पूर्वी एशिया के साथ भारत के संबंधों में म्यांमार की भूमिका पुल की है। इलाके में चीन के इरादों को देखते हुए भारत के लिए म्यांमार जैसे पड़ोसियों के साथ रिश्तों को मजबूत करना जरूरी है। म्यांमार न सिर्फ भारत का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है बल्कि सुरक्षा और कूटनीति की दृष्टि से भी यह भारतीय विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता रहा है। भारत को, खासतौर से इसके पूर्वोत्तर के प्रदेशों को, म्यांमार दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ता है और इस लिहाज से आर्थिक और जनसंपर्क के दृष्टिकोण से भी यह बहुत महत्वपूर्ण है।
इस बात की पुष्टि एक बार फिर तब हुई, जब इसी हफ्ते भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवने एकसाथ म्यांमार के दौरे पर पहुंचे। भारतीय विदेश नीति और राजनय में ऐसा अवसर भूले-भटके ही आता है, जब सेना और विदेश सेवा के शीर्ष अधिकारी साथ-साथ दिखे हों।
हाल के वर्षों में अमेरिका और जापान सहित कई प्रमुख देशों के साथ 2+2 सचिव और मंत्रिस्तरीय संवाद शुरू होने की वजह से ऐसे अवसर आए हैं लेकिन ऐसा कुछ खास देशों के साथ ही और पूर्व-सहमति के आधार पर संस्थागत तरीके से हुआ है।
यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है कि देश के विदेश मंत्रालय और थलसेना के शीर्षाधिकारी एकसाथ विदेश यात्रा पर गए हैं। इसलिए यह तो साफ है कि इन दोनों अधिकारियों का कोरोना महामारी के बीच हुआ म्यांमार दौरा यूं ही नहीं हुआ है। और यह भी कि म्यांमार का भारत के सामरिक और कूटनीतिक विचार-व्यवहार में बड़ा स्थान है, खासतौर पर जब भारत की एक्ट ईस्ट और नेबरहुड फर्स्ट नीतियों की बात हो।
भरोसेमंद और मदद के लिए तत्पर म्यांमार
यहां यह समझना भी जरूरी है कि कोरोना महामारी के दौर में इस यात्रा से पहले विदेश सचिव श्रृंगला सिर्फ बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे और उस वक्त भी यात्रा के पीछे खास कूटनीतिक मकसद थे। 2 दिन की अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान श्रृंगला-नरवने आंग सान सू ची, सीनियर जनरल मिन आंग-लाइ और कई मंत्रियों और अधिकारियों से मिले। भारत-म्यांमार के बीच सैन्य और सामरिक सहयोग संभावनाओं से भरा है। उम्मीद की जाती है कि नरवने की यात्रा ने इनमें से कुछ पर प्रकाश डाला होगा।
सुरक्षा, आतंकवाद और अलगाववाद से लड़ने में भारत के लिए म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की सीमा से सटे इलाकों में 2015 की 'हाट पर्सूट' की कार्यवाही हो या अलगाववादियों का प्रत्यर्पण, म्यांमार ने एक भरोसेमंद और मदद के लिए तत्पर पड़ोसी की भूमिका अदा की है। इसकी एक और झलक मई 2020 में तब देखने को मिली, जब म्यांमार के अधिकारियों ने 22 उत्तर-पूर्वी अलगाववादियों को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया। पूर्वोत्तर के कुछ अलगाववादी गुटों के चीन से संबंधों और भारत-चीन सीमा विवाद के बीच भी नरवने का जाना महत्वपूर्ण हो जाता है।
अरबों डॉलर की पेट्रोलियम रिफाइनरी
एनएससीएन के साथ शांति समझौते में हो रही देरी, अन्य नगा अलगाववादी धड़ों और उल्फा की गतिविधियों के मद्देनजर भी यह यात्रा महत्वपूर्ण है। हाल ही में एनएससीएन ने भारत सरकार से कहा है कि बातचीत की जगह थाईलैंड के अलावा किसी और तीसरे देश में हो।
