इस साल की शुरुआत ही हिमालय के इलाके में चले आ रहे भारत और चीन के सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बेनतीजा रही एक बातचीत से हुई। एशिया की दो बड़ी ताकतों के बीच चली आ रही असहमति खतरनाक है।
भारत और चीन के बीच हिमालय की विवादित सीमा पर साल के इस समय ज्यादा गतिविधियां नजर नहीं आ रही हैं। इलाके का ज्यादातर हिस्सा बर्फ से ढंका हुआ है और शून्य से नीचे तापमान में भी सैनिक गश्त लगा रहे हैं। वास्तव में इससे ठीक पता चल जाता है कि दोनों देशों के बीच बातचीत किस हाल में है।
भारत और चीन ने जुलाई 2020 के बाद अब तक 20 बार बातचीत की है। यह वही समय था जब दोनों देशों के सैनिकों की गलवान नदी घाटी में झड़प हुई थी और कम से कम 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी। चीन की सेना ने बाद में बताया कि उसके चार सैनिकों की मौत हुई।
पूर्वी लद्दाख के इलाके में मौजूद गलवान घाटी दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूद उन इलाकों में हैं जिन्हें लेकर विवाद चलता रहा है। भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच जनवरी की शुरुआत में हुई ताजा बातचीत बिना किसी प्रगति के ही खत्म हो गई। तीन महीने पहले हुई बातचीत का भी यही हाल हुआ था।
नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में चायनीज स्टडीज की प्रोफेसर गीता कोचर का कहना है, "बातचीत में रुकावटों का होना स्वाभाविक है।" कोचर ने डीडब्ल्यू से कहा कि करीब 3500 किलोमीटर लंबी अस्पष्ट सीमा की रेखा कहां से गुजरे इसे लेकर दोनों देशों की एक राय नहीं है। बहुत सारे क्षेत्रों पर भारत और चीन दोनों दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों में, "खासतौर से जब सीमाओं को लेकर समझ में इतना फर्क हो तो मामला बहुत गहरा और लंबे समय तक लंबित हो जाता है।"
भारत और चीन के बीच हिमालय में ठहराव
दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ चायनीज स्टडीज की पूर्व निदेशक अलका आचार्य का कहना है, "चीन ने जिन इलाकों पर अब कब्जा कर लिया है वो उसे छोड़ कर नहीं जाएंगे।" आचार्य ने डीडब्ल्यू से कहा, "उन्होंने पहले ऐसा कभी नहीं किया है और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि वो इतिहास को दोबारा लिखेंगे।"
भारत और चीन दोनों का कब्जा कुछ ऐसे हिस्से पर है जिसे दूसरा पक्ष अपना बताता है। भारत लगातार चीनी सेना पर घुसपैठ के आरोप लगाता रहा है। सीमा रेखा के पास चीन की सेनाओं की तरफ से किए जा रहे निर्माण को लेकर कार्रवाई करने का भारत पर बहुत दबाव बन रहा है। इसी महीने भारत में राज्यों के चुनाव होने हैं। आचार्य का कहना है, "भारत सरकार ऐसा कोई फैसला नहीं लेगी जिसे चीन के सामने हथियार डालने की तरह से देखा जाए। " इसके साथ ही आचार्य ने कहा इसका मतलब है कि सीमा पर चल रही बातचीत को लंबी प्रक्रियाओं में खींचा जाएगा।
कोचर का कहना है, "2022 में मैं जरूर बातचीत गहरी होने की तरफ बढ़ते जरूर देखती हूं। इसके साथ ही उन्होने यह भी कहा कि सीमारेखा तय करने का काम इतनी जल्दी नहीं होगा। कोचर का कहना है, "तनाव जब उभरेंगे तब उनसे उबरने के तरीके और तंत्र भी विकसित होंगे, बावजूद इसके मूल समस्या बनी रहेगी। एक बात जरूर माननी चाहिए कि भारत और चीन दोनों के पास मुद्दों से निपटने के अलग तरीके हैं इसका कुछ कारण तो यह है कि दोनों की राजनीतिक संरचना अलग है इसके साथ ही दोनों की वैश्विक स्थिति भी अलग है।"
कोचर ने कहा, "हर चीज एक एक करके आगे बढ़ेगी और यही होना भी चाहिए जिसमें दोनों पक्षों के हित और फायदों का ख्याल रखा जाए, इसका मतलब है कि बिना किसी बाधा के लगातार बातचीत ही एकमात्र रास्ता है।"
क्या हिंसक झड़पों से बचा जा सकता है?
