उत्तर प्रदेश सरकार ने मदरसों में गणित और विज्ञान जैसे विषय पढ़ाने वाले करीब 21,000 मुसलमान अध्यापकों को वेतन देना बंद कर दिया है। मदरसा बोर्ड का कहना है कि इन सभी टीचरों की नौकरी चली जाएगी।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के प्रमुख इफ्तिखार अहमद जावेद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि 21,000 से भी ज्यादा शिक्षकों की नौकरी जाने वाली है। उन्होंने अंदेशा जताया कि इस फैसले से मुसलमान छात्र और शिक्षक "30 साल पीछे चले जाएंगे।" जावेद बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव भी हैं।
रॉयटर्स ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय का एक दस्तावेज देखा है, जिसके मुताबिक इन अध्यापकों का वेतन 'स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसाज' से आता था। यह केंद्र सरकार का एक कार्यक्रम है। केंद्र ने मार्च 2022 में यह स्कीम बंद कर दी थी।
क्यों बंद हुई फंडिंग?
दस्तावेज दिखाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस कार्यक्रम के तहत 2017-18 और 2020-21 के लिए राज्यों से आए नए प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दी और फिर कार्यक्रम को पूरी तरह से बंद ही कर दिया। हालांकि 2015-16 में मोदी सरकार ने इस कार्यक्रम के लिए करीब तीन अरब रुपयों की रिकॉर्ड फंडिंग दी थी।
प्रधानमंत्री के दफ्तर ने टिप्पणी के लिए भेजे गए अनुरोध का जवाब नहीं दिया। अल्पसंख्यक मंत्रालय ने भी कोई जवाब नहीं दिया।
दस्तावेज में कार्यक्रम को बंद करने का कोई कारण नहीं दिया गया, लेकिन एक सरकारी अधिकारी ने अनुमान जताया कि यह 2009 के शिक्षा का अधिकार कानून की वजह से हो सकता है। इस कानून के तहत सिर्फ नियमित सरकारी स्कूल आते हैं।
सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि इस कार्यक्रम को 2009-10 में यूपीए सरकार ने शुरू किया था और शुरुआती छह सालों में इसके तहत 70,000 से ज्यादा मदरसों को फंडिंग दी जाती थी।
अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर एक सरकारी समिति के एक सदस्य शाहिद अख्तर कहते हैं कि इस कार्यक्रम से मुसलमान बच्चों को लाभ पहुंचा था और इसे फिर से शुरू किया जाना चाहिए।
अख्तर ने रॉयटर्स को बताया, "प्रधानमंत्री भी चाहते हैं कि बच्चों को इस्लामिक और आधुनिक, दोनों शिक्षा मिले। यह योजना बरकरार रहे, इसके लिए मैंने अधिकारियों से बातचीत भी शुरू कर दिया है।"
छह सालों से नहीं मिला वेतन
मदरसा बोर्ड के सदस्य जावेद ने 10 जनवरी को पीएम मोदी के नाम एक चिट्ठी भेजी। इसमें उन्होंने लिखा कि केंद्र ने राज्य सरकारों को पिछले साल अक्टूबर में ही बताया कि कार्यक्रम बंद होने वाला है।
जावेद ने आगे लिखा कि उत्तर प्रदेश ने अप्रैल 2023 से ही अपना हिस्सा शिक्षकों को नहीं दिया था और जनवरी 2024 में तो यह भुगतान बिल्कुल बंद ही कर दिया। केंद्रीय हिस्सा तो छह सालों से नहीं दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद शिक्षक "आराम से अपना काम कर रहे थे, इस उम्मीद में कि आपकी सज्जनता मामले को सुलझा लेगी।"
उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तुरंत टिप्पणी के लिए अनुरोध का जवाब नहीं दिया। राज्य सरकार अपने बजट से विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी और अंग्रेजी समेत कई विषयों के अध्यापकों को हर महीने 3,000 रुपए तक देती थी। केंद्र सरकार 12,000 रुपए तक देती थी।
बहराइच में पिछले 14 सालों से मदरसा शिक्षक का काम कर रहे समीउल्लाह खान कहते हैं, "हम लोगों के पास दूसरी कोई नौकरी नहीं है और मैं तो अब दूसरी नौकरी पाने के लिए बहुत बूढ़ा हो चुका हूं।"
इस बीच असम में बीजेपी की राज्य सरकार सैकड़ों मदरसों को परंपरागत स्कूलों में बदल रही है, जबकि विपक्षी पार्टियां और मुसलमान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सर्मा ने सभी राज्यों से कहा है कि वे भी मदरसों की फंडिंग बंद करें।
भारत में कई मदरसे मुसलमान समुदाय के सदस्यों द्वारा दिए गए चंदे पर चलते हैं और बाकी सरकारी मदद पर निर्भर हैं।
सीके/एसएम (रॉयटर्स)