गणगौर तीज पर्व में पूजे जाते हैं माता पार्वती के 10 रूप
चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर व्रत रखकर माता गौरी की पूजा की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह व्रत 24 मार्च को है। इस पूजा में माता गौरी और शिवजी की पूजा होती है। यह एक लोकपर्व है जो खासकर उत्तर भारत में प्रचलित है। इस व्रत की शुरुआत चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी से होती है और शुक्ल की तीज पर इसका समापन होता है। आओ जानते हैं इसमें माता के कौनसे 10 रुपों की होती है पूजा।
गणगौर : गणगौर माता पार्वती का गौर अर्थात श्वेत रूप है। उन्हें गौरी और महागौरी भी कहते हैं। अष्टमी के दिन इनकी पूजा होता है, लेकिन चैत्र नवरात्रि की तृतीया को उन्हें इसलिए पूजा जाता है क्योंकि राजस्थान की लोक परंपरा के अनुसार इस दिन माता की अपने मायके के यहां से विदाई हुई थी।
गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरी। मान्यता अनुसार माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। विदाई के दिन को ही गणगौर कहा जाता है। गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत में इसी घटना का वर्णन होता है।
इस दिन मां गौरी के 10 रूपों की पूजा करते हैं- गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, सौभाग्यवर्धिनी और अम्बिका।
माता देती हैं वरदान : इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया था। इसीलिए पौराणिक काल से ही इस व्रत पूजा का प्रचलन रहा है। इस दिन सुहागिनें देवी पार्वती और शिवजी की विशेष पूजा अर्चना करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के साथ ही घर-परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।