धनतेरस के बाद रूप चौदस और रूप चौदस के बाद दीपावली आती है। दीपावली के दिन विष्णुप्रिया लक्ष्मी माता की पूजा होती है। दीपावली के दिन विशेषतौर पर लक्ष्मी पूजा का ही प्रचलन है। आओ जानते हैं कि लक्ष्मी पूजा में किन 10 चीजों का रखते हैं ध्यान।
1. मान्यता अनुसार चौघड़िया का महायोग और शुभ कारक लग्न देखकर रात्रि में लक्ष्मी पूजा का प्रचलन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। लक्ष्मी कारक योग में पूजा करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है तो दूसरी ओर अच्छी और शुद्ध भावना से लक्ष्मी की पूजा से धन और समृद्धि बढ़ती है।
2. ध्यान रखें कि इस दिन लक्ष्मी पूजा के साथ ही सरस्वती, गणेश और कुबेरजी की पूजा भी की जाती है। सामान्यतः दीपावली पूजन का अर्थ लक्ष्मी पूजा से लगाया जाता है, किंतु इसके अंतर्गत गणेश, गौरी, नवग्रह षोडशमातृका, महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती, कुबेर, तुला, मान व दीपावली की पूजा भी होती है।
3. लक्ष्मी पूजा के समय सात मुख वाला घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मी माता की मूर्ति के सामने नौ बाती वाली घी का दीपक जलाने से जल्दी धन लाभ मिलता है और आर्थिक मामले में उन्नति होती है।
4. इस दिन लक्ष्मीजी को मखाना, सिंघाड़ा, बताशे, ईख, हलुआ, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न, केसर-भात आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजन के दौरान 16 प्रकार की गुजिया, पपड़ियां, अनर्सा, लड्डू भी चढ़ाएं जाते हैं। आह्वान में पुलहरा चढ़ाया जाता है। इसके बाद चावल, बादाम, पिस्ता, छुआरा, हल्दी, सुपारी, गेंहूं, नारियल अर्पित करते हैं। केवड़े के फूल और आम्रबेल का भोग अर्पित करते हैं।
5. प्रचलन के अनुसार कई घरों में पूजा के समय चांदी या सोने के लक्ष्मी-गणेश वाले सिक्के की पूजा भी की जाती है। साथ ही घर के सिक्कों की थैली, धन, चांदी व स्वर्ण को भी पूजा के दौरान रखकर उनकी भी पूजा की जाती है।
6.पूजा स्थल पर मगल कलश की पूजा भी होती है। एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।
7. इस दिन किसी भी प्रकार का व्यसन करना या जुआ खेलना वर्जित है। मान्यता अनुसार इस दिन किसी के घर नहीं जाते। दिवाली मिलन का कार्य पड़वा के दिन किया जाता है।
8. लक्ष्मी पूजन में स्थान और दिशा का ध्यान रखें। उत्तर या ईशान स्थान पर पूजा का पाठ या चौक रखें। आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
9. द्वार पर वंदनवार लगाएं, नियम से उचित संख्या में दीए लगाएं और मां लक्ष्मी के पदचिह्न मुख्य द्वार पर ऐसे लगाएं कि कदम बाहर से अंदर की ओर जाते हुए प्रतीत हों।
10. लक्ष्मी पूजन सामग्री में केल के पत्ते, रोली, कुमुकम, अक्षत (चावल), पान, सुपारी, नारियल, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी, दीपक, रूई, कलावा, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूं, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, दूध, मेवे, खील, बताशे, जनेऊ, श्वेस वस्त्र, इत्र, चौकी, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली. चांदी का सिक्का, चंदन, बैठने के लिए आसन, हवन कुंड, हवन सामग्री, आम के पत्ते, प्रसाद आदि होते हैं। इसके अलावा पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी व शुद्ध जल का मिश्रण), मधुपर्क (दूध, दही, शहद व शुद्ध जल का मिश्रण) भी होता है।
कपूर, केसर, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, मेहंदी, चूड़ी, काजल, पायजेब, बिछुड़ी आदि आभूषण, नाड़ा, पान के पत्ते, पुष्पमाला, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, शहद (मधु), शकर, घृत (शुद्ध घी), ऋतुफल, (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि), नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि), इलायची (छोटी), तुलसी दल, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि), लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, सरस्वती का चित्र, चांदी का सिक्का, लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), लेखनी (कलम), बही-खाता, स्याही की दवात, तुला (तराजू), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गांठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि।