उज्जैन महाकाल की सवारी का रोचक इतिहास
Ujjain mahakal sawari ki kanai itihas: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास और भाद्रपद माह में सोमवार के दिन महाकाल की नगरी उज्जैन में बाबा महाकालेश्वर की सवारी निकलती है। कभी 8 सवारी होती है तो कभी 10 सवारी निकलती है। इसे पाल्की भी कहते हैं। इस दौरान महाकाल बाबा नगर भ्रमण करते हैं। देश विदेश से सवारी में शामिल होने के आओ जानते हैं सवारी निकाले जाने का इतिहास।
महाकाल सवारी का इतिहास | History of mahakal ride : वैसे तो सम्राट विक्रमादित्य के काल से ही महाकाल बाबा के नगर भ्रमण की परंपरा होने की मान्यता है परंतु कहते हैं कि श्रावण मास में इन सवारी निकालने की परंपरा सिंधिया वंश के राजाओं से प्रारंभ हुई। तब महाराष्ट्रीयन पंचाग के अनुसार 2 या 3 सवारी ही निकलती थी। विशेषकर अमावस्या के बाद ही यह निकलती थी।
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बाद में उज्जयिनी के प्रकांड ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास, सुरेन्द्र पुजारी के पिता और कलेक्टर बुच के प्रयासों से सवारी को नया रूप दिया गया।
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तब प्रथम सवारी का पूजन सम्मान करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिेंधिया व शहर के गणमान्य नागरिक प्रमु्ख थे।
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सभी पैदल सवारी में शामिल हुए और शहर की जनता ने रोमांचित होकर घर-घर से पुष्प वर्षा की। इस तरह एक खूबसूरत परंपरा का आगाज हुआ।
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उस समय सवारी का पूजन-स्वागत-अभिनंदन शहर के बीचोंबीच स्थित गोपाल मंदिर में सिंधिया परिवार की और से किया गया।
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पहले महाराज स्वयं शामिल होते थे। बाद में राजमाता नियमित रूप से आती रहीं। आज भी उनका कोई ना कोई प्रतिनिधित्व सम्मिलित रहता है।