केरोनावायरस (Coronavirus) क़रीब तीन वर्षों से दुनिया की नाक में दम किए हुए है। इसराइली वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक ऐसी खोज की है, जो अब इस वायरस की नाक में दम करने की क्षमता रखती है।
दो एंटीबॉडी स्पष्ट रूप से कोरोना वायरस के सभी ज्ञात रूपों को अहानिकारक बना सकते हैं। वे वायरस के उस हिस्से से चिपक जाते हैं, जो आज तक शायद ही उत्परिवर्तित हुआ है। तीन वर्ष पूर्व महामारी की शुरुआत के बाद से, वायरस के बार-बार ऐसे रूप सामने आए हैं, जो टीकाकरण के या संक्रमण के बाद मिलने वाली सुरक्षा को भी चकमा दे जाते हैं। इसराइली राजधानी तेल अवीव के विश्वविद्यालय की नतालिया फ़्रोएंड के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ टीम ने अब उन्हें निरस्त करने का उपाय ढूंढ निकाला है।
इस टीम ने ऐसे कुछ चुने हुए एंटीबॉडी (प्रतिपंड/रोगप्रतिकारक) की पहचान की है, जो कोरोना वायरस के उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) वाले सभी ज्ञात रूपों को अच्छी तरह निष्क्रिय कर सकते हैं। 'कम्युनिकेशंस बायोलॉजी' नाम की विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित इस टीम के अध्ययन के अनुसार, वसंत 2020 में Sars-CoV-2 से संक्रमित हुए पहले रोगियों में से कुछ अभी भी मूल वायरस के प्रति, और काफ़ी हद तक उसके नए उत्परिवर्ति स्वरूपों के प्रति भी प्रतिरक्षित हैं। समझा जाता है कि जिन लोगों के रक्त में कोरोना को हराने वाले शुरू-शुरू के पहले संक्रमितों और रोगियों जैसे एंटीबॉडी होते हैं, उन्हें पुन: संक्रमित होने की चिंता बहुत कम ही होनी चाहिए।
9 एंटीबॉडी की पहचान हुई : विशेषज्ञों ने ऐसे लोगों के शरीर में प्राकृतिक संक्रमण से बने नौ एंटीबॉडी को पहचान कर अलग किया और वायरस के विभिन्न नए स्वरूपों पर उनके असर का प्रयोगशाला में परीक्षण किया। ये एंटीबॉडी इसराइल के ही उन रोगियों के रक्त से मिले थे, जो 2020 वाले वसंतकाल में 'वूहान स्ट्रेन' कहलाने वाले मूल चीनी कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे। इसराइल में भी उस समय इस वायरस का प्रकोप तेज़ी से फैला था।
प्रयोगशाला परीक्षणों में देखा गया कि TAU-1109 नाम वाले एंटीबॉडी ने कोरोना वायरस के डेल्टा संस्करण को 90 प्रतिशत तक, और इस समय अपना प्रकोप दिखा रहे ओमीक्रोन संस्करण को 92 प्रतिशत तक निस्क्रिय कर दिया। TAU-2310 नामक एक दूसरे एंटीबॉडी ने परीक्षणों में 97 प्रतिशत डेल्टा वायरस और 84 प्रतिशत ओमीक्रोन वायरस को नष्ट कर दिया।
वायरस के उत्परिवर्तनों की कमज़ोरी जानी : इन अवलोकनों से नतालिया फ़्रोएंड आश्वस्त हैं कि उन्होंने कोरोना वायरस के उत्परिवर्तनों की कमज़ोरी जान ली है। ये उत्परिवर्तन वायरस के उस तथाकथित 'स्पाइक प्रोटीन' में होते हैं, जिसकी सहायता से वायरस शरीर की कोशिकाओं पर के ACE2 नाम के रिसेप्टर (ग्राही/अभिग्राही) से होकर कोशिकाओं के भीतर घुसता है। कोशिकाओं के भीतर घुसकर वायरस अपने जीन उनके जीनों में इस तरह मिला देता है कि कोशिकाएं वायरस की क्लोनिंग करते हुए उसकी हूबहू नकलें बनाने लगती हैं। शरीर में वायरस की संख्या दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ने लगती है।
