दुनिया में विभिन्न जाति एवं धर्म के लोग हैं। विभिन्न धर्मों के अनुयायी विभिन्न त्योहार मनाते हैं। हिन्दू धर्म में जो स्थान दिवाली, दशहरा जैसे त्योहारों का है, वही स्थान ईसाई धर्म में क्रिसमस का है। क्रिसमस का त्योहार प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं।
क्रिसमस वृक्ष की परंपरा :
क्रिसमस डे के दिन लगभग सभी ईसाई लोग अपने घर क्रिसमस वृक्ष सजाते हैं। बताते हैं कि यह परंपरा जर्मनी से प्रारंभ हुई। आठवीं शताब्दी में बोनिफेस नामक एक अंगरेज धर्म प्रचारक ने इसे प्रचलित किया। इसके बाद अमेरिका में 1912 में एक बीमार बच्चे जोनाथन के अनुरोध पर उसके पिता ने क्रिसमस वृक्ष को रंगबिरंगी बत्तियों, पन्नियों से सजाया। तभी से यह परंपरा प्रारंभ हो गई।
सदाबहार फर को क्रिसमस वृक्ष के रूप में सजाया जाता है। बताया जाता है कि जब ईसा का जन्म हुआ, तो देवता उनके माता-पिता को बधाई देने पहुंचे। इन देवताओं ने एक सदाबहार वृक्ष को सितारों से सजाकर प्रसन्नता व्यक्त की। इसके बाद यह वृक्ष क्रिसमस वृक्ष का प्रतीक बन गया।
क्रिसमस वृक्ष को सजाने के साथ-साथ कई स्थानों पर इस वृक्ष के ऊपर देवता की प्रतिमा लगाई जाती है। इंग्लैंड इनमें प्रमुख है। प्रतिमा लगाने की यह परंपरा राजकुमार एलबर्ट ने इंग्लैंड के विंडसर कैसल में क्रिसमस वृक्ष को सजवा कर उसके ऊपर दोनों हाथ फैलाए एक देवता की मूर्ति लगवाई। तब से यह परंपरा चल पड़ी।
विश्व का सबसे बड़ा क्रिसमस वृक्ष उत्तरी कैरोलिना के हिल्टन नामक पार्क में स्थित है। यह वृक्ष लगभग 90 फुट ऊंचा है तथा इसकी परिधि 14 फुट है। जब इसकी पूर्ण छाया पड़ती है तो उस छाया की परिधि 110 फुट से अधिक होती है। इस वृक्ष को क्रिसमस त्योहार पर खूब सजाया जाता है। रंगबिरंगे बल्बों, रंगीन कागजों, मोमबत्तियों व शीशे के टुकड़ों से सजा यह वृक्ष बहुत ही मनोहारी लगता है। हजारों लोग इसके दर्शन करने आते हैं।
क्रिसमस से जुड़े कई रस्मो रिवाज भी हैं, जो दुनियाभर में सदियों से मनाए जाते हैं। सबसे पहले क्रिसमस कार्ड विलियम एंगले द्वारा सन् 1842 में भेजा गया था। चूंकि वह क्रिसमस का मौका था, इसलिए इसे पहला क्रिसमस कार्ड माना जाता है। कहते हैं कि इस कार्ड में एक शाही परिवार की तस्वीर थी, लोग अपने मित्रों के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं देते हुए दिखाए गए थे और उस पर लिखा था 'विलियम एंगले के दोस्तों को क्रिसमस शुभ हो।'
उस जमाने में चूंकि यह नई बात थी, इसलिए यह कार्ड महारानी विक्टोरिया को दिखाया गया। इससे खुश होकर उन्होंने अपने चित्रकार डोबसन को बुलाकर शाही क्रिसमस कार्ड बनवाने के लिए कहा और तब से क्रिसमस कार्डों की शुरुआत हो गई।
क्रिसमस के दिन पुडिंग बनाई जाती है। पुडिंग बनाने की परंपरा 1670 से प्रारंभ हुई। प्राचीनकाल में आलू बुखारे से दलिया जैसा व्यंजन बनाया जाता था। बाद में मांस, शराब व रोटी को मिलाकर 1670 से पुडिंग बनाने की प्रथा शुरू हुई।
उन दिनों पुडिंग को भोजन से पहले ही खा लेते थे। पुडिंग आज भी बनाई जाती है, किंतु आधुनिक जीवन में इसे बनाने के तरीके बदल गए हैं। आज तो विभिन्न प्रकार की पुडिंग बनाई जाती है।
क्रिसमस पर सांता क्लाज की बड़ी महिमा है। इस दाढ़ी वाले बाबा के बिना इस उत्सव का मजा किरकिरा है। क्रिसमस उत्सव की महफिल में सांता क्लाज लंबी-लंबी कई जेबों वाली अजीबोगरीब पोशाक पहनकर आता है। उसकी सफेद दाढ़ी चांदी की तरह चमकती रहती है। उसकी जेबों में कई तरह के प्यारे-प्यारे उपहार रहते हैं। ये उपहार वह हर वर्ष बच्चों को बांटता है।
यह अलग बात है कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ परंपराओं के स्वरूप भी परिष्कृत हो गए हैं। फिर भी कई स्थानों पर ईसाई लोग क्रिसमस के दिन ईसा का जन्मदिन मनाते हुए पुरानी परंपराओं का पालन करते हैं।
- नरेंद्र देवांगन