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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 15 जनवरी 2021 (09:12 IST)

800 महिला किसानों का चीफ जस्टिस को खुला पत्र, आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी पर टिप्पणी को बताया गलत

800 महिला किसानों का चीफ जस्टिस को खुला पत्र, आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी पर टिप्पणी को बताया गलत - Open letter to chief  justice of 800 women farmers said negative comments on womens- participation hurt
नए कृषि कानून पर दिल्ली का घेरा डालकर बैठे किसानों का आंदोलन अब 50 दिन पूरे कर चुका है। नए कानून वापसी की मांग को लेकर अड़े किसान संगठन और सरकार के बीच आज नवें दौर की बातचीत होने जा रही है। इस बीच किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए और पूर विवाद का हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की गठित चार सदस्यीय कमेटी भी सवालों के घेरे में आ गई है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में शामिल किए गए किसान नेता भूपिंदर सिंह मान अलग हो गए है। 
 
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन में शामिल बुजुर्गो और महिलाओं को घर भेजने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी आंदोलन में शामिल महिलाओं ने आश्चर्य और दुख जातते हुए 800 से अधिक महिला किसानों व विद्यार्थियों ने चीफ जस्टिस को खुला पत्र लिखा है। अपने पत्र में महिलाओं ने आंदोलन में भागीदारी पर ऐसी टिप्पणी होने पर दुःख और गहरा आश्चर्य जाहिर करते  हुए कहा है कि यह टिप्पणी महिलाओं को किसान का दर्जा दिलाने के लिए लंबे समय से चल रहे संघर्ष का भी मजाक उड़ाती है। 
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप व आशा की सदस्या कविता कुरुंगनती  जो सरकार के साथ एमएसपी पर किसानों की ओर से वार्ता में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं  ने कहा कि "कोर्ट की सुनवाई व कोर्ट का आदेश कई मायनों में विवादास्पद व अस्वीकार्य है। महिला किसानों के प्रति व्यक्त किए गए विचारों में पितृसत्ता की झलक बेहद चिंताजनक है। हम सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करते हैं कि वो महिलाओं की एजेंसी को स्वीकार करे।
 
वहीं यूथ फॉर स्वराज की राष्ट्रीय कौंसिल की सदस्या अमनदीप कौर ने कहा कि "महिला इस आंदोलन में हर रूप और हर स्तर पर शामिल हैं: भाषण देना, व्यवस्था देखना, बैठकें, दवाई, रसोई, वापिस गाँव में खेतों की देखभाल, सामान की व्यवस्था से लेकर अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों धरना स्थलों का प्रबंधन: महिलाएँ इस किसान आंदोलन की आत्मा हैं। उनकी भूमिका को कम करना या उनकी एजेंसी को निरस्त करना बेहद निंदनीय है।
यूथ फॉर स्वराज की राष्ट्रीय कैबिनेट की सदस्या जाह्नवी जो ऑनलाइन इस आंदोलन के समर्थन जुटाने में लगी हुई हैं; ने कहा "यह आंदोलन केवल तीन कानूनों का विरोध करने का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि महिला बराबरी व सशक्तिकरण के एक स्पेस का भी प्रतिनिधित्व करता है। महिलाओं के बारे में ऐसे वक्तव्य पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। सर्वोच्च न्यायालय जैसी पवित्र संस्था का उपयोग ऐसी टिप्पणियों के लिए न हो तो बेहतर है।
 
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