पुर्तगाल के राष्ट्रपति मार्चेलो रेबेलो डे सूजा ने कहा है कि उनके देश को साम्राज्यवाद के दौरान किए गए अपराधों के लिए मुआवजा देना चाहिए। डे सूजा ने कहा कि साम्राज्यवादी युग में लोगों को दास बनाए जाने के कृत्यों के लिए पुर्तगाल भी जिम्मेदार है।
लगभग चार सदियों तक साम्राज्यवादी देशों ने अफ्रीका और एशिया के देशों में लाखों लोगों को गुलाम बनाया और उन्हें यूरोप व अमेरिका में खरीदा-बेचा गया। सिर्फ अफ्रीका में कम से कम 1।25 करोड़ लोगों का अपहरण कर लिया गया। उन्हें यूरोपीय व्यापारी अपने जहाजों पर भरकर लाए और उन्हें बाजारों में बेच दिया गया।
ये यात्राएं भयंकर यातनाओं से भरी थीं और बहुत से लोग रास्ते में ही मर गए, जिन्हें समुद्र में फेंक दिया गया। जो लोग बच गए उन्हें उत्तरी और दक्षिण अमेरिका के देशों में गुलाम बनाकर खेती के काम में झोंक दिया गया। पुर्तगाली जहाजों पर लाए गए अधिकतर लोग ब्राजील और कैरेबियाई द्वीपों में खेतीहर बंधुआ मजदूर बनाए गए और व्यापारियों ने उनसे खूब मुनाफा कमाया।
लाखों लोगों की मौत
पुर्तगाल ने कम से कम 60 लाख लोगों को अफ्रीका से गुलाम बनाया था। यह किसी भी अन्य यूरोपीय देश से ज्यादा बड़ी संख्या थी। लेकिन इस इतिहास को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। देश के स्कूलों में भी इस बारे में बच्चों को कोई जानकारी नहीं दी जाती।
इसके उलट बहुत से पुर्तगाली उस युग को आज भी एक गौरवशाली इतिहास के रूप में याद करते हैं। पुर्तगाल ने अंगोल, मोजम्बिक, ब्राजील, केप वेरडे और ईस्ट तिमोर जैसे देशों को गुलाम बनाया था। भारत के भी कुछ हिस्सों पर उसका राज रहा।
विदेशी पत्रकारों के एक कार्यक्रम में उस युग को याद करते हुए रेबेलो डे सूजा ने कहा कि पुर्तगाल उस दौरान हुए अपराधों की "पूरी जिम्मेदारी लेता है।” उन्होंने माना कि साम्राज्यवादी नरसंहारों और अन्य अपराधों की बहुत बड़ी "कीमत” थी।
डे सूजा ने कहा, "हमें वह कीमत अदा करनी चाहिए। क्या ऐसे कृत्य थे जिनके लिए जिम्मेदार लोगों को सजा नहीं हुई? क्या ऐसी चीजें थीं जो लूटी गईं और वापस नहीं हुई? हमें सोचना चाहिए कि उसे कैसे ठीक किया जा सकता है।”
दुनियाभर में इस बात की मांग बढ़ रही है कि साम्राज्यवादी ताकतें अपने अपराधों के लिए मुआवजा अदा करें। एक विचार इसके लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल स्थापित करने का भी है। इस दिशा में काम कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुर्तगाल के इतिहास के कारण जन्मी असमानता से लड़ने के लिए नीतियां बनाना और मुआवजे देना जरूरी है।
कई देश मांग चुके हैं माफी
कई यूरोपीय देश अपने अपराधों के लिए माफी मांग चुके हैं। 2020 में बेल्जियम के राजा ने अफ्रीका में हुईं ज्यादतियों के लिए माफी मांगी थी। पिछले साल इंग्लैंड के किंग चार्ल्स तृतीय ने केन्या दौरे पर माफी मांगी थी। जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक-वॉल्टर श्टाइनमायर ने तंजानिया में जर्मन सेनाओं के अपराधों के लिए माफी मांगी थी।
राष्ट्रपति डे सूजा ने पिछले साल भी कहा था कि पुर्तगाल को अपने इतिहास के लिए, साम्राज्यवादी दासता के लिए माफी मांगनी चाहिए। हालांकि मंगलवार को अपने संबोधन में उन्होंने कहा इतिहास को स्वीकार करना और उसकी जिम्मेदारी लेना ज्यादा जरूरी है। डे सूजा ने कहा, "माफी मांगना तो आसान हिस्सा है।”
संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी एक रिपोर्ट में सिफारिश की है कि विभिन्न देश एक "विस्तृत प्रक्रिया तैयार करें, उसे लागू करें और उसके लिए धन उपलब्ध करवाएं” जो इतिहास में हुए कृत्यों और उनकी वजह से आज तक हो रहे प्रभावों की पूरी सच्चाई उजागर करे। उन्होंने कहा, "इसमें प्रभावित समुदायों की भागीदारी होनी चाहिए।”
साम्राज्यवादी युग में सबसे पहले भारत आने वाले और सबसे आखिर में छोड़ने वाले पुर्तगाली ही थे। 1498 में वास्को डी गामा ने सबसे पहले भारत की धरती पर कदम रखा था। 1505 से 1961 के बीच पुर्तगालियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया। जिन इलाकों पर पुर्तगालियां का राज रहा, उनमें गोवा, दमन और उत्तरी मुंबई शामिल हैं। इसके अलावा गुजरात और महाराष्ट्र के कई हिस्सों पर भी उनका राज रहा।
विवेक कुमार (रॉयटर्स)