Chanakya ki kahani in hindi: आचार्य चाणक्य का नाम सभी ने सुना है। उनकी चाणक्य नीति बहुत प्रचलित है। सभी ने चाणक्य नीति के अनमोल वचन पढ़ें होंगे। आओ जानते हैं कि आखिर चाणक्य कौन थे, कैसे हुई थी उनकी मौत और क्या है उनके जीवन की कहानी।
कौन थे चाणक्य (who was chanakya): चाणक्य मगथ सीमावर्ती गांव के एक साधारण ब्राह्मण के पुत्र थे। उनके पिता का नाम चणक था। पिता ने उनका नाम कौटिल्य रखा था। अपनी पहचान छुपाने के लिए कौटिल्य ने अपना नाम विष्णु गुप्त रख लिया था। उन्होंने ही बाद में कौटिल्य नाम से अर्थशास्त्र लिखा और वात्सायन नाम से कामसूत्र लिखा।
चाणक्य की कहानी (Story of chanakya) :
चाणक्य के पिता की हत्या (Chanakya's father murdered): मगध के सीमावर्ती नगर में एक साधारण ब्राह्मण आचार्य चणक रहते थे। चणक मगथ के राजा से असंतुष्ण थे। चणक किसी भी तरह महामात्य के पद पर पहुंचकर राज्य को विदेशी आक्रांताओं से बचाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार से मंत्रणा कर धनानंद को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई।
लेकिन गुप्तचर के द्वारा महामात्य राक्षस और कात्यायन को इस षड्यंत्र का पता लग गया। उसने मगथ सम्राट घनानंद को इस षड्यंत्र की जानकारी दी। चणक को बंदी बना लिया गया और राज्यभर में खबर फैल गई कि राजद्रोह के अपराध में एक ब्राह्मण की हत्या की जाएगी। चणक के किशोर पुत्र कौटिल्य को यह बात पता चली तो वह चिंतित और दुखी हो गया। चणक का कटा हुआ सिर राजधानी के चौराहे पर टांग दिया गया। पिता के कटे हुए सिर को देखकर कौटिल्य (चाणक्य) की आंखों से आंसू टपक रहे थे। उस वक्त चाणक्य की आयु 14 वर्ष थी। रात के अंधेरे में उसने बांस पर टंगे अपने पिता के सिर को धीरे-धीरे नीचे उतारा और एक कपड़े में लपेट कर चल दिया।
चाणक्य की शपथ (Chanakya oath) : अकेले पुत्र ने पिता का दाह-संस्कार किया। तब कौटिल्य ने गंगा का जल हाथ में लेकर शपथ ली- 'हे गंगे, जब तक हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकाई हुई कोई वस्तु नहीं खाऊंगा। जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंग लूंगा तब तक यह शिखा खुली ही रखूंगा। मेरे पिता का तर्पण तभी पूर्ण होगा, जब तक कि हत्यारे धनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढ़ेगा...। हे यमराज! धनानंद का नाम तुम अपने लेखे से काट दो। उसकी मृत्यु का लेख अब मैं ही लिखूंगा।'
विष्णु गुप्त बनकर रहे चाणक्य (Chanakya Vishnu Gupta) : इसके बाद कौटिल्य ने अपना नाम बदलकर विष्णु गुप्त रख लिया। एक विद्वान पंडित राधामोहन ने विष्णु गुप्त को सहारा दिया। राधामोहन ने विष्णु गुप्त की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें तक्षशिला विश्व विद्यालय में दाखिला दिलवा दिया। यह विष्णु गुप्त अर्थात चाणक्य के जीवन की एक नई शुरुआत थी। तक्षशिला में चाणक्य ने न केवल छात्र, कुलपति और बड़े बड़े विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया बल्की उसने पड़ोसी राज्य के राजा पोरस से भी अपना परिचय बढ़ा लिया।
सिकंदर के आक्रमण के समय चाणक्य ने पोरस का साथ दिया। सिकंदर की हार और तक्षशिला पर सिकंदर के प्रवेश के बाद विष्णुगुप्त अपने गृह प्रदेश मगध चले गए और यहां से प्रारंभ हुआ उनका एक नया जीवन। उन्होंने विष्णुगुप्त नाम से शकटार से मुलाकात की। पिता का मित्र शकटार, जो अब बेहद ही वृद्ध हो चला था। चाणक्य ने देखा कि मेरे राज्य की क्या हालत कर दी है घनानंद ने। उधर, विदेशियों का आक्रमण बढ़ता जा रहा है और इधर ये दुष्ट राजा नृत्य, मदिरा और हिंसा में डूबा हुआ है।
मगध के दरबार में चाणक्य की ललकार (Chanakya challenge in Magadha Darbar) : एक बार विष्णु गुप्त भरीसभा में पहुंच गए। चाणक्य ने उस दरबार में क्रोधवश ही अपना परिचय तक्षशिला के आचार्य के रूप में दिया और राज्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने यूनानी आक्रमण की बात भी बताई और शंका जाहिर की कि यूनानी हमारे राज्य पर भी आक्रमण करने वाला है। इस दौरान उन्होंने राजा धनानंद को खूब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि मेरे राज्य को बचा लो महाराज। लेकिन भरी सभा में आचार्य चाणक्य का अपमान हुआ, उपहास उड़ाया गया।
