जर्नल में दी गई चेतावनी, जलवायु संबंधी कार्रवाई महामारी के खत्म होने का इंतजार नहीं कर सकती
द लांसेट और नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया समेत 220 से अधिक मशहूर जर्नल में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया है कि विश्व के नेताओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने, जैवविविधता बहाल करने और स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।
यह संपादकीय संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से पहले प्रकाशित किया गया है। यह नवंबर में ब्रिटेन के ग्लासगो में होने जा रहे कॉप 26 जलवायु सम्मेलन से पहले की आखिरी अंतरराष्ट्रीय बैठकों में एक है।
संपादकीय में चेतावनी दी गई है कि भविष्य में वैश्विक जनस्वास्थ्य पर बहुत बड़ा खतरा, धरती के तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने और प्रकृति को बहाल करने के वास्ते पर्याप्त कदम उठाने में वैश्विक नेताओं की निरंतर विफलता है।
नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया के प्रधान संपादक एवं संपादकीय के सह लेखकों में से एक पीयूष साहनी ने कहा कि दुनियाभर में प्रतिकूल मौसम के हालिया उदाहरण ने उस हकीकत को सामने ला दिया है जो जलवायु परिवर्तन है। उन्होंने कहा कि हमें कदम उठाने ही चाहिए वरना बहुत विलंब हो जाएगा।
हमें भावी पीढ़ियों को जवाब देना पड़ेगा। लेखकों ने कहा कि उत्सर्जन घटाने और प्रकृति का सरंक्षण करने के हालिया लक्ष्य स्वागत योग्य हैं लेकिन वे काफी नहीं हैं, तिस पर भरोसेमंद लघुकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाओं से उनका मिलान करना जरूरी है।
उन्होंने सरकारों से परिवहन प्रणाली, शहरों, खाद्यान्न के उत्पादन एवं वितरण, वित्तीय निवेश के लिए बाजार एवं स्वास्थ्य प्रणाली के स्वरूप में तब्दीली में सहायता पहुंचाकर समाज एवं अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाने में दखल देने की अपील की है।
द लांसेट के प्रधान संपादक रिचर्ड होर्टन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का तत्काल समाधान दुनियाभर में जनकल्याण को आगे बढ़ाने के लिए बहुत बड़े अवसरों में से एक है। होर्टन ने कहा कि स्वास्थ्य समुदाय को राजनीतिक नेताओं को वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री के नीचे रखने के वास्ते उनके कदमों के प्रति जवाबदेह ठहराने के लिए अपना आलोचक स्वर उठाने का अधिकाधिक प्रयास करना चाहिए।
संपादकीय में दलील दी गई है कि पर्याप्त वैश्विक कार्रवाई केवल तभी हासिल हो सकती है जब उच्च आय वाले देश बाकी दुनिया का सहयोग करने एवं अपने उपभोग को कम करने के लिए ज्यादा कुछ करे। उसमें कहा गया है कि विकसित देशों को जलवायु वित्त पोषण बढ़ाना चाहिए, प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर देने के लंबित वादे को पूरा करना चाहिए तथा उपशमन एवं अनुकूलन पर बल देना चाहिए एवं स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन में सुधार लाना चाहिए। (भाषा)