-क्रिस्टोफ श्ट्राक
घर में बड़े प्रदर्शन देख रहे इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जर्मनी के दौरे पर हैं। हमेशा साथ देने वाला जर्मनी अब इसराइल को अपनी नाराजगी दिखाने लगा है। इसराइल की सरकार का अतिदक्षिणपंथ की ओर झुकाव बर्लिन को परेशान कर रहा है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से नैतिक जिम्मेदारी के चलते हमेशा इसराइल के साथ खड़ा रहने वाला जर्मनी अब नेतन्याहू के प्लान को लेकर नाराजगी दिखाने लगा है।
मार्च के दूसरे हफ्ते में जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर इसराइल में थे। श्टाइनमायर इसराइल की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ मनाने वहां पहुंचे थे। उसी दौरान हाइफा यूनिवर्सिटी में उन्होंने राजनीतिक और आलोचनात्मक रुख सामने रख दिया।
जर्मन राष्ट्रपति ने इसराइल में हाल के महीनों में 'घृणा और हिंसा के बढ़ते मामलों' का जिक्र किया। इसराइल में कई दिनों से सुप्रीम कोर्ट की शक्ति और मूलभूत कानूनों के दायरे को सुरक्षित रखने के लिए प्रदर्शन हो रहे है। नेतन्याहू की सरकार, देश में संसद की शक्ति को इस कदर बढ़ाना चाहती है कि वो सर्वोच्च अदालत के फैसले भी पलट सके।
बीते 20 साल में दो बार जर्मनी के विदेश मंत्री रह चुके श्टाइनमायर ने कहा कि जर्मन 'हमेशा इसराइल में चमकते कानून के राज और उसकी शक्ति पर गर्व करते रहे हैं, सटीक रूप से कहूं तो ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम ये जानते हैं कि इस क्षेत्र की ये ताकत और दमक के लिए कितनी जरूरी है।'
जिस वक्त श्टाइनमायर यह कह रहे थे, उस वक्त इसराइली राष्ट्रपति इसाक हेर्जोग उनके बगल में खड़े थे। जर्मन राष्ट्रपति ने अपने समकक्ष इसराइली नेता को 'दोस्त और सहकर्मी' बताते हुए उन्हें 'इसराइल में जारी बहस में एक स्मार्ट और संतुलित आवाज' बताया। हेर्जोग, बेंजामिन नेतन्याहू की अतिदक्षिणपंथी सरकार के निशाने पर हैं। वे राजनीतिक दबाव झेल रहे हैं।
इसराइल में न्यायिक सुधारों पर विवाद
इसराइली सरकार न्यायिक सुधार करने की योजना बना रही है। कहा जा रहा है कि ये सुधार देश के लोकतांत्रिक चरित्र को दुर्बल कर देंगे। अगर ये सुधार लागू हुए तो इसराइली संसद, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को उलट सकेगी। फिलहाल यह बिल विधायी प्रक्रिया से गुजर रहा है।
यह पहला मौका है, जब किसी जर्मन उच्चाधिकारी ने इतने खुले रूप से इसराइल की आलोचना की है। जर्मनी अब तक इसराइल की घरेलू राजनीति और फलस्तीन के विवादित इलाके में कब्जे जैसे मुद्दों पर भी कटु टिप्पणी करने से बचता रहा है। हिटलर की तानाशाही में जर्मनी में यहूदियों के साथ जिस तरह का बर्बर सलूक किया गया, उसके चलते भी इसराइल के साथ संबंधों में बर्लिन हमेशा एक अपराधबोध से लड़ता दिखा है। होलोकॉस्ट की कड़वाहट की वजह से ही दोनों देशों के औपचारिक संबंध दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के 20 साल बाद शुरू हो पाए।
टूट रही है जर्मन चुप्पी
2022 के अंत में नेतन्याहू जब फिर से इसराइल के प्रधानमंत्री बने तो जर्मन चांसलर ओलाफ शॉत्ल्स ने उन्हें बधाई दी। बधाई संदेश में दोनों देशों की 'गहरी दोस्ती' का जिक्र किया। लेकिन अब इसराइली सरकार एक के बाद एक ऐसे कदम उठा रही हैं जिससे जर्मनी असहज महसूस कर रहा है। इन कदमों में न्यायिक सुधार, मृत्युदंड को फिर से बहाल करने में दिलचस्पी और फलस्तीन इलाके में बस्तियों के विस्तार जैसी योजनाएं हैं।
जर्मन सरकार के प्रवक्ता श्टेफान हेबेश्ट्राइट ने 2 देश फॉर्मूले को सपोर्ट करने के लिए न्यूज कॉन्फ्रेंस का सहारा लिया। जर्मनी के कैबिनेट मंत्रियों ने भी हाल के दिनों में इसराइल में बढ़ते अतिदक्षिणपंथी रुझान की आलोचना की है। जर्मनी के न्याय मंत्री मार्को बुशमन ने इसराइल दौरे के दौरान 'उदारवादी लोकतंत्र की रक्षा' का मुद्दा उठाया। बुशमन ने 'कानून के राज को खतरे' की चेतावनी भी दी।
इसराइल की ऐसी आलोचना जर्मनी के लिए दुर्लभ मानी जाती रही है, लेकिन अब यह चुप्पी टूट रही है। हाल ही में जब इसराइली विदेश मंत्री बर्लिन आए तो जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा, 'मैं इस तथ्य को नहीं छुपाऊंगी कि हम बाहर से चिंतित हो रहे हैं।'
इसराइल में बीते कुछ हफ्तों से न्यायिक सुधारों के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में बेयरबॉक ने कहा कि मजबूत लोकतंत्र को 'बहुमत के फैसलों की समीक्षा कर सकने वाली स्वतंत्र न्यायपालिका' की जरूरत होती है।