फीफा विश्व कप का अगाज हो चुका है और हर दिन कुछ ना कुछ नया देखने को मिल रहा हैं। विश्व कप में कई ऐसे खिलाड़ी भी हिस्सा ले रहे हैं जिन्होंने बेहद गरीब परिस्थितियों से निकलर यहां तक का सफर तय किया है। इन्होंने संसाधनों की कमी को अपनी जीत के आगे नहीं आने दिया और आज यह करोड़ों दिलों पर अपने खेल के जरिए राज कर रहे हैं।
फुटबॉल के अपने जुनून ने उन्हें फीफा विश्व कप जैसे महाकुंभ में खेलने का मौका मिला है। वह अपने प्रदर्शन की बदौलत सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच रहे हैं।
गेब्रियल जीसस- डिवाइडर की पुताई से विश्व कप तक
ब्राजील के गेब्रियल जीसस जीसस फीफा विश्व कप 2018 में अपनी के लिए टॉप फॉरवर्ड खिलाड़ी साबित हो रहे हैं। 21 साल के जीसस घर के हालात ठीक नहीं थे। वह 6 साल पहले तक ब्राजील की गलियों में घूम-घूमकर दीवार, सड़क और डिवाइडर पर पुताई करते थे। एक दिन के डेढ़ सौ से दो सौ रुपए तक कमा लेते थे।
गेब्रियल के जन्म के तुरंत बाद उनके पिता परिवार से अलग हो गए। बच्चों को पालने की जिम्मेदारी अकेले मां पर आ गई। वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं, इसलिए उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई। वह दूसरों के घरों में साफ-सफाई का काम करने लगीं। गेब्रियल को फुटबॉल का शौक 6 साल की उम्र से था। पुताई के बाद जो वक्त बचता उसमें वो मैदान पर फुटबॉल खेलते थे।
2013 में गेब्रियल के कोच ने उन्हें क्लब जॉइन कराया। उन्होंने 47 मैच में 16 गोल किए। 2015 में उन्हें ब्राजील अंडर-23 और 2016 में नेशनल टीम में चुन लिया गया। 2017 में गेब्रियल के साथ मैनचेस्ट यूनाइटेड ने 240 करोड़ रुपए का कॉन्ट्रैक्ट किया। आज उनकी ब्रांड वैल्यू 350 करोड़ रुपए है।
रोमेलु लुकाकू- कभी जूते सिलवाने के लिए भी नही थे पैसे
विश्व कप में रोनाल्डो जैसे बड़े खिलाड़ी को टक्कर दे रहे रोमेलु लुकाकू का यह तक पहुंचने का सफर बेहद मुश्किल रहा है। बेल्जियम के रोमेलु लुकाकू ने दो मैच में चार गोल करके रोनाल्डो की बराबरी कर ली है। लुकाकु को बचपन में खाने में सिर्फ दूध-ब्रेड मिलता था। जब वे अपनी मां से पूछते थे कि क्या हम गरीब है। तो उन्होंने जवाब मिलता था कि ये हमारा फूड कल्चर है।
एक दिन जब उन्होंने अपनी मां को मजबूरी में दूध में पानी मिलाते देखा तो उन्होंने फुटबॉलर बनने की ठान ली। फुटबॉल के अपने शौक को पैशन बना लिया। लुकाकु को याद है कि 2002 में उनके जूतों में हुए छेद को सिलवाने तक के पैसे नहीं थे लेकिन अज वह विश्व कप खेल रहे हैं। आज लुकाकू की ब्रांड वैल्यू 900 करोड़ रुपए से ज्यादा है।
हानेस हालडोरसन- घोड़े बांधने वाले मैदान से विश्व कप के मैदान तक
साढ़े तीन लाख की आबादी वाला देश आइसलैंड पहली बार विश्व कप खेल रहा हैं। आइसलैंड की टीम के खिलाडि़यों का यह तक का सफर बेहद कठिनाई भरा रहा हैं। अर्जेंटीना को ड्रॉ खेलने पर मजबूर करने वाले आइसलैंड के गोलकीपर हानेस हालडोरसन को अपनी टीम के संघर्ष के दिन अच्छी तरह याद हैं।
हानेस के अनुसार उन्हें कोई गंभीरता से लेने तक हो तैयार नही था। हमारे पास मैदान नहीं थे। एक मैदान मिला, जहां दिन में हम प्रैक्टिस करते थे और रात में घोड़े बांधे जाते थे। मै गोलकीपर था। डाइव मारता तो मैदान में बिखरी घोड़े की नाल वगैरह हाथ-पैर में लग जाते थे। ऐसे हालातों में हमारे खिलाड़ी निराश हो रहे थे। फिर हमने फैसला किया कि हम कुछ साबित करने के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए खेलेंगे।
हानेस विश्व कप में अपने प्रदर्शन से खुश तो है पर संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना हैं कि 2018 में तो हम विश्व कप में आए हैं, दम तो 2022 में दिखाएंगे। हानेस हालडोरसन की ब्रांड वैल्यू 150 करोड़ रुपए है।