देश में कोरोना वैक्सीन के बूस्टर डोज को लेकर बहस तेज हो गई है। अमेरिका-ब्रिटेन के साथ दुनिया के कई देशों ने अपने नागरिकों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए बूस्टर डोज लगाना शुरु कर दिया है इसके बाद भारत में वैक्सीन की बूस्टर डोज पर बहस तेज हो गई है।
भारत में कोरोना संक्रमण की शुरुआत से अब तक सरकार की रणनीति तैयार करने में प्रमुख संक्रामक रोग विभाग के पूर्व प्रमुख पद्मश्री डॉ. रमन गंगाखेडकर से वेबदुनिया ने खास बातचीत कर भारत में कोरोना वैक्सीन के बूस्टर डोज की जरुरत और देश में चल रहे वैक्सीनेशन प्रोग्राम के आगे के रोडमैप को समझने की कोशिश की।
भारत में बूस्टर डोज की जरूरत है या नहीं ?- 'वेबदुनिया' से बातचीत में पद्मश्री डॉ. रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि बूस्टर डोज को लेकर अभी जो वैज्ञानिक प्रमाण (एविंडेस) आए हैं वह केवल जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन को लेकर ही आए है। अभी देश की जो स्वदेशी वैक्सीन है उसके कोई ऐसे वैज्ञानिक प्रमाण नहीं आए है कि हमको बूस्टर डोज लगेगा।
वहीं वह आगे महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं बूस्टर डोज नहीं लगेगा, हमको सोच समझ कर आगे जाना पड़ेगा। भारत में स्वदेशी वैक्सीन को लेकर जो वैज्ञानिक प्रमाण आते है उस पर अध्ययन कर बूस्टर डोज पर निर्णय लेना होगा। अगर ऐसे प्रमाण मिलते हैं तो सरकार समय से बूस्टर डोज का डिसीजन लेगी और ऐसा कोई कारण भी नहीं है कि बूस्टर डोज के बारे में निर्णय को सरकार टालेगी।
भारत में हाईरिस्क कैटेगरी वालों को बूस्टर डोज लगने के सवाल पर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि सरकार शायद हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले लोगों को बूस्टर डोज देने के बारे में निर्णय एक दो महीने में ले सकती है।
दुनिया के अन्य देशों में बूस्टर डोज क्यों?- वेबदुनिया से बातचीत में डॉ रमन गंगाखेडकर कहते हैं यूरोप में जो वैक्सीन का बूस्टर डोज लिया जा रहा है वह कोरोना के माइल्ड इंफेक्शन से बचने के लिए लिया जा रहा है। यूरोप और अमेरिका में कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण वहां पर लोगों को बूस्टर डोज दिया जा रहा है। यूरोप के साथ दुनिया के अन्य देशों में संक्रमण बढ़ने की सबसे बड़ी वजह जो लोग वैक्सीन ले रहे हैं वह लोग कोविड-19 अनुकूल व्यवहार (covid appropriate behaviour) का पालन नहीं कर रहे हैं जिससे संक्रमण बढ़ रहा है।
यूरोप में संक्रमण बढ़ने से भारत को कितना खतरा?- भारत में वैक्सीन के दोनों डोज लगाने के बाद बूस्टर डोज की जरुरत क्यों पड़ेगी इस सवाल पर डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि आज पूरी दुनिया ही एक नेशन की तरह है। कोरोना को लेकर हम यह नहीं समझ सकते हैं कि हमारा देश अलग है और यूरोप अलग है। यूरोप के लोग भी यहां आ सकते है और भारत से भी लोग यूरोप जा सकते हैं। जब तक कोरोना संक्रमण चारों तरफ कम नहीं होता तब इसको कम करके आंकना या कोरोना संक्रमण चला गए ऐसा सोचना गलत होगा।
डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि अभी हमने दो साल निकाल लिए अभी अगर थोड़ा समय और निकाल दिए तो हम शायद कोशिश करेंगे। जब तक दुनिया के किसी भी देश में है तब तक हमारे यहां आने का डर उतना ही रहेगा।
