जिस वक्त भारत राजधानी दिल्ली के लाल किले पर अपनी आजादी के 22 वर्ष का जश्न मना रहा था और आजाद भारत की हवाओं में तिरंगा लहरा रहा था, ठीक उसी वक्त 1969 में भारत की स्पेस एजेंसी ISRO की नींव रखी जा रही थी। आज करीब 54 साल बाद हम चांद पर पहुंच गए हैं।
भारत की देशी अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने 23 अगस्त 2023 की इस तारीख को सुनहरे अक्षरों में इतिहास में दर्ज कर दिया। भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है, जिसने चांद पर यान पहुंचाया। भारत के मून मिशन के तहत चंद्रायान-3 (Chandrayaan-3) चांद पर लैंड किया।
इस ऐतिहासिक अवसर पर जानते हैं इसरो Indian space research organization (ISRO) की अब तक की उपलब्धियां। इसरो का इतिहास और वो शख्स जिसने रखी थी इसरो (ISRO) की नींव।
आज से 54 साल पहले भारत की आजादी के दिन 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की गई थी। इसकी नींव रखने में जो सबसे बड़ा नाम था वो था विक्रम अंबालाल साराभाई। इसरो का मुख्यालय भारत के बैंगलुरु में है। हालांकि इसके पहले इसरो भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) थी, जिसे 1962 में भारत सरकार ने स्थापित किया था। बाद में 1969 में इसरो के पहले अध्यक्ष विक्रम साराभाई ने इसका गठन किया। इसरो के गठन को इसी महीने 15 अगस्त को 54 साल पूरे हो गए हैं। पिछले 54 सालों में इसरो (ISRO) की उपलब्धियों ने न सिर्फ भारत को गौरवशाली इतिहास दिया है बल्कि पूरी दुनिया में अपना दम दिखाया है।
54 साल में इसरों ने 34 देशों के 417 सैटेलाइट्स, 116 स्पेसक्राफ्ट मिशन, 86 लॉन्च मिशन, 13 स्टूडेंट सैटेलाइट और 2 री-एंट्री मिशन पूरे किए। ये उपलब्धियां ISRO का गौरवशाली इतिहास है।
क्या काम है इसरो का : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation - ISRO) एक ऐसा संगठन है जो सीधे देश के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है। वह अंतरिक्ष आधारित एप्लीकेशन, अंतरिक्ष यानी स्पेस में खोज, अंतरराष्ट्रीय स्पेस कॉपरेशन और इससे संबंधित मिशन के लिए तकनीकों को विकसित करता है। बता दें कि इसरो दुनिया की 6 बड़ी स्पेस एजेंसियों में शामिल है। इसरो के पास खुद के रॉकेट्स हैं। क्रायोजेनिक इंजन है। जो दूसरे ग्रहों पर मिशन लॉन्च कर सकता है। जिसके पास भारी मात्रा में आर्टिफिशियल सैटेलाइट्स हैं। पहले ये इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) नाम से जाना जाता था, बाद में 1962 में देश के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के कहने पर सरकार ने इसे इसरो बना दिया यानी (Indian Space Research Organisation- ISRO)
23 अगस्त 2023 को भारत उतरा चांद पर: हाल ही में इसरो ने चांद पर कदम रखने के लिए इसरो ने अपना चंद्रयान-3 भेजा। जिसका विक्रम लैंडर आज यानी 23 अगस्त 2023 को चांद पर लैंड करेगा। बता दें कि रूस ने भी मून मिशन के लिए अपना लूना-25 चांद पर भेजा था, लेकिन चांद की सतह से टकराकर यह पहले ही क्रैश हो चुका है।
पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट : इसरो का पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट (Aryabhata) था। जिसे सोवियत स्पेस एजेंसी इंटरकॉसमॉस ने 1975 में लॉन्च किया था, लेकिन 5 साल बाद ही इसरो ने अपना पहला सैटेलाइट RS-1 अपने घर से लॉन्च किया। इसके बाद इसरो ने पीछे मुडकर नहीं देखा। इसरो के पास आधा दर्जन से ज्यादा तरह के रॉकेट हैं। सैटेलाइट के वजन के हिसाब से अलग-अलग रॉकेट।
रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स नेटवर्क : भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट नेटवर्क है। हम चांद पर तीन और मंगल पर एक बार मिशन भेज चुके हैं। फ्यूचर में भारत इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है। इसके साथ ही सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का विकास किया जा रहा है। चांद और मंगल के बाद सूर्य और शुक्र पर भी स्पेसक्राफ्ट भेजने की तैयारी है।
स्पेस स्टेशन बनाएगा भारत : अपनी उपलब्धियों से लगातार इतिहास रच रहा भारत का इसरो अब स्पेस स्टेशन भी बनाएगा। इसके साथ ही री-यूजेबल लॉन्चर्स। हैवी और सुपर हैवी रॉकेट्स बनाने पर काम चल रहा है। भविष्य में सौर मंडल के अन्य ग्रह यानी बृहस्पति, यूरेनस और नेपच्यून समेत कुछ एस्टेरॉयड्स पर भी मिशन भेजे जाएंगे।
इसरो के फ्यूचर मिशन : इसरो भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान मिशन की तैयारी कर रहा है। अगले दो से तीन साल में हमारे वैज्ञानिक स्पेस में यात्रा कर सकते हैं। चंद्रयान सीरीज में तीन और यान भेजे जा सकते हैं। ये काम 2035 तक किए जाएंगे। इसके अलावा सूर्ययान यानी आदित्य-एल1 अगस्त के अंत तक लॉन्च किया जा सकता है। अगले साल ही शुक्र ग्रह की स्टडी के लिए शुक्रयान लॉन्च किया जा सकता है। मंगलयान-2 की भी योजना है। 2030 तक मंगलयान-3 भी भेजा जा सकता है।
भारत के महान वैज्ञानिकों का योगदान : भारत के इसरो और दूसरे अनुसंधान संगठनों को विकसित करने में देश के कई महान वैज्ञानिकों का योगदान है। इनमें एसके मित्रा, सीवी रमन, मेघनाद साहा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, होमी जहांगीर भाभा, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, एचजीएस मूर्ति, वामन दत्तात्रेय पटवर्धन जैसे भारतीय वैज्ञानिकों ने इसरो और इसके अलग-अलग सेंटरों, तकनीक, रॉकेट्स, इंजन आदि को विकसित करने में योगदान दिया। 1980 में जब भारत ने पहला सैटेलाइट रोहिणी सीरीज-1 (RS-1) देश से लॉन्च किया, तब भारत दुनिया के उन 7 देशों की सूची में शामिल हो गया जिनके पास रॉकेट लॉन्च की सुविधा थी। ये देश थे- सोवियत संघ, अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, चीन और जापान।
इसरो की सफलता की कहानी
आर्यभट्ट– 1975 : आर्यभट्ट स्पेसक्रॉफ्ट भारत का पहला सैटेलाइट था जिसे 1975 में लान्च किया गया।
इंडियन नेशनल सैटेलाइट (INSAT) – 1983 : INSAT को 1983 में लान्च किया गया था। यह एशिया प्रशांत में सबसे बड़ी घरेलू संचार प्रणाली है।
चंद्रयान– 2008 : चंद्रयान- 1 चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन था।
मंगलयान– 2014 : मंगलयान या मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) मंगल ग्रह पर भारत का पहला मिशन था।
एक ही मिशन में 104 लान्च- 2017 : इसरो ने फरवरी 2017 में एक ही मिशन पर 104 उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च करके इतिहास रचा था।
चंद्रयान-2 2019 : इसरो ने 22 जुलाई 2019 को दूसरा मून मिशन चंद्रयान भेजा था।
चंद्रयान-3 2023 : इसरो के चंद्रयान -3 ने चांद पर ऐतिहासिक कदम रखा।
104 स्वदेशी उपग्रह लान्च : इसरो 1975 से 2017 तक 101 स्वदेशी उपग्रह लांच कर चुका था। लेकिन इसमें सिर्फ 99 उपग्रह ही उसने पूरी तरह से खुद बनाए हैं। अन्य दो में से एक एनआइयूसेट को तमिलनाडु की नूरुल इस्लाम यूनिवर्सिटी ने बनाया था, जिसे 23 जून, 2017 को लांच किया गया। वहीं आइआरएनएसएस-1एच को निजी कंपनी के साथ मिलकर बनाया गया था। यह संख्या 104 हो गई।
417 विदेशी उपग्रहों की लान्चिग : इसरो ने अपने सफलता के झंडे न सिर्फ देश के लिए गाडे हैं बल्कि विदेशी मिशन में भी इसरो का योगदान है। भारत का यह अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो 34 देशों के 417 उपग्रह और अन्य मिशन लॉन्च कर चुका है। इन देशों में ब्रिटेन, चेक गणराज्य, फ्रांस, लिथुआनिया, स्लोवाकिया, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, जर्मनी, बेल्जियम, चिली, लातविया, इटली, अमेरिका, जापान, संयुक्त अरब अमीरात, कजाखिस्तान, इजरायल, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, कनाडा, सिंगापुर, इंडोनेशिया, डेनमार्क, लक्जमबर्ग, अल्जीरिया, तुर्की, दक्षिण कोरिया और अर्जेंटीना हैं।
