78th Independence Day: भारत ने निश्चित ही आजादी के बाद हर क्षेत्र में प्रगति की है परंतु उसके सामने हजारों चुनौतियां भी खड़ी हैं जो एक झटके में अब तक की संपूर्ण प्रगति और विकास को मिट्टी में मिला सकती है, क्योंकि भारत ने प्रगति के साथ ही समस्याओं को नजर अंदाज करना और नई-नई अन्य समस्या और चुनौतियों को जन्म देने का काम भी बड़े पैमाने पर किया है।
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भारत की प्रगति : मुगलों और अंग्रेजों ने भारत को कई स्तर पर लुटा और नष्ट किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत से अलग होकर करीब 4 राष्ट्र अस्तित्व में आए। पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और अफगानिस्तान। इसके बावजूद अखंडित भारत ने 1947 के बाद खुद को न केवल एक नए राष्ट्र के रूप में स्थापित किया बल्कि प्रगति के पथ पर खुद को शीर्ष पर भी स्थापित किया है।
फिर चाहे वह इंफ्रास्ट्रक्चर का क्षेत्र हो या फिर अंतरिक्ष का क्षेत्र हो। चाहे वह कृषि का यन्त्रीकरण, औद्योगिक विकास हो या उन्नत विज्ञान, संचार, मीडिया, आर्टिफशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग तथा तकनीकी विकास हो। देश की सड़के, रेलवे, एयरपोर्ट, बंदरगाह यो या यातायात के अन्य साधन। पुलिस या सैन्य शक्ति हो या सीमा सुरक्षा का मुद्दा। भारत ने हर क्षेत्र में उन्नति की है। हमने बाहरी विकास तो बहुत कर लिया परंतु देश के प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन और विकास के नाम पर जो विध्वंस किया है उसका परिणाम भुगतान अभी बाकी है।
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चुनौतियां : भारत के सामने अभी भी ऐसी कई चुनौतियां और समस्याएं खड़ी है जो कभी भी देश का सर्वनाश कर सकती है क्योंकि भारत के राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों और अन्य लोगों ने कभी इस समस्या के हल के लिए गंभीरता से कार्य नहीं किया। वे समस्याएं और चुनौतियां क्या है? निश्चित ही इंडिया का विकास हुआ है लेकिन भारत पिछड़ गया है।
1. नक्सलवाद या माओवाद: नक्सलवाद या माओवाद क्यों पनपता है और वे कौन लोग हैं जो इन्हें बढ़वा दे रहे हैं? इस पर कभी भी कोई पूर्ण रूप से कार्य नहीं किया गया या कहें कि इनके कारणों को जानकर इसका निदान नहीं किया गया। हिंसा से समस्या को और बढ़ावा ही मिला है। सबसे बड़ी समस्या के रूप में नक्सलवाद या माओवाद को गिनाया तो जाता है, इससे लड़ने के लिए बात भी की जाती है लेकिन जिन वजहों से यह मौजूद है, उन्हें बढ़ाने वाली नीतियों को ही पूरे जोर-शोर से लागू किया जा रहा है।
3. आतंकवाद, दंगे और सांप्रदायिकता : आतंकवाद की जड़े भारत में बहुत गहरी हो चली है। इसके कई कारण है। पार्टियों की वोट की नीति और अशिक्षा भी इसमें एक प्रमुख कारण है।
4. सीमाओं पर बदलती डेमोग्रॉफी : हमारी सीमाओं पर पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका जैसे देशों के कट्टरपंथियों ने डेमोग्रॉफी बदलने का जो षड़यंत्र रचा है उसमें वे लगभग कामयाब हो चले हैं। आज भी हम इस और कभी ध्यान नहीं देते हैं। कोई मॉनिटरिंग व्यवस्था नहीं क्योंकि राज्य सरकारों को ये तत्व प्रभावित करते रहते हैं।
5. आदिवासियों के क्षेत्र में शिक्षा और अस्पतालों का अभाव : आज जो इलाके माओवाद से प्रभावित बताए जाते हैं, वहां किसी भी किस्म का विकास नहीं हुआ है। ये सारे इलाके अधिकांशतः आदिवासी-बहुल हैं। नीतियों का पूरा ढांचा ही यहां रहने वालों के खिलाफ तैयार किया गया है। इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि आदिवासियों के सारे इलाके खनिज संपन्न हैं और लूटेरे सभी विदेशी और बड़े उद्योगपति।
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6. परंपरागत व्यापार पर विदेशियों का कब्जा : विदेशी कंपनियों द्वारा भारत के परंपरागत बाजार पर आधिपत्य स्थापित करना। खुले बाजार और खुली प्रतियोगिता का आलम यह है कि हमने अपने राखी-होली जैसे त्योहारों पर राखियों और पिचकारियों तक का कारोबार चीन को दे दिया है। यह कैसा विकास है?
7. शिक्षा में चुनौतियां : भारत की शिक्षा युवकों को नौकरी के लिए तैयार करने के लिए है, एक अच्छा, देशभक्ति, विचारशील और योग्य इंसान बनाने के लिए नहीं है। शिक्षा में न तो एकरूपता है और न ही यह हमारे बच्चों को योग्य बनाती है। अब तो सभी एक्टर, गायक, मैनेजर, इंजीनियर और डॉक्टर बनना चाहते हैं और वह भी किस तरह यह सभी जानते हैं। इसलिए देशभर में कोचिंग स्थानों की संख्या स्कूलों से ज्यादा है।
प्रस्तुति: अनिरुद्ध जोशी