यूरोप की तरह देश में आएगी कोरोना की लहर?- यूरोप में कोरोना के बढ़ते मामलों के बाद भारत में भी कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन एक बात साफ है कि पूरे देश में एक साथ संक्रमण की कोई लहर नहीं दिखाई देगी। किसी देशव्यापी लहर आने की संभावना तब तक नहीं है जब तक कोई नया वैरिएंट नहीं आता है।
वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद कब तक इम्युनिटी?- डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद अन्य देशों के डाटा का अध्ययन करें तो पता लगता है कि 6 महीने तक इम्युनिटी रहती है लेकिन हमारे यहां का तो अभी तक ऐसा कोई डाटा ही नहीं है।
भारत में वैक्सीनेशन का काम जनवरी से शुरु हुआ और 11 महीने बाद जो तस्वीर दिखाई दे रही है उसमें वैक्सीन लेने के बाद संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती होने या मौत हो रही है ऐसी पिक्चर दिख नहीं रही है। ऐसे में उन चीजों के बारे में सोचने की बजाय बेहतर है कि हम पहले अपने आप को वैक्सीन को दोनों डोज लेकर प्रोटेक्ट करें तो बेहतर होगा।
वैक्सीन के दोनों डोज लगाना क्यों जरूरी?- बातचीत में डॉ रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि सबसे बड़ी बात यह है कि अभी वैक्सीन के दो डोज लगवाने वालों की संख्या कम है, वहीं फर्स्ट डोज अभी पूरे लोगों ने ही नहीं लिया है। अभी बेहतर होगा कि हम अभी लोगों को वैक्सीन की पहली और जिनको पहली डोज लग गई है उनको दूसरी डोज लगाने पर टारगेट करें। इसके बाद बूस्टर डोज का सोचना बेहतर रहेगा क्योंकि अभी वहीं लोग बूस्टर डोज लगवा लेंगे जो दो डोज लगवा चुके है। बाकी लोग ऐसे ही रह जाएंगे। हमको पहले कोशिश करने चाहिए की सभी लोगों वैक्सीन ले लें।
वैक्सीन और कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर दोनों जरुरी क्यों?- देश में कोरोना प्रतिबंध हटने के बाद लोगों में दिख रही लापरवाही पर डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि लॉकडाउन खत्म हो गया है, स्कूल शुरू हो गए हैं, लोग ने बाहर घूमना फिरना शुरु कर दिया है। ऐसे में जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं ली है उनको संक्रमित होने का चांस बढ़ने के साथ अस्पताल में भर्ती होने और मौत होने का चांस भी बढ़ जाएगा।
ऐसे में हमको सब लोगों को यह समझना होगा कि अगर आप वैक्सीन लेंगे तो आपकी जान बच सकती है और हॉस्पिटल में भर्ती होने का चांस भी कम हो जाएगा लेकिन अगर इंफेक्शन से बचना है तो कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन करना ही होगा। वह कहते हैं कि यह धारणा बिल्कुल गलत है कि वैक्सीन लेने के बाद कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन नहीं करना है। वैक्सीन और कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर दोनों अलग-अलग चीजों से हमको सुरक्षित करते है। कोरोना वैक्सीन हॉस्पिटलाइजेशन और मौत से हमको बचाती है और कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर हमको नए सिरे से इंफेक्शन होने का खतरा कम करता है।
अगर अब हम जब वैक्सीन की बात करते हैं तो एक डोज हमको सुरक्षित नहीं करता है और सभी दोनों डोज वैक्सीन के लेने होंगे। अगर किसी ने यह भी सोचा कि वह कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन करता है तो उसको वैक्सीन नहीं लेने की जरुरत है तो यह भी गलत है। यह समझना होगा कि यह हमारी चॉइस नहीं है। अगर वैक्सीन नहीं ली तो मौत होने का डर भी उतना ही बढ़ जाता है।