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Last Updated : मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018 (12:23 IST)

मिलिए भारत की पहली ट्रांसजेंडर टैक्सी ड्राइवर से

मिलिए भारत की पहली ट्रांसजेंडर टैक्सी ड्राइवर से | Transgender taxi driver
किन्नर हैं। लेकिन शादी या बच्चा होने पर वे लोगों के घरों में नाचने नहीं जातीं। वे टैक्सी चला कर पैसा कमाती हैं। ओडिशा में अपने पति और बच्चे के साथ एक खुशहाल जीवन जी रही हैं।
 
 
ओडिशा की रहने वाली 33 वर्षीय मेघना साहू पुरुष प्रधान समाज में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं। आमतौर पर भारत में ट्रांसजेंडरों को 'हिजड़ा' या 'किन्नर' कहा जाता है। ये भीख मांगते हैं, देह व्यापार से जुड़े होते हैं और शादी या बच्चा पैदा होने पर पैसे मांगने जाते हैं। साहू इससे अलग हैं और कहती हैं, ''मैं इस तरह के कामों का विरोध नहीं करती हूं, लेकिन मैं अपनी जिंदगी में कुछ अलग करना चाहती हूं। मैं सोचती हूं कि मैं क्यों नहीं बाकी पुरुष व महिलाओं की तरह काम कर सकती।''
 
 
मेघना के मुताबिक उनका मकसद पुरुष प्रधान समाज में काम कर के यह साबित करना है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो किन्नर नहीं कर सकते हैं। वह कहती हैं, ''हमें बस एक मौका चाहिए।''
 
 
किन्नरों को लेकर रूढ़िवाद
भारत में आर्थिक प्रगति होने के बावजूद रूढ़िवाद बरकरार है और किन्नर को समाज कबूल नहीं करता। हालांकि पौराणिक हिंदू कथाओं में उन्हें शुभ माना जाता रहा है, जो खुशहाली और भाग्य लेकर आते हैं। इन्हें भले ही कानूनी तौर पर तीसरे लिंग के रूप में मान्यता मिल चुकी है लेकिन आज भी समाज इन्हें स्वीकारने को तैयार नहीं है।
 
 
मेघना साहू ही भारत की पहली ट्रांसजेंडर कैब ड्राइवर हैं, इसका कोई आधिकारिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन उनकी कंपनी ओला व ट्रांसजेंडरों के हकों के लिए काम करने वाली संस्था सहोदरी फाउंडेशन इसका दावा करती हैं। ओला कैब के प्रवक्ता विराज चौहान कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता किसी ट्रांसजेंडर ने इससे पहले कैब ड्राइवर के पेशे को चुना हो।''
 
 
इससे पहले 2016 में दो अन्य कैब कंपनियों ने मुंबई और केरल में ट्रांस टैक्सी सर्विस शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन इस सिलसिले में कुछ हुआ नहीं।
 
 
घर और नौकरी से निकाला
2014 में ट्रांसजेंडरों के हक में एक फैसला आया जिसके तहत उन्हें नौकरियों और स्कूलों में दाखिले के लिए कोटा मिलने की बात की गई। लेकिन इसके बाद भी उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई बार तो उन्हें घर से भी निकाल दिया जाता है और कार्यस्थल पर मुश्किलों से जूझना पड़ता है।
 
 
साहू के लिए भी राह बेहद मुश्किल थी। साहू ने एमबीए की पढ़ाई की, लेकिन इसके बावजूद उन्हें परिवार ने छोड़ दिया और नौकरी से निकाल दिया गया। मजबूरन उन्होंने ट्रेन में भीख मांगकर गुजारा किया और देह व्यापार से भी जुड़ीं। वह बताती हैं, ''मेरे परिवार ने मुझसे कहा कि अगर मैं पुरुषों की तरह रहने की कोशिश नहीं करती हूं तो घर से निकल जाऊं।''
 
 
इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वे अपनी पहचान नहीं छुपाएंगी। उन्होंने बाल लंबे करने शुरू किए और महिलाओं के कपड़े पहने, लेकिन यह साहू के बॉस को रास नहीं आया। वह कहती हैं, ''बॉस ने कहा कि अगर मैं औरतों की तरह कपड़े पहनती हूं तो दिक्कतें होंगी और क्लाइंट को यह अच्छा नहीं लगेगा। हमें तुम्हें निकालना पड़ेगा।'' अंततः साहू को कंपनी से निकाल दिया गया और उन्हें अन्य कंपनियों में भी नौकरी नहीं मिली। अगले दो वर्षों तक वह जीवनयापन के लिए संघर्ष करती रहीं।
 
 
जिंदगी बदलने की ठानी
ओडिशा को ट्रांसजेंडरों के लिहाज से अच्छा राज्य माना जाता है। साल 2016 में यहां ट्रांसजेंडरों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की गई थीं, जिनमें पेंशन, घर और राशन की सुविधा मुहैया कराई गई। लेकिन साहू को मुश्किलों का सामना करना पड़ा और पुरुषों ने उनका यौन शोषण भी किया। वह कहती हैं कि पुरुष अकसर ही उनसे सेक्स की उम्मीद लगा लेते थे।

वह बताती हैं, ''मैंने सोचा कि मेरी एमबीए करने का क्या मतलब है? समाज की मदद करने वाले सपनों का क्या हुआ? मैं कुछ कर नहीं पा रही हूं और मेरे साथ वही हो रहा है, जो दूसरों के साथ होता है। मुझे कुछ करना पड़ेगा।''
 
 
इसके बाद साहू ने अपनी बचत से कार खरीदी जो उनके पिता के नाम पर ली गई। ऐसा इसलिए क्योंकि कोई बैंक उन्हें लोन देने को राजी नहीं था। करीब एक साल बाद एक दिन किसी ड्राइवर से बातचीत के बाद उन्होंने ओला कैब से संपर्क किया और यहां से उनकी नई शुरुआत हुई।  
 
 
लोगों ने उत्साह बढ़ाया
अपने पहले दिन के अनुभव के बारे में वह बताती हैं, ''पहले दिन मैं बेहद डरी हुई थी कि क्या होगा, लोग क्या सोचेंगे या दूसरे ड्राइवर क्या सोचेंगे, मेरी कार में लोग बैठेंगे या नहीं।'' लेकिन कैब सर्विस लेने वालों ने उन्हें प्रोत्साहित किया। खासकर महिलाओं ने कहा कि वे पुरुष ड्राइवरों की जगह साहू के साथ जाना ज्यादा पसंद करती हैं।
 
 
2012 के निर्भया गैंगरेप के बाद महिलाओं की सुरक्षा पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन इसके बाद भी 2016 में अकेले दिल्ली में 40 हजार रेप की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के एक पोल में भारत को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे असुरक्षित देश माना गया है। अखबारों में रोजाना महिलाओें के साथ हो रहे अपराध की खबर छपती है, जिनमें कैब ड्राइवरों द्वारा कामकाजी महिलाओं के रेप की घटनाएं भी शामिल हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि साहू महिला सवारियों के बीच क्यों मशहूर हैं। 
 
 
महिला कस्टमर खुश
साहू की नियमित कस्टमर विजया लक्ष्मी के मुताबिक, "वह हमेशा वक्त पर आती है और प्रोफेशनल है। उससे बात कर के अच्छा लगता है और मैं सुरक्षित महसूस करती हूं।'' जब लक्ष्मी ने साहू की कार में पहली बार सवारी की, तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक महिला कैसे रात के वक्त टैक्सी चला रही है। बाद में भारी आवाज सुन कर वह समझ गईं कि साहू ट्रांसजेंडर हैं। वह कहती हैं, ''मुझे अच्छा लगा कि साहू ऐसा काम कर रही हैं।'' 
 
 
साहू का कहना है कि ऐसी प्रतिक्रिया आम है। उनके मुताबिक, ''ग्राहक यह जानकर खुश होते हैं कि मैं ड्राइव कर रही हूं और मेहनत से पैसा कमा रही हूं। कई बार लोग मुझे अच्छी टिप भी देते हैं। हर कोई मुझे फाइव स्टार रेटिंग देता है।''
 
 
एक पत्नी और मां
करीब दस घंटे तक टैक्सी चलाने के बाद साहू जब घर वापस आती हैं, तो घर पर पति और बेटा इंतजार कर रहे होते हैं। वह अपने बेटे का होमवर्क कराती हैं और फिर खाना बनाती हैं। भारत जैसे देश में साहू की कहानी अलग है, जहां करीब 20 लाख किन्नर रहते हैं और उन्हें बचपन से भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
 
 
यही वजह है कि साहू एक स्थानीय संस्था के साथ मिल कर अधिक से अधिक किन्नरों को टैक्सी चलाने के लिए मदद कर रही हैं। वे कहती हैं कि इस काम के लिए शिक्षा या डिग्री की जरूरत नहीं होती है, ''मैं रोल मॉ़डल बनकर कम से कम दस अन्य को टैक्सी चलाने के लिए प्रेरित करना चाहती हूं।'' हाल ही में साहू ने एक अन्य ट्रांसजेंडर के कार लोन के लिए बतौर गारंटर बनकर मदद की है।
 
 
वह कहती हैं, ''मैं नहीं चाहती कि एक भी किन्नर भीख मांगे। हरेक को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और सम्मानजनक तरीके से पैसे कमाने चाहिए।''
 
 
वीसी/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
 
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