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पाकिस्तान और तुर्की की शठता की पृष्ठभूमि

पाकिस्तान और तुर्की की शठता की पृष्ठभूमि - Visit of President of Turkey to Pakistan
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पाकिस्तान की अपनी राजकीय यात्रा के दौरान भारत के विरुद्ध जिस तरह जहर उगला वह किसी भी कूटनीतिक मर्यादा के विरुद्ध था। यकायक तुर्की को पाकिस्तान से इतना प्रेम कैसे उमड़ गया? तुर्की और पाकिस्तान में इस समय एक ही चीज़ समान है और वह है अंतरराष्ट्रीय मंचों से उनका वनवास। पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के प्रयासों से दुनिया से कट चुका है तो वहीं तुर्की अपनी सामरिक शक्ति के अनुचित और गैरजिम्मेदाराना इस्तेमाल की वजह से दुनिया के निशाने पर है। इसलिए दोनों को ही ऐसे मित्र देशों की तलाश है जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनका साथ दे सके।

पाठकों को स्मरण करा दें कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के विरुद्ध उन्हीं की सेना द्वारा तख्ता पलट की एक कोशिश भी हो चुकी है जो समय रहते कुचल दी गई थी। उनके अतिवादी और विस्तारवादी रवैए से तंग उनके पड़ोसी देश भी उसके साथ सहयोग नहीं कर रहे। एक समय था जब तुर्की का साम्राज्य मध्य पूर्व से मध्य एशिया तक फैला हुआ था। हिंदुस्तान पर भी तुर्की के आक्रांताओं ने राज किया। उस दौरान तुर्कों ने अनेकों देशों में कत्लेआम किया था।

ओट्टोमन या उस्मान साम्राज्य इतिहास के बहुत शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था किंतु आज उसका गुणगान हिटलर के गुणगान की तरह ही माना जाता है। दुनिया में अकेले पड़े इमरान ने एर्दोगन के सामने उस साम्राज्य के कसीदे पढ़ने में भी कसर नहीं छोड़ी जो मुगलों के आने के बाद हिंदुस्तान से खदेड़ दिया गया था। तुर्क साम्राज्य के अंतिम सम्राट इब्राहीम लोदी को मुग़ल योद्धा बाबर ने हराया था।

इस तरह 2 मजबूर राष्ट्र एक-दूसरे के साथ खड़े हो गए हैं। मजे की बात यह है कि तुर्की के पास धन नहीं है, पाकिस्तान की झोली में डालने के लिए और न ही इमरान एटम बम को तुर्की की झोली में डाल सकते हैं। पाकिस्तान को धन के लिए तो सऊदी अरब की शरण में ही जाना पड़ता है जिसके तुर्की के साथ दोस्ताना संबंध नहीं हैं।

जाहिर है पाकिस्तान, तुर्की के साथ याराना संबंध बनाकर रख नहीं सकता वरना सऊदी अरब के आगे हाथ कैसे फैलाएगा? वैसे पाकिस्तान के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी विदेश नीति के लिए कोई होमवर्क नहीं करता। जहां थोड़ी घास दिखी बेशर्म की तरह उधर का ही रुख कर लेता है। वह सऊदी अरब से लताड़ सुनने का आदी हो चुका है। उधर तुर्की को भी समझ नहीं आ रहा है कि वह भारत के साथ अपने रिश्तों को ख़राब करके कुछ हासिल नहीं कर सकता।

भारत के विदेश मंत्री ने पिछले सप्ताह की जर्मनी की अपनी यात्रा के दौरान अर्मेनिया के विदेश मंत्री से बात की और रिश्तों को मजबूत करने का फैसला लिया। अर्मेनिया, तुर्की का पड़ोसी देश है जो उस्मान साम्राज्य के दौर से ही तुर्की के साथ मित्रवत संबंध नहीं रखता, क्योंकि उस्मान साम्राज्य पर अर्मेनिया के 15 लाख लोगों के क़त्ल का आरोप है। साथ ही भारत ने और भी ऐसे कई कदम उठाए हैं जो तुर्की को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाएंगे।

इस तरह भारत ने तुर्की को कठोर कूटनीतिक संकेत दे दिए हैं कि यदि पाकिस्तान में उसने कुछ पेंच डालने की कोशिश की तो भारत भी अर्मेनिया में बैठा है। इसलिए बेहतर है कि वह अपने घर में शांति से बैठा रहे। कुछ देश ऐसे हैं जिन्हें जब तक आंखें नहीं दिखाई जाएं तब तक वे अपनी शठता से बाज नहीं आते, तुर्की उन्हीं में से एक है।
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