चीन के म्यांमार में बढ़ते निवेश को लेकर भी भारत की चिंताएं बढ़ी हैं, खासतौर पर ऊर्जा के क्षेत्र में चीन ने काफी निवेश किया है। भारत भी ऊर्जा क्षेत्र में म्यांमार के साथ सहयोग का फायदा उठाना चाहता है और शायद यही वजह है कि कभी म्यांमार की राजधानी और अभी भी व्यापार और वाणिज्य का केंद्र माने जाने वाले यांगून के नजदीक भारत 6 अरब डॉलर की एक पेट्रोलियम रिफाइनरी प्रोजेक्ट लगाना चाहता है। इस संदर्भ में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अपनी मंशा म्यांमार सरकार के समक्ष रखी है।
यदि इस प्रस्ताव पर सहमति बनती है तो इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन भारत की तरफ से इसमें हिस्सेदार होगा। इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन के अलावा जीएआईएल और ओएनजीसी भी म्यांमार के ऊर्जा सेक्टर में सक्रिय हैं।
मिजोरम पर भी बढ़ा ध्यान
भारत और म्यांमार में अभी भी अधिसंख्य जनसंख्या कृषि पर निर्भर और गरीब तबके से है। लिहाजा कृषि सहयोग दोनों देशों के बीच अहम स्थान रखता है। इस सहयोग में चाहे वह म्यांमार से डेढ़ लाख टन बीन्स और दलहन आयात करने की सहमति हो या मिजोरम और चिन प्रांत (म्यांमार) की सीमा के पास बयान्यू/सरसीचौक में बॉर्डर हाट बनाने के लिए 20 लाख डॉलर का अनुदान, भारत ने पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिश की है। म्यांमार, भारत को सबसे ज्यादा बीन्स और दलहन निर्यात करने वाले देशों में है।
मणिपुर को हमेशा से खास दर्जा मिला
म्यांमार के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने में मणिपुर को हमेशा से खास दर्जा मिला है। मोदी की 'एक्ट ईस्ट' नीति में मिजोरम पर भी ध्यान बढ़ा है। मणिपुर के मोरेह की तरह मिजोरम में जोखावथार लैंड कस्टम स्टेशन की स्थापना और अब बॉर्डर हाट इसी का परिचायक है। बरसों के इंतजार के बाद सितवे पोर्ट के मार्च 2021 तक तैयार हो जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो यह एक बड़ा कदम होगा। सितवे पोर्ट भारत के म्यांमार और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों से भारत के आर्थिक व्यापारिक सहयोग को बढ़ाने में मददगार होगा। हालांकि सितवे रखाइन प्रदेश में है, जहां रोहिंग्या अल्पसंख्यकों की काफी संख्या है।
म्यांमार में नवंबर में चुनाव
इसके अलावा भारत ने म्यांमार को रेमडेसिविर के 3,000 वाइल भी उपलब्ध कराने का वादा किया है। कोविड महामारी की शुरुआत में म्यांमार में बहुत कम संक्रमित लोग पाए गए और लगा कि शायद म्यांमार इस महामारी की चपेट में पूरी तरह नहीं आएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हाल के दिनों में म्यांमार में भी संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं। म्यांमार में 8 नवंबर को चुनाव भी होने हैं। वैसे तो औपचारिक स्तर पर कोई विशेष बात नहीं हुई लेकिन भारत में इस बात की दिलचस्पी कम नहीं है कि चुनावों के परिणाम क्या होंगे?
म्यांमार भारत की नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट दोनों ही का हिस्सा है। यह दुर्भाग्य ही है कि इन तमाम बातों और आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समानताओं के बावजूद म्यांमार अभी भी भारत के लिए उतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं रखता जितना उसे रखना चाहिए। म्यांमार और उसके जैसे पड़ोसी देशों पर ध्यान देना और उनसे पारस्परिक सहयोग के रास्ते निकालना भारत की मजबूरी नहीं, जिम्मेदारी है। जब तक देश के नीति-निर्धारक इस बात पर ध्यान नहीं देंगे, तब तक भारत अपने पड़ोसियों का विश्वासपात्र सहयोगी नहीं बन पाएगा।
रिपोर्ट : राहुल मिश्र