आज पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाने वाला 'विश्व पर्यावरण दिवस' है। जाहिर है शहरों-गांवों में आज अनेक सामाजिक, राजनीतिक संस्थाएं चीख-चीखकर लोगों से पर्यावरण को बचाने के लिए ढोल पीटेंगी और फिर अगले दिन सबकुछ भूल जाएंगी। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इन सब दिखावों से क्या हम पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन को रोक सकते हैं?
मित्रो, वर्षभर में हर दिन कोई न कोई त्योहार, कोई उत्सव या कोई विशेष दिन मनाया जाता है और हम उसे बड़ी तन्मयता के साथ निभाते-मनाते भी हैं, फिर अगले ही दिन भूल भी जाते हैं। लेकिन पर्यावरण और प्रकृति के प्रति यह एक दिन का त्योहार प्राणीमात्र जीवन और धरती के लिए बहुत भारी पड़ सकता है। हम जिस पर्यावरण में रहते हैं वह बहुत तेजी से दूषित हो रहा है। अत: हमें आवश्यकता है कि हम अपने प्रकृति, पर्यावरण की देखरेख और संरक्षण ठीक तरीके से करें।
हम यह एक दिन (कोई भी विशेष दिन के नाम पर) बहुत ही चाव से उसे मनाने का भरसक प्रयास करते हैं और फिर अगले दिन से शुरू हो जाती है उसकी उपेक्षा। अक्सर यही होता है चाहे वह किसी महापुरुष की बात हो, चाहे अम्बेडकर जयंती या गांधी जयंती। एक दिन हम सड़क-बाजारों, चौराहों पर लगी उनकी प्रतिमाओं को धोकर, साफ-स्वच्छ करके हारमालाएं चढ़ा देते हैं और अगले दिन सबकुछ भूल जाते हैं, लेकिन पर्यावरण के प्रति यह सब नहीं चलेगा, यहां हमें काफी सजग रहने की जरूरत है। अगर प्रकृति ही नहीं रही तो हमारे जनजीवन पर जो खतरा मंडराएगा उससे हम कभी भी उबर नहीं पाएंगे।
आज हमारे आसपास जो इतनी बड़ी-बड़ी प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं, उनका कारण भी कहीं हमारा पर्यावरण के प्रति उपेक्षा का नतीजा तो नहीं है। रोजमर्रा की बनती बड़ी-बड़ी इमारतें और कटते वृक्ष ये इन बातों की साक्षी है कि जो प्राकृतिक आपदाएं, भूकंप, तूफान आ रहे हैं वो सब इसी का नतीजा है। सोचो... सोचो... कि ऐसा क्या किया जा सकता है जिससे हम धरती के संतुलन को डगमगाने से बचा सकें। आज जो आपदाएं-विपदाएं आ रही हैं, उनसे इस धरती और जनजीवन की रक्षा कैसे की जा सकती है यह सचमुच ही सोच का विषय है।
जब तक हम सब मिलकर प्रकृति की अनुपम धरोहर पेड़-पौधों की रक्षा नहीं करेंगे, तब तक इसी तरह के प्रकृति के कोप का भाजन बनते रहेंगे। ईश्वर ने हमें बहुत कुछ वरदानस्वरूप दिया है। प्रकृति ने हमको मां की तरह अनेक सुविधाएं दी हैं। लेकिन आज हम ही उस पर प्रहार करके उसका नामो-निशान मिटाने में लगे हुए हैं।
रोजाना बनने वाली ये बहुमंजिला इमारतें इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। जहां-जहां पेड़-हरियाली हैं, उन्हें उखाड़कर हम वहां नित-नई बिल्डिंगों को बनाकर धरती के साथ खिलवाड़ कर रहे है। आज हर इंसान पैसे की चकाचौंध में इतना बावरा हो गया है कि उसे अपना अच्छा-बुरा भी दिखाई नहीं देता और यही वजह है कि हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने की हिम्मत कर रहे हैं।
अगर पर्यावरण नहीं बचेगा, प्रकृति नहीं बचेगी, हरियाली नहीं बचेगी, जल नहीं बचेगा तो यह बात भी सत्य है कि कल हम भी नहीं बचेंगे और ऐसा करते-करते एक दिन हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। घटती हरियाली और बढ़ती बिल्डिंगों के परिणामस्वरूप हमें भूकंप, सुनामी जैसे भयंकर तूफानों, सूखा, बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है।
अत: हमें एक दिन पर्यावरण की सुरक्षा करने का विचार त्याग कर हर रोज, हर पल, हर समय पर्यावरण, हरियाली और प्रकृति के प्रति सोचना होगा, सजग होना होगा वैसे ही जैसे हम हर पल अपने बच्चों की चिंता में लगे रहते हैं, अगर उन्हें एक खरोंच भी आ जाती है तो हम ऊपर से नीचे तक बेहाल हो जाते हैं, फिर प्रकृति के प्रति इतनी लापरवाही निश्चित ही हमारे कल और हमारे पीढ़ी-दर-पीढ़ी का कल संवारने में नाकामयाब साबित होगी, और वह दिन भी दूर नहीं जब सब कुछ खत्म हो जाएगा और यह धरती एक खंडहर बनकर रह जाएगी।
उम्मीद है हम सभी की पर्यावरण बचाने के प्रति थोड़ी-थोड़ी सकारात्मक सोच ही हमारा आज, कल और परसों बचाने में कामयाब होगी...। अंत में जैसा हम चाहते हैं कि हमारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहे, उसी तरह पर्यावरण और प्रकृति की भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी के बारे में विचार अवश्य कीजिए, क्योंकि प्रकृति रहेगी तो ही हमारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुरक्षित रह पाएगी, वर्ना सब कुछ नष्ट और व्यर्थ हो जाएगा। हमें जीवन में सिर्फ विज्ञान की तरक्की नहीं चाहिए, हमें चाहिए कि विज्ञान के साथ-साथ हम हमारी भारतीय संस्कृति, प्रकृति और पर्यावरण को बचाने का संकल्प लें और बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ते पर्यावरण के मामले को गंभीरता से लेते हुए एकजुट होकर प्रकृति और पर्यावरण बचाने का प्रण लें। आज के लिए बस इतना ही...।