1963: थुंबा से (21 नवंबर 1963) को पहले राकेट का प्रक्षेपण।
1965: थुंबा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी केन्द्र की स्थापना।
1967: अहमदाबाद में उपग्रह संचार प्रणाली केन्द्र की स्थापना।
1972: अंतरिक्ष आयोग एवं अंतरिक्ष विभाग की स्थापना।
इसरो के इंस्टीटयूट और सेंटर
इसरो के माइलस्टोन सेंटर : इसरो रॉकेट और सैटेलाइट लॉन्चिंग के अलावा और भी कई काम करता है। देश में इसके 6 रिसर्च फैसिलिटी हैं।
तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर : यहां रॉकेट बनाए जाते हैं।
तिरुवनंतपुरम-बेंगलुरु के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर : यहां इंजन विकसित किए जाते हैं।
अहमदाबाद फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी : खगोलीय विज्ञान से संबंधित काम होते हैं। इसकी एक ऑब्जरवेटरी उदयपुर में भी है।
तिरुपति नेशनल एटमॉस्फियरिक रिसर्च लेबोरटरी : जहां पर वायुमंडल से संबंधित स्टडी की जाती है।
अहमदाबाद में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर : यहां संचार, सर्वे, रिमोट सेंसिंग, मौसम, पर्यावरण संबंधी स्पेस एप्लीकेशन बनाए जाते हैं।
शिलॉन्ग नॉर्थ-ईस्टर्न स्पेस एप्लीकेशन सेंटर : यह रिमोट सेंसिंग, जीआईएस, संचार और स्पेस साइंस के लिए काम करता है।
महेंद्रगिरी प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स : यहां लिक्विड इंजन, स्टेज इंजन, सेटेलाइट्स के इंजनों की जांच होती है। इसके अलावा 4 कंस्ट्रक्शन और लॉन्च फैसिलिटी हैं।
बेंगलुरु यूआर राव सैटेलाइट सेंटर : यहां सैटेलाइट्स की असेंबलिंग और निर्माण होता है। क्वालिटी चेक होती है।
श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से रॉकेट लॉन्च किया जाता है। इसके अलावा तिरुवनंतपुरम में थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन हैं। जहां से साउंडिंग रॉकेट्स की लॉन्चिंग होती है। इसरो के ट्रैकिंग और कंट्रोल फैसिलिटी की भरमार है। बेंगलुरु में मौजूद है- इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क, इसरो टेलिमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क, स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस कंट्रोल सेंटर है। हैदराबाद में नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर है। इसकी शाखाएं बालानगर और शादनगर में भी है. देहरादून में इसकी ट्रेनिंग होती है।
ISRO में तैयार होते हैं महान वैज्ञानिक: देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग। तिरुवनंतपुरम का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी। अहमदाबाद में डेवलपमेंट एंड एजुकेशनल कम्यूनिकेशन यूनिट। अगरतला, भोपाल, जालंधर, नागपुर, राउरकेला और तिरुचिरापल्ली में स्पेस टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन सेंटर्स हैं। बुर्ला और संबलपुर में स्पेस इनोवेशन सेंटर हैं। वाराणसी, गुवाहाटी, कुरुक्षेत्र, जयपुर, मैंगलुरु और पटना में रीजनल एकेडेमी सेंटर फॉर स्पेस है।
प्राकृतिक आपदाओं की सूचना के लिए सैटेलाइट : इसके साथ ही इसरो के पास दो मुख्य सैटेलाइट सिस्टम है। पहला इंडियन नेशनल सैटेलाइट सिस्टम (INSAT) जिनसे पूरे देश में संचार व्यवस्था बनी रहती है। दूसरा इंडियन रिमोट सेंसिंग प्रोग्राम (IRS)। इन उपग्रहों की बदौलत प्राकृतिक संसाधनों, आपदाओं की जानकारी मिलती है।