हिन्दी दिवस पर आपसे यह कहा जाए कि अंग्रेजी का भविष्य उज्जवल है तो शायद आप नाराज हो जाएंगे। लेकिन आपको इस पर भी सोचना होगा कि जो हिन्दी को छोड़ अंग्रेजी को बढ़ावा देने में लगे हैं, जैसे अखबार, साहित्य, स्कूल, कॉलेज, कोचिंग क्लास, बाजार, टेक्नोलॉजी, टेलीविजन, बॉलीवुड और बाजारवाद, मीटिंग, सेमिनार आदि पर आप क्या विचार करते हैं?
इस देश में बहुत से लोग ऐसे हैं, जो अंग्रेजी के समर्थक हैं। उन्होंने ही अंग्रेजी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस देश में बढ़ावा दिया। उन्हें कुछ लोग मैकाले या अंग्रेजों की संतान कहते हैं। लेकिन ऐसे कहने वाले लोग ही अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं और अंग्रेजी की ट्यूशन भी लगवाते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि अंग्रेजी को अब मजबूरी बना दिया गया है। उसके बगैर रोजगार नहीं मिलेगा, व्यक्ति की प्रगति बाधित हो जाएगी और उसमें हीनता का बोध होगा।
खासतौर पर बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे, साहित्यकार, बुद्धिजीवी, इंजीनियर, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, अभिनेता, पत्रकार, सरकारी एवं राजकीय कार्यकर्मी व उद्योगपति आदि सभी जब अपनी किसी सभा या समारोह में जब कहीं इकट्ठे होते हैं तो न मालूम क्यों उनके भीतर अंग्रेजी-प्रेम 'जाग्रत' हो जाता है। वे एक-दूसरे पर अंग्रेजी झाड़ते हुए नजर आते हैं। सचमुच अब अंग्रेजी हमारे हिन्दी जानने वाले भाइयों या गरीबों को नीचा साबित करने या दिखाने का माध्यम भी बन गई है।
सोची-समझी रणनीति के तहत भारतीय नागरिकों के दिमाग से सबसे पहले इतिहास को विस्मृत किया गया, धर्म और संस्कृति को कुतर्क से भ्रमित और दकियानूसी साबित कर आधुनिकता के नाम पर अंग्रेजीयत को परोसा गया। यदि आप अपनी भाषा से कटते हैं तो संस्कृति, धर्म और इतिहास से भी स्वत: ही कटते जाते हैं फिर किसी दूसरे की भाषा से जुड़ते हैं तो भाषा के साथ ही उनके धर्म और संस्कृति से भी जुड़ते जाते हैं। है ना कमाल की बात।
अंग्रेज काल में जब कोई व्यक्ति विलायत से पढ़-लिखकर आता था तो सबसे पहले वह अपने देश को गंदा और गंदे लोगों का देश कहता था, वह उन लोगों से कम ही बात करता था जो उसके नाते-रिश्तेदार होते थे या जो गरीब नजर आते थे। अंग्रेजी में बतियाते हुए वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की जुगत के चलते जाने-अनजाने अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म के दो चार मीनमेख निकालकर विदेश की बढ़ाई करने से नहीं चूकता था। आज भी यही होता है, क्योंकि आदमी तो वही है- ब्रॉउन मैन।
अंग्रेज काल से ही यह परिपाटी चली आ रही थी जो आज 2011 में सब कुछ अंग्रेजी और अंग्रेजमय कर गई। अब हिंदी, हिंदी जैसी नहीं रही, तमिल भी बदल गई है, बंगाली, गुजराती और मराठी भी ठगी सी खड़ी हैं। सभी भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी ठूंस दी गई है और अंग्रेजी तो पहले की अपेक्षा और समृद्ध हो चली है। इस बात का विरोध करो तो अब हमारे ही लोग हमें अंग्रेजी के पक्ष में तर्क देते हैं।
अंग्रेज जानते थे कि हम इन भारतीयों से कब तक लड़ेंगे और कब तक इन्हें तर्क देते रहेंगे इसीलिए उन्होंने हमारे बीच ही हमारे खिलाफ हमारे लोग खड़े कर दिए। अब वे चाहते हैं कि भारतीय भाषा को रोमन में लिखा जाए। इसकी भी शुरुआत हो चुकी है।
उन्होंने हमें अंग्रेजी बहुत ही आसानी से सिखा दी। नीति के तहत कहा गया की अंग्रेजी को ग्रामर के साथ मत सिखाओ। अंग्रेजी से ज्यादा अंग्रेजी मानसिकता बनाओ। तहजीब की बातें, उपेक्षा, उलाहना, मौसम, खान-पान, कपड़े, चित्र और गरीबी आदि के साथ अंग्रेजी सिखाओ। 2011 आते-आते हम अब खुद अंग्रेजी सीख रहे हैं ग्रामर के साथ भी। अब हमसे हमारी ही कंपनियां पूछती हैं आपको कौन-सी अंग्रेजी याद है अमेरिकन या ब्रिटिश। सच मानो अब हमारी मानसिकता कितनी भारतीय बची है इस पर शोध करना होगा।
क्या बॉलीवुड के ये शब्द हिंदी के हैं?- वेकअप सिड, जब वी मैट, वेलकम टू सज्जनपुर, थ्री इडिएट्स, गॉड तुसी ग्रेट हो, रेडी, रॉ वन, प्रॉब्लम, मीडिया, बॉलीवुड, फोर्स, मोबाइल, डिसमिस, ब्रैड, अंडरस्टैंडिंग, मार्केट, शर्ट, शॉपिंग, मॉल, स्टेडियम, कॉरिडोर, ब्रेकफास्ट, ट्रेन, लंच, डिनर, लेट, वाइफ, हस्बैंड, सिस्टर, फादर, मदर, फेस, माउथ, गॉड, कोर्ट, लैटर, मिल्क, शुगर टी, सर्वेंट, थैंक यू, डैथ, एक्सपायर, बर्थ, हैड, हेयर, वॉक, बुक, एक्सरसाइज, चेयर, टेबिल, हाउस, सॉरी, सी यू अगेन, यूज, थ्रो, आउट, गुडमॉर्निंग सर, गुड नाइट, हैलो, डिस्टर्ब, सडनली, ऑबियसली, येस, नो, करंट अफेयर, लव, सेक्स, यूथ ब्रिगेड, रैडी और बॉडी गॉड आदि हजारों।
इसी तरह अब हम हिन्दी को रोमन लिपि में लिखने लगे हैं। अब हिंदी बची कहां? आज का युवा आधे से ज्यादा अंग्रेजी के शब्द ही बोलता है और हिन्दी को रोमन में लिखता है। अब हमारे बच्चे नहीं जानते हैं कि सत्तावन क्या होता है वे फिफ्टी सेवन जानते हैं तो स्वाभाविक रूप से उन्हें हिन्दी के पहाड़े कैसे याद होंगे।