अमेरिका की हार का नतीजा हैं अफगानिस्तान के खूनी मंजर
वॉशिंगटन। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में आत्मघाती बम विस्फोट में 13 अमेरिकी सैनिकों और 170 से अधिक अफगानों के मारे जाने के बाद अमेरिका के सुरक्षा बल जहां मंगलवार तक अपने नागरिकों को बाहर निकालने के लिए प्रयासरत हैं वहीं विशेषज्ञ वहां के खून-खराबे को अमेरिकी हार का नतीजा बताते हैं।
अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़े युद्ध के बाद अमेरिका अफगानिस्तान से वापस जा रहा है। जिस तालिबान के खिलाफ अमेरिका ने पहले लड़ाई लड़ी थी, उसी के हाथ में वह देश को छोड़कर जा रहा है।
यह पूछे जाने पर कि वर्तमान संकट को लेकर क्या राष्ट्रपति बाइडन इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं तो व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि वर्तमान में ऐसी बातों पर गौर करने के लिए वक्त नहीं है।
पुलित्जर पुरस्कार विजेता इतिहासकार जोसेफ इलिस ने कहा कि काबुल में दुनिया जो खून-खराबा देख रही है, वह अमेरिका की देश छोड़ने की खराब योजना या अक्षमता नहीं है, बल्कि यह उसकी हार है। उन्होंने कहा कि हम जब वहां गए थे और जो हालात थे हम अब भी वैसा ही देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब आप युद्ध हारते हैं तो ऐसा ही होता है।
काबुल एयरपोर्ट पर अतिरिक्त बल तैनात : तालिबान ने दो दिन पहले एक आत्मघाती हमले के बाद बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा होने से रोकने के लिए शनिवार को काबुल हवाई अड्डे के आसपास अतिरिक्त बलों को तैनात किया। अमेरिका को 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिकों की वापसी के काम को पूरा करना है और इससे पहले यह हमला हुआ था।
तालिबान ने हवाई अड्डे की ओर जाने वाली सड़कों पर अतिरिक्त जांच चौकियां बनाई हैं, जिनमें तालिबान के वर्दीधारी लड़ाके तैनात हैं। तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद देश से भागने की उम्मीद में पिछले दो हफ्तों में जिन इलाकों में लोगों की बड़ी भीड़ एकत्र हुई थी, वे अब काफी हद तक खाली थे।
हाल में काबुल हवाई अड्डे पर आत्मघाती धमाकों में 169 अफगानिस्तान के नागरिकों और 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जवाबी कार्रवाई करने का वादा किया था।