गलवान घाटी की घटना के बाद कुछ और छोटी मोटी घटनाएं हुई हैं यहां तक कि सीमा पर 45 सालों में पहली बार गोलीबारी भी हुई, हालांकि इनमें किसी की जान नहीं गई। दोनों पक्षों में खूनी झड़प जून, 2020 में ही हुई थी।
कई दौर की बातचीत के बावजूद परमाणु ताकत से लैस दोनों पड़ोसियों में तनाव घटने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों पक्षों ने दसियों हजार सैनिकों को तैनात कर रखा है और साथ ही टैंक और लड़ाकू विमानों समेत भारी सैन्य हथियारों का जमावड़ा भी है।
इसके साथ ही भारत और चीन के सैनिक नए साल पर गलवान घाटी में अपने अपने देशों का झंडा भी फहरा चुके हैं। आचार्य का कहना है, "स्थिति में एक तरह की आशंका भरी हुई और हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं। इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों और हथियारों की तैनाती को देखते हुए मुझे लगता है कि कुल मिला कर हालात में बहुत ज्यादा अनिश्चितता और तनाव है।" आचार्य ने इस ओर भी ध्यान दिलाया, "दूसरी तरफ बातचीत का एक हिस्सा सिर्फ इसी बात पर केंद्रित है कि फिर कोई झड़प ना हो जाए।"
कोचर को उम्मीद है कि दोनों पक्ष और एक और टकराव टालने के लिए जो कुछ भी संभव है जरूर करेंगे। उन्होंने कहा, "इस बात की आशंका बहुत कम है कि गलवान जैसी घटना सीमा के किसी भी हिस्से में फिर से होगी हालांकि साल के पहले आधे हिस्से में एक दूसरे से दूर होने की प्रक्रिया थोड़ी धीमी रहेगी। 2022 के दूसरे आधे हिस्से में प्रगति और नतीजों की उम्मीद है।"
सीमा विवादों का बोझ भारत चीन के आर्थिक संबंधों पर
सीमा को लेकर चल रहे विवादों ने भारत चीन संबंधों के दूसरे आयामों पर भी असर डाला है, खासतौर से कारोबार और निवेश पर। गलवान घाटी की घटना के बाद भारत ने कई दर्जन चीनी ऐप पर रोक लगा दी। इसके साथ ही संवेदनशील कंपनियों और क्षेत्रों में चीन के निवेश को भी सीमित किया गया। चीन से होने वाले आयात की अतिरिक्त जांच शुरू कर दी गई।
हालांकि द हिंदू अखबार के मुताबिक 2021 में दोनों देशों के बीच आपसी कारोबार 125 अरब डॉलर के पार चला गया जिसमें चीन से होने वाला आयात करीब 100 अरब डॉलर का है।
आचार्य का कहना है, "इस समय भारत के विकास की कहानी में चीन की भूमिका का सवाल बेहद अहम है। जिस डाली पर बैठे हों उसे काटने के बारे में सोचना बिल्कुल बेमतलब है और भारत के चीन के संबंधों में यह डाली आर्थिक रिश्ते हैं। भारत की स्थिति थोड़ी फायदे वाली है क्योंकि चीन को एशिया में इतना बड़ा बाजार और कहां मिलेगा।"
कोचर इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है, "अच्छे आर्थिक संबंध सीमा विवादों को हल्का कर देंगे यह पूरी धारणा ही मजाक है। कारोबार बढ़ने के बावजूद रणनीतिक मामलों की जो कुल मिला कर गति है उसका असर संबंधों पर है। हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि सीमा के मुद्दे पूरे संबंधों के लिए अहम बने रहेंगे।"
रिपोर्ट : आदित्य शर्मा