चंद्रगुप्त को बनाया राजा (Chandragupta was made king) : बाद में चाणक्य फिर से शकटार से मिलते हैं और तब शकटार बताते हैं कि राज्य में कई असंतोषी पुरुष और समाज है उनमें से एक है चंद्रगुप्त। चंद्रगुप्त मुरा का पुत्र है। किसी संदेह के कारण धनानंद ने मुरा को जंगल में रहने के लिए विवश कर दिया था। अगले दिन शकटार और चाणक्य ज्योतिष का वेश धरकर उस जंगल में पहुंच गए, जहां मुरा रहती थी और जिस जंगल में अत्यंत ही भोले-भाले लेकिन लड़ाकू प्रवृत्ति के आदिवासी और वनवासी जाति के लोग रहते थे। वहां चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजा का एक खेल खेलते हुए देखा। तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और फिर शुरु हुआ चाणक्य का एक और नया जीवन।
कौटिल्य उर्फ विष्णु गुप्त अथार्त चणक पुत्र चाणक्य ने तब चंद्रगुप्त को शिक्षा और दीक्षा देने के साथ ही भील, आदिवासी और वनवासियों को मिलाकर एक सेना तैयार की और धननंद के साम्राज्य को उखाड़ फेंककर चंद्रगुप्त को मगथ का सम्राट बनाया। बाद में चंद्रगुप्त के साथ ही उसके पुत्र बिंदुसार और पौत्र सम्राट अशोक को भी चाणक्य ने महामंत्री पद पर रहकर मार्गदर्शन दिया।
ऐसे हुई थी आचार्य चाणक्य की मौत? (Chanakya's death mystery): आचार्य चाणक्य की मौत एक रहस्य है। इतिहासकारों में इसको लेकर मतभेद है। हालांकि कुछ शोधकर्ता उनकी मृत्यु को लेकर तीन तरह की थ्योरी प्रस्तुत करते हैं। आओ जानते हैं कि आखिर आचार्य चाणक्य की मौत कैसे हुई थी।
* चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिंदुसार मौर्य और उनके पुत्र सम्राट अशोक थे। आचार्य चाणक्य ने तीनों का ही मार्ग दर्शन किया है। चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व 371 में हुआ था जबकि उनकी मृत्यु ईसा.पूर्व. 283 में हुई थी।
* चाणक्य का उल्लेख मुद्राराक्षस, बृहत्कथाकोश, वायुपुराण, मत्स्यपुराण, विष्णुपुराण, बौद्ध ग्रंथ महावंश, जैन पुराण आदि में मिलता है। बृहत्कथाकोश अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम यशोमती था।
* मुद्राराक्षस के अनुसार चाणक्य का असली नाम विष्णुगुप्त था। चाणक्य के पिता चणक ने उनका नाम कौटिल्य रखा था। चाणक्य के पिता चणक की मगध के राजा द्वारा राजद्रोह के अपराध में हत्या कर दी गई थी।
* चाणक्य ने तक्षशिला के विद्यालय में अपनी पढ़ाई पुरी की। कौटिल्य नाम से 'अर्थशास्त्र' एवं 'नीतिशास्त्र' लिखा। कहते हैं कि वात्स्यायन नाम से उन्होंने ही 'कामसुत्र' लिखा था।
*चाणक्य ने सम्राट पुरु के साथ मिलकर मगथ सम्राट धननंद के साम्राज्य के खिलाफ राजनीतिक समर्थन जुटाया और अंत में धननंद के नाश के बाद उन्होंने चंद्रगुप्त को मगथ का सम्राट बनाया और खुद महामंत्री बने।
* चंद्रगुप्त के दरबार में ही मेगस्थनीज आया था जिसने 'इंडिका' नामक ग्रंथ लिखा। चाणक्य के कहने पर सिकंदर के सेनापति सेल्युकस की बेटी हेलेना से चंद्रगुप्त ने विवाह किया था।
* आचार्य चाणक्य की मौत के बारे में कई तरह की बातों का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि वे अपने सभी कार्यों को पूरा करने के बाद एक दिन एक रथ पर सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चले गए थे और उसके बाद वे कभी नहीं लौटे।
* कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उन्हें मगथ की ही रानी हेलेना ने जहर देकर मार दिया गया था। कुछ मानते हैं कि हेलेना ने उनकी हत्या करवा दी थी।
* कहते हैं कि बिंदुसार के मंत्री सुबंधु के षड़यंत्र के चलते सम्राट बिंदुसार के मन में यह संदेह उत्पन्न किया गया कि उनकी माता की मृत्यु का कारण चाणक्य थे। इस कारण धीरे-धीरे राजा और चाणक्य में दूरियां बढ़ती गई और एक दिन चाणक्य हमेशा के लिए महल छोड़कर चले गए। हालांकि बाद में बिंदुसार को इसका पछतावा हुआ।
* एक दूसरी कहानी के अनुसार बिंदुसार के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा जलाने की कोशिश की थी, जिसमें वे सफल भी हुए। हालांकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार चाणक्य ने खुद प्राण त्यागे थे या फिर वे किसी षड़यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक साफ नहीं हो पाया है।