नई पीढ़ी को सीख देती कविता : संस्कारों की सरस बेल ये...
-हरीश दुबे
घर में होती बड़े-बूढ़ों की
छाया नीम सी प्यारी
इनके अनुभव से मिलती है
मंजिल की उजियारी
संस्कारों की सरस बेल ये
है स्नेहिल धारा
इनके ही आदर्शों ने तो
घर-संसार संवारा
इनके मधुर स्वरों से गूंजे
दोहे प्यारे-प्यारे
धर्म-आस्था की थाती के
हैं बुजुर्ग रखवारे
इनके बोलों में जीवन की
तपे स्वर्ण सी आभा
परख जौहरी सी रखते हैं
खूब तराशे प्रतिभा
करें बुजुर्गों का आदर हम
भारतीय कहलाएं
हरीश देव वंदित हैं गुणीजन
अपना शीश नवाएं।
साभार- देवपुत्र