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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 14 दिसंबर 2021 (18:30 IST)

जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा से जोड़ने पर सहमत नहीं भारत, रूस

जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा से जोड़ने पर सहमत नहीं भारत, रूस - India, Russia do not agree on climate change
जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा से जोड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र में लाए गए एक प्रस्ताव का भारत और रूस ने विरोध किया है। चीन से खुद को मतदान से दूर रखा जबकि 15 से 12 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया।
 
नाइजर और आयरलैंड द्वारा समर्थित इस प्रस्ताव का मसौदा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सामने लाया गया था। मसौदे में महासचिव अंटोनियो गुटेरेश से मांग की गई थी कि वो 'जलवायु से संबंधित खतरों को कॉन्फ्लिक्ट रोकने की व्यापक रणनीतियों में एक केंद्रीय अंश के रूप में समाहित करें।
 
मसौदे को परिषद के 15 में से 12 सदस्यों का समर्थन मिला। भारत ने मसौदे का विरोध किया, रूस ने वीटो ही लगा दिया और चीन ने खुद को मतदान से बाहर रखा। भारत का कहना था कि ग्लोबल वॉर्मिंग मुख्य रूप से आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ विषय है, ना कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से।
 
विरोध पर नाराजगी
 
मसौदे ने महासचिव से यह भी मांग की थी कि परिषद जिन मुद्दों की बात करता है उन पर जलवायु परिवर्तन का क्या 'सुरक्षात्मक असर' पड़ेगा इस पर वो 2 साल के अंदर एक रिपोर्ट दें और यह भी बताएं कि इन खतरों का सामना कैसे किया जा सकता है।
 
गोपनीयता की शर्त पर कुछ देशों के राजनयिकों ने कहा कि रूस के विरोध की वजह समझ नहीं आई, क्योंकि प्रस्ताव अपने आप में 'रैडिकल नहीं था। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि रूस के वीटो का 'कोई औचित्य' नहीं था।
 
उन्होंने कहा कि जलवायु संकट एक सुरक्षा संकट है। आयरलैंड की राजदूत जेराल्डिन बायर्न नेसन ने मतदान के पहले कहा था कि यह प्रस्ताव सिर्फ 'एक विनम्र पहला कदम' है। उन्होंने कहा कि हमें सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के बीच इस संबंध को 'बेहतर समझने की जरूरत है' और 'हमें इसे वैश्विक स्तर पर देखने की जरूरत है।
 
वीटो पर सवाल
 
नाइजर के राजदूत अब्दो अबारी ने मसौदे के विरोध को निकट दृष्टि का फैसला बताया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय से ही परिषद के स्थायी सदस्यों यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन के पास वीटो की ताकत रही है। मतदान के बाद नेसन और अबारी ने परिषद में वीटो की ताकत को 'बीते समय की वस्तु' बताया।
 
उन्होंने कहा कि अगर यह परिषद बदलाव को स्वीकार नहीं करती तो यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के अपने उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर पाएगी। हम जिस लम्हे में जी रहे हैं और आज अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए जो खतरे हैं उन्हें इस परिषद को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
 
रूस ने हाल में सुरक्षा परिषद में कई बार वीटो की शक्ति का इस्तेमाल किया है। इनमें इथियोपिया से लेकर लीबिया तक और सूडान से लेकर केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य तक के मुद्दे शामिल हैं। चीन ने अक्सर रूस के जैसा ही रुख अपनाया है और जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका ने भी इसका मुकाबला करने के लिए कुछ खास नहीं किया है।
 
जलवायु परिवर्तन का असर
 
रूस के राजदूत वसीली नेबेन्जिया ने कहा कि इस मसौदे से जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कर रहे दूसरे मंचों के साथ 'भ्रांति और द्विगुणन होगा। उन्होंने कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद के बीच कोई सीधा संबंध बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है।
 
अभी तक संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों पर चर्चा यूएन फ्रेमवर्क ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसी) में होती है। इसके 190 सदस्य हैं जो साल में कई बार मिलते हैं। लेकिन कुछ देशों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन का अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर क्या असर पड़ेगा इस पर चर्चा कम होती है।
 
ये देश जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले भोजन और पानी की कमी, जमीन और जीविकाओं का खोना और अंतरराष्ट्रीय प्रवासन पर चर्चा करना चाहते हैं। इस प्रस्ताव के समर्थकों का मानना है कि इन चीजों का संयुक्त राष्ट्र के फील्ड मिशनों की तैनाती पर भी असर पड़ता है।
 
सीके/एए (एएफपी)
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