भारत के विभिन्न राज्यों में बिजली के झटकों से मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को मानें तो देश में बिजली के झटकों से रोजाना औसतन तीस लोगों की मौत हो जाती है।
दूर-दराज के इलाकों से कई आंकड़े प्रशासन तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे में यह तादाद और ज्यादा होने का अंदेशा है। खासकर बारिश के मौसम में यह समस्या बेहद गंभीर हो जाती है। इस दौरान बिजली के झटकों से काफी लोगों की मौत हो जाती है। बिजली विभाग के अधिकारियों की लापरवाही, बिजली के अवैध कनेक्शन के साथ ही विभिन्न एजेंसियों की ओर से इसका दोष एक-दूसरे पर मढ़ने की प्रवृत्ति ही इसकी प्रमुख वजह है। बिजली के तारों को जमीन के नीचे यानी अंडरग्राउंड कर इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन इसकी राह में भी कई दिक्कतें हैं और यह ओवरहेड तारों के मुकाबले काफी खर्चीला है।
समस्या
भारत में हर गुजरते साल के साथ बिजली के झटकों से होने वाली मौतों की तादाद बढ़ रही है। राज्य व केंद्र सरकारों के साथ-साथ संबंधित एजेंसियां भी इस मामले में उदासीन हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले वर्ष 2015 में देश के विभिन्न हिस्सों में बिजली के झटकों से 9,986 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में मरने वालों की तादाद एक-एक हजार से ज्यादा थी। वर्ष 2011 में यह तादाद 8,945, 2012 में 8,750, 2013 में 10,218 और वर्ष 2014 में 9,606 थी। लेकिन इन आंकड़ों के तेजी से बढ़ने के बावजूद संबंधित अधिकारियों ने सुरक्षा के लिहाज से एहतियाती उपाय करने की दिशा में कोई पहल नहीं की है जबकि यह समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2012-13 से 2018-19 यानी बीते सात वर्षों में राज्य में बिजली लगने से मरने वालों की तादाद दोगुनी हो गई है। वर्ष 2012-13 में जहां यह संख्या 570 थी वहीं बीते साल यह बढ़ कर 1120 तक पहुंच गई। किसी बड़े हादसे के बाद कुछ दिनों तक तो सरकार व बिजली विभाग सक्रिय रहता है। लेकिन उसके बाद फिर सब कुछ पहले की तरह हो जाता है। नतीजतन लोगों की मौत का सिलसिला जारी रहता है। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजली के आधारभूत ढांचे में सुधार, पुराने ओवरहेड तारों को बदलने और कई इलाकों में लगे बांस के खंभों की जगह कांक्रीट के खंभे लगाने की योजना बनाई है।
बीते सात सालों के दौरान 5,700 से ज्यादा लोगों की मौत वाले इस राज्य में अब इस दिशा में मामूली ही सही, पहल की जा रही है। देश के ज्यादातर हिस्सो में भारी बारिश और उसके बाद आने वाली बाढ़ की स्थिति में बिजली के खंभे या तारों के टूट कर पानी में गिरने की वजह से कई लोग असमय ही मौत के शिकार हो जाते हैं।
समाधान
बिजली के झटकों से होने वाली मौतों व हादसों को रोकने के लिए अक्सर ओवरहेड तारों को अंडरग्राउंड करने का सुझाव दिया जाता है। लेकिन यह प्रक्रिया काफी खर्चीली है। इसके अलावा इसमें कई व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत जैसे विकासशील देश में सुरक्षा के मामले में अक्सर लापरवाही बरती जाती है और मानकों के मुताबिक बिजली के तारों व उपकरणों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। बिजली के दो खंभों के बीच की दूरी सामान्य तौर पर 50 फीट और खंभों की ऊंचाई कम से कम 18 फीट होनी चाहिए। लेकिन ज्यादातर मामलो में इन दिशानिर्देशों की अनदेखी की जाती है। तारों के ओवरहेड होने की वजह से तूफान के दौरान उनके टूट कर हादसों को जन्म देने का अंदेशा लगातार बना रहता है। हाल में उत्तर प्रदेश के संभल जिले में ऐसे ही एक बहादसे में ट्यूबवेल में नहा रहे चार बच्चों की मौत हो गई थी।
विशेषज्ञों का कहना है कि बिजली के हाई-टेंशन तारों को अंडरग्राउंड कर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। डेनमार्क और जर्मनी पहले ही ऐसा कर चुके हैं। लेकिन बिजली कंपनियां अमूमन इससे बचने का प्रयास करती हैं। इसकी वजह इस प्रक्रिया का बेहद खर्चीला होना है। पश्चिम बंगाल में बिजली विभाग के एक पूर्व अधिकारी अमिय कुमार सेन बताते हैं, "ओवरहेड के मुकाबले जमीन के भीतर केबल बिछाना आठ गुना ज्यादा खर्चीला है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई मामलों में लोग लापरवाही की वजह से भी जान से हाथ धो बैठते हैं। लोगों को हाई टेंशन तारों से दूर घर बनाने की सलाह दी जाती है। लेकिन ज्यादातर लोग इस चेतावनी पर ध्यान नहीं देते।”
एक विशेषज्ञ मनोहर दास कहते हैं, "खर्च की बात छोड़ भी दें तो अंडरग्राउंड केबल के जरिए लंबी दूरी तक हाई टेंशन तारों के जरिए बिजली की सप्लाई में नुकसान ज्यादा है। इसके साथ ही ओवरहेड तारों में किसी समस्या की स्थिति में उसका पता लगाना आसान है। लेकिन अंडरग्राउंड होने की स्थिति में जमीन की खुदाई करनी होगी।” वह कहते हैं कि देश में विभिन्न सरकारी विभागों के बीच तालमेल नहीं होने की वजह से सड़क बनाने या दूसरे कार्यों के दौरान खुदाई की वजह से केबल कटने के कारण हादसों का अंदेशा बना रहेगा।
मानवाधिकार कार्यकर्ता स्वरूप गांगुली कहते हैं, "आम लोगों में सुरक्षा के प्रति जागरुकता का भी अभाव है। बेहतर उपकरण इस्तेमाल नहीं करने और ठीक से अर्थिंग नहीं होने की वजह से घर में इस्तेमाल होने वाली सौ मिलीएंपीयर वाली 220 वोल्ट की बिजली भी जानलेवा साबित हो सकती है।” विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में सरकारों के अलावा आम उपभोक्ताओं की भूमिका भी अहम है। कई मामलों में बिजली के अवैध कनेक्शन भी हादसों को जन्म देते हैं।
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता