थन की जरूरत होगी। यह काफी मुश्किल है क्योंकि अमेरिकी फौज को लेकर नाराजगी यहां की राजनीति पर हावी है।
मार्च में सरकारी प्रसारक एनएचके ने जिन 812 लोगों से सर्वे के दौरान बात की उनमें से 56 फीसदी लोगों ने कहा कि वो अमेरिकी बेस का सख्त विरोध करते हैं।
सत्ताधारी पार्टी को क्या यहां समर्थन मिल सकता है इसकी एक परीक्षा सितंबर में होगी जब ओकिनावा अपने लिए गवर्नर चुनेगा। निर्दलीय उम्मीदवार तामाकी का नाम भी बैलट पेपर में है जो चाहते हैं कि यहां सेना का जमावड़ा छोटा ही रहे।
48 साल के मासाहिरो हामामोतो मियाको में आठ साल तक एलडीपी के पार्षद रहे हैं। वो खेती, पर्यटन और सार्वजनिक खर्च पर निर्भर इस द्वीप में समर्थन जुटाने का एक मौका देख रहे हैं। स्थानीय शराब और सिगरेट के थोक व्यापारी मासाहिरो का कहना है, "द्वीप पर ऐसी भावना है कि केंद्रीय सरकार से करीबी राजनीतिक रिश्ता होने का इसे फायदा मिल सकता है।"
मियाको के 55,000 बाशिंदो की कमाई राष्ट्रीय औसत का करीब 70 फीसदी है। ओकिनावा के मुख्य द्वीप के निवासी 61 साल के तोशियाकी शिमोजी कहते हैं, "अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं है, इसलिए लोग एलडीपी को वोट देंगे। रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है तो रक्षा पर ज्यादा खर्च होगा जिसका मतलब है कि यहां ज्यादा मिसाइलें होंगी। मुझे नहीं लगता कि प्रदर्शनों से कुछ भी बदलेगा।"
एनआर/आरपी (रॉयटर्स)