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Written By WD Feature Desk

स्वामी दयानंद सरस्वती के बारे में 5 खास बातें

स्वामी दयानंद सरस्वती के बारे में 5 खास बातें - Dayananda Saraswati Jyanati
Dayananda Saraswati 
 
 
HIGHLIGHTS
• महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती। 
• तिथिनुसार 05 मार्च को स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती। 
• आर्य समाज के संस्थापक और स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सूत्रधार थे दयानंद सरस्वती। 
 
Dayananda Saraswati Jyanati 2024: आर्य समाज के संस्थापक रहे महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती तिथि के अनुसार वर्ष 2024 में 05 मार्च, दिन मंगलवार को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं उनके बारे में 5 अनुसनी बातें- 
 
1. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार एक ब्राह्मण परिवार में स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था। तथा तारीख के अनुसार उनका जन्म 12 फरवरी सन् 1824 में मोरबी (मुम्बई) की मोरवी रियासत के पास काठियावाड़ क्षेत्र जिला राजकोट (गुजरात) में हुआ था। उनका जन्म मूल नक्षत्र में होने के कारण उनका नाम 'मूलशंकर' रखा गया था। उन्हें संस्कृत भाषा में गहरा ज्ञान था, अत: वे संस्कृत को धारावाहिक रूप में बोलते थे। 
 
2. दयानंद सरस्वती ने सन् 1875 में गिरगांव, मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी तथा धर्म सुधार हेतु एक मुखिया के रूप में कार्य करते हुए पाखंड खंडिनी पताका फहराकर कई उल्लेखनीय कार्य किए। यही दयानंद आगे चलकर महर्षि दयानंद बने और वैदिक धर्म की स्थापना हेतु 'आर्य समाज' के संस्थापक के रूप में विश्वविख्यात हुए। आर्य समाज की स्थापना के साथ ही भारत में डूब चुकी वैदिक परंपराओं को पुनर्स्थापित करके विश्व में हिन्दू धर्म की पहचान करवाई। वेदों का प्रचार करने के लिए उन्होंने पूरे देश का दौरा करके पंडित और विद्वानों को वेदों की महत्ता के बारे में समझाया था।
 
3. स्वामी जी ने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रंथों पर काफी मंथन करने के बाद अकेले ही तीन मोर्चों पर अपना संघर्ष आरंभ किया, जिसमें उन्हें अपमान, कलंक और अनेक कष्टों को झेलना पड़ा। लेकिन उनके ज्ञान का कोई जवाब नहीं था और वे जो कुछ कह रहे थे, उसका उत्तर किसी भी धर्मगुरुओं के पास नहीं था। 
 
4. दयानंद सरस्वती जी का 'भारत, भारतीयों का है' एक प्रमुख उद्‍गार है। और उनके नेतृत्व में ही सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम क्रांति की योजना तैयार की गई और वे ही इस योजना के प्रमुख सूत्रधार थे, क्योंकि अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से तंग आ चुके भारत में 'भारत, भारतीयों का है' यह कहने का साहस मात्र स्वामी दयानंद में ही था। अत: उन्होंने अपने प्रवचनों के माध्यम से भारतवासियों को राष्ट्रीयता के उपदेश देकर भारतीयों को देश पर मर मिटने के लिए प्रेरित करते रहे। अत: महर्षि दयानंद सरस्वती का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान है। 
 
5. दयानंद सरस्वती ने हिन्दी में ग्रंथ रचना तथा पहले के संस्कृत में लिखित ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद करने का भी उल्लेखनीय कार्य किया। दुनिया के लिए दार्शनिक और महान स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारक रहे स्वामी दयानंद सरस्वती का निधन 30 अक्टूबर सन् 1883 में दीपावली के दिन संध्या के समय हुआ था। 
 
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