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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Modified: सोमवार, 12 दिसंबर 2022 (12:45 IST)

भगवान शिव की तीसरी आंख का क्या है राज?

Lord Shankar shiva
Shiv Ji Ki tisri Aankh: भगवान शिव की तीसरी आंख का पुराणों में वर्णन मिलता है। उनके सभी चित्र और मूर्तियों में उनके माथे पर एक तीसरी आंख का चित्रण भी किया जाता रहा है। इसीलिए उन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। त्रिलोचन का अर्थ होता है तीन आंखों वाला क्योंकि एक मात्र भगवान शंकर ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं। उस आंख से वे वह सबकुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से नहीं देखा जा सकता। आओ जानते हैं उनकी तीसरे नेत्र का रहस्य।
 
 
तीसरा नेत्र त्रिकालदर्शी होने का सूचक : भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र से भूत, वर्तमान और भविष्य की सारी घटनाओं को देखते हैं। वे उससे उसे देखते ही नहीं बल्कि संचालित करने की शक्ति भी रखते हैं। तीनों कालों पर उनका अधिकार है इसीलिए उन्हें कालों का काल महाकाल भी कहा गया है। उनकी इस आंख को दिव्य दृष्टि भी कहा जाता है।
 
अनंत प्रकाशवर्ष दूर तक देख सकते हैं : जब वे तीसरी आंख खोलते हैं तो उससे बहुत ही ज्यादा उर्जा निकलती है। एक बार खुलते ही सब कुछ साफ नजर आता है, फिर वे ब्रह्मांड में झांक रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में वे कॉस्‍मिक फ्रिक्‍वेंसी या ब्रह्मांडीय आवृत्‍ति से जुड़े होते हैं। तब वे कहीं भी, कितनी भी दूर देख सकते हैं और किसी से भी प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित कर सकते हैं। 
 
आज्ञाचक्र रहता है तब जागृत : शिव का तीसरा चक्षु आज्ञाचक्र पर स्थित है। आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है। तृतीय नेत्र खुल जाने पर सामान्य बीज रूपी मनुष्य की सम्भावनाएं वट वृक्ष का आकार ले लेती हैं। आप इस आंख से ब्रह्मांड में अलग-अलग आयामों में देख और सफर कर सकते हैं।
 
विनाशकारी नेत्र : मान्यता है कि शिवजी अपना ये तीसरा नेत्र तब खोलते हैं जबकि उन्हें क्रोध आता है। आंख खोलते ही जो भी सामने होता है वह भस्म हो जाता है। इसका उदाहरण कामदेव है जिसे उन्होंने भस्म कर दिया था।
 
तीसरे नेत्र की कथा : महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व के अनुसार नारद जी बताते हैं कि एक बार भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, देवगण ऋषि और मुनि उपस्थित थे। तभी उस सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन हेतु पीछे से उन्होंने दोनों हाथों की हथेलियों से भगवान शिव की दोनों आंखें बंद कर दी।
 
जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को बंद किया तो संपूर्ण सृष्टि में अंधेरा छा गया। सूर्य की शक्ति क्षीण हो गई। धरती पर मौजूद सभी प्राणियों में हाहाकार मच गया। संसार की ये हालत देख शिवजी व्याकुल हो उठे और उसी समय उन्होंने अपने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख थी। बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं।
वैज्ञानिक रहस्य :
 
पीनियल ग्लेंड : मस्तिष्क के दो भागों के बीच एक पीनियल ग्लेंड होती है। तीसरी आंख इसी को दर्शाती है। इसका काम है एक हार्मोन्स को छोड़ना जिसे मेलाटोनिन हार्मोन कहते हैं, जो सोने और जागने के घटना चक्र का संचालन करता है। जर्मन वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि इस तीसरे नेत्र के द्वारा दिशा ज्ञान भी होता है। इसमें पाया जाने वाला हार्मोन्स मेलाटोनिन मनुष्य की मानसिक उदासी से सम्बन्धित है। अनेकानेक मनोविकारों एवं मानसिक गुणों का सम्बन्ध यहां स्रवित हार्मोन्स स्रावों से है।
 
लाइट सेंसटिव ग्रंथि : यह ग्रंथि लाइट सेंसटिव है इसलिए कफी हद तक इसे तीसरी आंख भी कहा जाता है। आप भले ही अंधे हो जाएं लेकिन आपको लाइट का चमकना जरूर दिखाई देगा जो इसी पीनियल ग्लेंड के कारण है। यदि आप लाइट का चमकना देख सकते हैं तो फिर आप सब कुछ देखने की क्षमता रखते हैं।
 
निर्वाणा : यही वो पीनियल ग्लेंड है जो ब्रह्मांड में झांकने का माध्यम है। इसके जागृत हो जाने पर ही कहते हैं कि व्यक्ति के ज्ञान चक्षु खुल गए। उसे निर्वाण प्राप्त हो गया या वह अब प्रकृति के बंधन से मुक्ति होकर सबकुछ करने के लिए स्वतंत्र है। इसके जाग्रत होने को ही कहते हैं कि अब व्यक्ति के पास दिव्य नेत्र है। 
 
सभी में होता है यह तीसरा नेत्र : यह पीनियल ग्लेंड लगभग आंख की तरह होती है। पीनियल ग्लेंड जीवधारियों में पूर्व में आंख के ही आकार का था। इसमें रोएंदार एक लैंस का प्रति रूप होता है और एक पार दर्शक द्रव भी अन्दर रहता है इसके अतिरिक्त प्रकाश संवेदी कोशिकायें एवं अल्प विकसित रेटिना भी पाई जाती है। मानव प्राणी में इसका वजन दो मिलीग्राम होता है। यह मेंढक की खोपड़ी में तथा छिपकलियों में चमड़ी के नीचे पाया जाता है। इन जीव−जन्तुओं में यह तीसरा नेत्र रंग की पहचान कर सकता है। छिपकलियों में तीसरे नेत्र से कोई फायदा नहीं क्योंकि वह चमड़ी के नीचे ढका रहता है।
 
आदमियों में यह ग्लेंड या ग्रंथि के रूप में परिवर्तित हो गई है इसमें तंत्रिका कोशिकाएं पाई जाती हैं। ग्रंथि की गतिविधि गड़बड़ होने से मनुष्य जल्दी यौन विकास की दृष्टि से जल्दी परिपक्वता को प्राप्त हो जाता है। उसके जननांग तेजी से बढ़ने लगते हैं। यदि इस ग्रंथि में हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है तो मनुष्य में बचपना ही बना रहता है और जननांग अविकसित रहते हैं।