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Written By DW
Last Modified: बुधवार, 9 सितम्बर 2020 (17:04 IST)

अलेक्सी नावाल्नी कैसे बन गए मर्केल और पुतिन के बीच तनाव का कारण

अलेक्सी नावाल्नी कैसे बन गए मर्केल और पुतिन के बीच तनाव का कारण - The reason for tension between Merkel and Putin became Alexey Navleni
कौन हैं नावाल्नी, क्यों दिया गया उन्हें जहर, कौन से जहर से किया गया वार और क्यों इससे पड़ा है जर्मनी और रूस के रिश्तों में खलल, जानिए इन सब सवालों के जवाब।

रूस के विपक्षी नेता अलेक्सी नावाल्नी होश में आ गए हैं और एक बार फिर जर्मनी के अखबारों, टीवी चैनलों और रेडियो पर सुर्खियों में छाए हुए हैं। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने साफ-साफ कहा है कि इन्हें नर्व एजेंट देकर हत्या की कोशिश की गई थी और रूस इस पर जवाब दे, जबकि रूस पहले ही कह चुका है कि कोई जहर नहीं दिया गया था। तो आइए जानते हैं कि मर्केल और पुतिन- दुनिया के दो इतने बड़े नेताओं के बीच तनातनी कराने वाला यह शख्स आखिर है कौन?

इसे समझने के लिए कहानी को शुरू से शुरू करते हैं। 1975 में सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी में एक शख्स शामिल हुआ जिसका नाम था व्लादिमीर पुतिन। 80 के दशक में उन्हें जर्मनी में एजेंट के तौर पर भेजा गया। कुछ साल बाद यहां बर्लिन की दीवार गिरी और वहां सोवियत संघ टूटा और रूस बन गया। तो इनकी हुई वतन वापसी और देश लौटने के कुछ दिन बाद ये घुस गए राजनीति में।

यहां उन्होंने सबसे जरूरी लोगों के साथ कॉन्टेक्ट्स बनाए और राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते गए। 1997 में रूस के राष्ट्रपति थे बोरिस येल्तसिन। पहले तो उन्होंने पुतिन को अपना डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ बनाया, फिर अगले साल वहां की खुफिया एजेंसी एफएसबी का अध्यक्ष बना दिया और उसके अगले साल इन्हें देश का प्रधानमंत्री बना दिया। रूस के इस असली House Of Cards में कहानी इसके बाद अभी और मजेदार बनती है।

जब पुतिन बने राष्ट्रपति
1999 में येल्तसिन ने अचानक ही राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया और पुतिन, जो कि प्राइम मिनिस्टर थे, वो बन गए एक्टिंग प्रेसीडेंट। फिर ये इलेक्शंस में खड़े हुए और साल 2000 में प्रेसीडेंट भी बन गए। वो दिन था और ये दिन है। ये आज तक प्रेसीडेंट ही बने हुए हैं। हां, बीच में दिमित्री मेद्वेदेव भी कुछ समय के लिए आए थे और उसकी वजह यह है कि रूस में दो टर्म से ज्यादा आप राष्ट्रपति बनकर नहीं रह सकते हैं। तो मेद्वेदेव को बनाया गया प्रेसीडेंट, पुतिन बने प्राइम मिनिस्टर। लेकिन उस वक्त भी देश की कमान सही मायनों में पुतिन के हाथ में ही थी। उस वक्त प्रेसीडेंट का टर्म होता था 4 साल का।

2000 से 2008 तक पुतिन रहे प्रेसीडेंट। 2008 से 2012 वो बन गए प्राइम मिनिस्टर। और फिर 2012 में जब वो फिर से प्रेसीडेंट बने, तो उन्होंने एक स्मार्ट मूव चली। उन्होंने संविदान में कुछ बदलाव किए और इस टर्म को 4 की जगह बना दिया 6 साल का यानी 6-6 साल कर के अब वो 12 साल तक प्रेसीडेंट बने रह सकते हैं तो 2024 तक तो उन्होंने अपनी जगह पक्की कर रखी है।

अब 2000 से 2020 तक 20 साल हो गए हैं। न उन्होंने गद्दी छोड़ी है और न कोई उनके सामने टिक पाया है। इतने सालों में कई लोगों ने उनके खिलाफ बोलने की कोशिश की है लेकिन किसी-न-किसी तरह से उन्हें चुप करा दिया गया। और इसी पुतिन विरोधियों की लिस्ट में सबसे ताजा हैं अलेक्सी नावाल्नी। दुनिया की नजरों में ये भले ही अभी इस घटना के बाद आए हैं लेकिन नावाल्नी 2008 से पुतिन के खिलाफ लिखते रहे हैं।