इसराइली शोधकों ने पाया कि हर कोरोना वायरस मुख्य रूप से कोशिकाओं के ACE2 रिसेप्टर पर ही अपने स्पाइक प्रोटीन में उत्परिवर्तन करता है। इसलिए कोई एंटीबॉडी इस रिस्प्टर से जुड़ कर उसे यदि अवरुद्ध करदे, तो वायरस का 'स्पाइक प्रोटीन' काम नहीं कर पाएगा। तब वायरस भी अंततः निरापद हो जाएगा।
नए खोजे गए ज्यादातर एंटीबॉडी, कोरोना वायरस को हानिरहित बनाने के लिए ACE2 रिसेप्टर को ही चुनते हैं। वायरस के नए उत्परिवर्तित संस्करण इसे पहचान नहीं पाते कि कोशिका के भीतर घुसने की ACE2 रिसेप्टर वाली उनकी पसंदीदा जगह को एक ख़ास एंटिबॉडी ने छेंक रखा है।
स्पाइक प्रोटीन : फ़्रोएंड कहती हैं, एंटीबॉडी TAU-1109 और TAU-2310 वायरस के स्पाइक प्रोटीन को एक एक ऐसी जगह पर रोकते हैं, जो 'किसी कारण से शायद ही कभी उत्परिवर्तित होता है।' इसीलिए, वे कई प्रकार के वायरसों से बचाव में मदद कर सकते हैं। इस खोज की पुष्टि इसराइल के 'बार इलान विश्वविद्यालय' और सैन डिएगो में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं ने भी की है।
नतालिया फ़्रोएंड का कहना है कि टीकों से मिलने वाली प्रतिरक्षा में समय के साथ गिरावट के कारण कोरोना महामारी इतनी घातक बन सकी। उनके शब्दों में, 'जिन लोगों को जन्म के कुछ समय बाद ही चेचक से बचाव का टीका लगाया गया था, आज 50 साल का होने पर भी उनमें इतने एंटीबॉडी हैं कि वे काफ़ी हद तक 'मंकीपॉक्स' के संक्रण से भी सुरक्षित हैं।' इसके विपरीत, कोविड-19 से बचाव के एंटीबॉडी की संख्या तीन महीने बाद काफी कम हो जाती है। लोग बार-बार संक्रमित होते हैं, भले ही उन्हें तीन बार टीका लगा हो।
दवा के रूप में दिया जा सकता है : फ़्रोएंड के अनुसार, उनकी टीम ने जिन एंटीबॉडी की पहचान की है, उन्हें संक्रमण के बाद के पहले कुछ दिनों में दवा के रूप में दिया जा सकता है और इस तरह शरीर में वायरस के प्रसार को रोका जा सकता है। कमज़ोर प्रतिरक्षण प्रणाली वाले ऐसे लोगों को इससे मदद मिल सकती है, जिनका शरीर टीका लगा होने पर भी कोरोना के खिलाफ विश्वसनीय सुरक्षा का निर्माण नहीं कर पाता।
नतालिया फ़्रोएंड का सुझाव है कि ऐसे नए टीके बनाने की बात भी सोची जा सकती है, जो हमारे श्वसनतंत्र को म्यूकोसल (श्लेष्मिक) प्रतिरक्षा प्रदान करते हों। नए प्रकार के संक्रमणों के खिलाफ लंबे समय तक चलने वाले संरक्षण इस तरह के भी हो सकते हैं कि टीका लगावाने वाले लोगों का शरीर इसराइल में खोजे गए ऩए एंटीबॉडी खुद ही बनाए।
यह सब बाद की बातें हैं। सबसे पहले तो अभी यही देखना है कि इसराइल में हुई यह खोज प्रयोगशाला से निकल कर व्यावहारिकता के धरातल पर कब पहुंचेगी और तब कितनी खरी एवं कारगर सिद्ध होती है।