COVID-19 महामारी के बाद अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था पर जताया संदेह
कोलकाता। अर्थशास्त्रियों ने कोरोनावायरस महामारी के बाद आर्थिक पुनरुद्धार के समय पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि कोविड-19 ऐसे समय सामने आया, जब पहले ही आर्थिक सुस्ती का दौर शुरू हो चुका था। स्वायत्त अनुसंधान संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के निदेशक रथिन रॉय ने कहा कि खपत और निवेश में गिरावट सरकारी खर्च में वृद्धि से मेल नहीं खाते हैं।
रॉय ने इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित एक वेबिनार में कहा, न तो भारतीय रिजर्व बैंक और न ही सरकार अर्थव्यवस्था को बचा सकती है। निजी क्षेत्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देंगे और अगुवाई करेंगे।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि देश कोरोनावायरस महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन से बाहर निकल रहा है और अर्थव्यवस्था उबरने के संकेत दे रही है। सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपए के वित्तीय पैकेज के बारे में रॉय ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक उधार देने के लिए कहा गया है।
उन्होंने कहा, सरकार ने आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए राजकोषीय उपायों के बजाय ऋण व मौद्रिक नीति का मार्ग चुना है। रॉय ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे का आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव पड़ेगा और कोविड-19 के गुजरने के बाद गुणवत्ता युक्त श्रमिकों की उपलब्धता एक चुनौती होगी।
भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि कोरोनावायरस संकट के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को एक तिमाही में 40-50 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, राजकोषीय या मौद्रिक सहायता की कोई राशि इससे उबर पाने में मदद नहीं करेगी।
उन्होंने कहा कि महामारी ऐसे समय आई है, जब अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्ती की स्थिति में थी। घोष ने यह भी कहा कि लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे को अच्छी तरह से नियंत्रित नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि आरबीआई अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के अपने कदमों के साथ सक्रिय है। उन्होंने कहा, जब अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही हो, तो अधिक ऋण देने से खराब परिसंपत्ति की मात्रा बढ़ेगी और यहीं से राजकोषीय नीति की अहमियत शुरू होती है।
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी रजत कथूरिया ने कहा कि कम कौशल, अशिक्षित और स्व-नियोजित श्रमिकों के बीच बेरोजगारी का बढ़ना चिंताजनक है। उन्होंने उम्मीद जताई कि श्रमिक अपने कार्यक्षेत्र में लौट आएंगे क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के बहुत कम अवसर हैं। उनके अनुसार, भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने में अधिक निवेश करना चाहिए। (भाषा)