2008 में ली नावाल्नी ने टक्कर
पहले ये सिर्फ ब्लॉग लिख रहे थे, एक्टिविटीज कर रहे थे लेकिन जब इन्हें बार-बार जेल भेजा जाने लगा, जब इन पर लगातार अलग-अलग आरोपों में मुक़दमे चलने लगे तो इन्होंने राजनीति में उतरकर पुतिन का सामना करने का फैसला किया। पहले मेयर का चुनाव लड़ा, ऑपोजशन पार्टी बनाई, 10 साल तक लगातार पुतिन के खिलाफ आवाज उठाते रहे और फिर 2018 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा भी कर दी। लेकिन पुतिन के आगे खड़ा होना तो मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। इन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए और चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई।

मामला यहां खत्म हो सकता था लेकिन नावाल्नी रुकने को राजी नहीं थे। एक के बाद एक प्रोटेस्ट्स को उन्होंने लीड किया और फिर अचानक ही खबर आई कि उनकी तबीयत खराब हो गई है। वो तोम्स्क नाम के शहर से फ्लाइट लेकर मॉस्को जा रहे थे लेकिन रास्ते में ही उनकी तबीयत बिगड़ने की वजह से ओम्स्क शहर में एमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी। उनकी मैनेजर ने कहा कि उन्होंने सुबह से सिर्फ चाय पी है और कुछ नहीं यानी चाय में जहर डाला गया। ओम्स्क में उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने कहा कि बात सही है, उन्होंने सुबह से सिर्फ चाय पी थी और कुछ नहीं इसलिए उनका ब्लड शुगर लेवल डाउन हो गया और वे बेहोश हो गए।

अब डॉक्टर की बात मानी जाए या फिर मैनेजर की? मैनेजर की बात में ज्यादा दम लगा, क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब रूस में सरकार के किसी विरोधी को जहर देने का मामला सामने आया हो। इससे पहले 2018 में पुसी रायट ग्रुप से जुड़े Pyotr Verzilov को जहर दिया गया, उसी साल डबल एजेंट सर्गेई स्क्रिपाल को भी जहर दिया गया। इसी तरह आलेक्सांडर लित्विनेंकों, विक्टोर कलाश्निकोव। लिस्ट काफी लंबी है। बहरहाल नावाल्नी को इलाज के लिए बर्लिन लाया गया।

बर्लिन में ही क्यों होता है इलाज?
यहां के शारिटे अस्पताल में पहले भी पॉलिटिकल पॉइजनिंग के दूसरे विक्टिम्स का इलाज किया जा चुका है, इसलिए यहां के डॉक्टरों को इसका तजुर्बा है। यहां आपको ये भी बता दें कि ये जहर जो इस्तेमाल किया जाता है, वो कोई आसानी से मिल जाने वाला चूहे या छिपकली मारने टाइप का जहर नहीं होता है बल्कि ज्यादातर मामलों में ये खास किस्म का नर्व एजेंट होता है।

ये एक ऐसा केमिकल है, जो सीधे नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है। नर्व एजेंट के संपर्क में आने वाले व्यक्ति को फौरन ही सांस लेने में दिक्कत आने लगती है, आंखों की पुतलियां सफेद हो जाती हैं, हाथ-पैर चलना बंद कर देते हैं और व्यक्ति कोमा में पहुंच जाता है। कई बार इन्हें खाने या किसी ड्रिंक में मिलाकर दिया जाता है। लेकिन ऐसे में असर देर से शुरू होता है। लेकिन अगर इसे सीधे किसी पर स्प्रे कर दिया जाए तो ये फौरन त्वचा के अंदर पहुंच जाता है।

नावाल्नी के मामले में नोविचोक नाम का नर्व एजेंट दिया गया, जो कि रूस की खुफिया एजेंसी के ही पास है। इसीलिए जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने साफ-साफ शब्दों में इसे 'अटेम्पट टू मर्डर' कहा। इसके बाद से जर्मनी और रूस के संबंधों में तनाव आता दिख रहा है और दोनों देशों को जोड़ने वाली गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम 2 पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
रिपोर्ट : ईशा भाटिया सानन
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