श्री गणपति जी की दाईं और बाईं सूंड का क्या है राज कौन-सी सूंड है उत्तम घर के गणेश जी की
गणेशोत्सव के दिन 10 दिवस के लिए गणेश स्थापना करके उनकी पूजा अर्चना की जाती है। गणेश चतुर्थी उत्सव के दिन गणपतिजी की कौनसी सूंड वाली प्रतिमा घर पर लाएं? दाईं या बाईं सूंड वाली? हालांकि दोनों ही ओर कि सूंड उत्तम मानी जाती है परंतु दोनों की पूजा का अलग अलग महत्व है। आओ जानते हैं घर के लिए कौनसी सूंड वाले गणेशजी उत्तम हैं।
1. दाईं सूंड : दाईं सूंड वाले गणेशजी की मूर्ति को दक्षिण मूर्ति या दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहते हैं, जिसमें सूंड के अग्रभाग का मोड़ दाईं ओर होता। यानी दाई बाजू की ओर उसकी मोड़ होता है। पश्चिम में मुख होने से यह भाग दक्षिण में होगा। दक्षिण दिशा यमलोक की ओर इंगित करती हैं और इसी दिशा में सूर्य नाड़ी सक्रिय रहती है। दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती, क्योंकि तिर्य्क (रज) लहरियां दक्षिण दिशा से आती हैं। दक्षिण दिशा में यमलोक है, जहां पाप-पुण्य का हिसाब रखा जाता है। इसलिए यह बाजू अप्रिय है। यदि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें या सोते समय दक्षिण की ओर पैर रखें तो जैसी अनुभूति मृत्यु के पश्चात अथवा मृत्यु पूर्व जीवित अवस्था में होती है, वैसी ही स्थिति दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा करने से होने लगती है। विधि विधान से पूजन ना होने पर यह श्री गणेश रुष्ट हो जाते हैं।
2. बाईं सूंड : बाईं सूंड वाले गणेशजी की मूर्ति को वाममुखी या उत्तरमुखी कहते हैं, जिसमें सूंड के अग्रभाग का मोड़ बाईं ओर होता। बाई ओर चंद्र नाड़ी होती है। यह शीतलता प्रदान करती है एवं उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक है, आनंददायक है। इस दिशा में सभी देवी एवं देवताओं का वास है। इसलिए पूजा में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है। इसकी पूजा प्रायिक पद्धति से की जाती है। इन गणेश जी को गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना गया है। इन्हें विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं लगती। यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते हैं। त्रुटियों पर क्षमा करते हैं।