सोशल मीडिया आज बच्चों से लेकर युवाओं तक और यहां तक की बुजुर्ग तक को अपनी चपेट में ले चुका है। व्हॉट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम,स्नैपचैट, लिंक्डइन.. कोई अंत नहीं है अब इस सूची का...हर बात का प्रदर्शन जैसे जरूरी हो, हर बात का जिक्र जैसे किए बिना खाना नहीं गले उतरने वाला, हर मामले पर प्रतिक्रिया देना जन्मसिद्ध अधिकार, भले ही उसका आगा पीछा पता हो न हो, नितांत निजी किस्से हो या परस्पर जलन, कुढ़न और बदले की भावना....सोशल मीडिया उस उस्तरे की तरह हो गया है जो हर तरह के प्राणी के हाथ में है और हर कोई उसका मनमाना, मनचाहा, मनमर्जी का इस्तेमाल कर रहा है। जहां एक तरफ इसके कुछ फायदे हैं तो नुकसान तो अनगिनत है.... ना सिर्फ मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और नैतिक हानि यह सोशल मीडिया हमारी कर रहा है बल्कि शारीरिक तौर पर भी कई तरह की बीमारियां दे रहा है....
आज ज्यादातर लोग इसकी वजह से स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों का शिकार बनते जा रहे हैं। इनसे बचने के लिए आजकल डिजिटल डिटॉक्स के कॉन्सेप्ट चल रहे हैं। जो यह सलाह देते हैं कि इन सबसे ब्रेक लेकर अपने आपको देखना ज्यादा जरूरी है, अपनी समस्याओं पर फोकस करना ज्यादा जरूरी है, अपने करियर, अपने आसपास के माहौल को सुधारना ज्यादा जरूरी है। अगर आप भी सोशल मीडिया के एडिक्ट हो रहे हैं तो 1 सप्ताह का ब्रेक लेकर देखिए.... अच्छा लगेगा....
असल में यह बात हम नहीं इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के रिसर्चर्स ने एक ताजा शोध में बताया है कि सोशल मीडिया से मात्र एक हफ्ते का ब्रेक आपकी मेंटल हेल्थ में पॉजिटीव सुधार ला सकता है। अगर आप डिप्रेशन और एंग्जाइटी के लक्षणों से जूझ रहे हैं तो सिर्फ एक सप्ताह में ही इन्हें काफी कम किया जा सकता है।
डिजिटल डिटॉक्स कैसे करें
जिस तरह लोगों को अन्य बुराइयों की लत लगती है, उसी तरह वर्चुअल वर्ल्ड में भी रहने का एडिक्शन हो जाता है। वो चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकल पाते। ऐसे में तकनीक के मायाजाल से खुद को दूर रखने के लिए कुछ समय के लिए डिजिटल छुट्टी पर जाने को ही डिजिटल डिटॉक्स कहते हैं।
रिसर्च
शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में 18 से 72 साल की उम्र के 154 लोगों को शामिल किया। इन्हें दो ग्रुप्स में बांटा गया। जहां पहले ग्रुप को सोशल मीडिया से बैन किया गया, वहीं दूसरा ग्रुप रोज की तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता रहा। प्रतिभागियों ने एक हफ्ते में औसतन 8 घंटे सोशल मीडिया ऐप्स चलाए।
शोध के एक हफ्ते बाद प्रतिभागियों के 3 टेस्ट लिए गए। इनमें डिप्रेशन और एंग्जाइटी से जुड़े सवाल शामिल थे। नतीजों में पाया गया कि एक हफ्ते का ब्रेक लेने वाले ग्रुप की सेहत वारविक-एडिनबर्ग मेंटल वेलबीइंग स्केल पर 46 से बढ़कर 55.93 हो गई। वहीं, रोगी स्वास्थ्य प्रश्नावली-8 पर इनके डिप्रेशन का लेवल 7.46 से घटकर 4.84 पर आ गया। इस स्केल पर एंग्जाइटी 6.92 से 5.94 पर आ गई।
रिसर्चर जेफ लैंबर्ट का कहना है कि सिर्फ एक हफ्ते में ही पहले ग्रुप के लोगों का मूड बेहतर हुआ और एंग्जाइटी के लक्षण कम हुए। इसका मतलब सोशल मीडिया से छोटे-छोटे ब्रेक्स भी मेंटल हेल्थ पर पॉजिटिव असर डाल सकते हैं।
डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों की संख्या 2011 में 45% से बढ़कर 2021 में 71% जा पहुंची है। साथ ही, 16 से 44 की उम्र के 97% लोग सोशल मीडिया ऐप्स का यूज करते हैं। ऐप्स पर कंटेंट 'स्क्रोल' करना यूजर्स की सबसे कॉमन एक्टिविटी है। कुछ ऐसी ही स्टडीज पहले भी अमेरिका और ब्रिटेन में की जा चुकी हैं।