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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 31 मार्च 2022 (07:53 IST)

रिफाइंड, सरसों के तेल और दूसरे खाद्य तेलों के क्यों बढ़ रहे हैं दाम?

रिफाइंड, सरसों के तेल और दूसरे खाद्य तेलों के क्यों बढ़ रहे हैं दाम? - Why edible oil rates are increasing
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
भारत दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक है। आंकड़ों की बात करें तो भारत खाद्य तेलों की अपनी कुल खपत का लगभग 56 फ़ीसद हिस्सा विदेशों से मंगाता है। इसमें सोयाबीन के तेल से लेकर सूरजमुखी और पाम ऑयल जैसे तमाम खाद्य तेल शामिल हैं जिन्हें इंडोनेशिया से लेकर मलेशिया, रूस, यूक्रेन समेत दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना जैसे देशों से आयात किया जाता है।
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने पिछले हफ़्ते लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया, "खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 56 फीसद का अंतर है और यह आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है।"
 
साध्वी निरंजन ज्योति ने खाद्य तेलों की आपूर्ति और मांग से जुड़े आंकड़े बताते हुए कहा कि साल 2020-21 में भारत में खाद्य तेल की मांग 246.03 टन थी जिसमें से 134.52 टन मात्रा का आयात किया गया।
 
वहीं, खाद्य तेलों के खुदरा रेट की बात करें तो पिछले तीन सालों में मूंगफली, सरसों, वनस्पति, सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम ऑयल के दामों में लगातार बढ़त देखी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर खाद्य तेलों के दाम में साल दर साल बढ़त क्यों हो रही है। और आने वाले समय में खाद्य तेल के दामों में कमी आने की कितनी संभावनाएं हैं।
 
सरकार क्या कर रही है?
बीबीसी ने सरकारी दस्तावेज़ों को खंगालकर ये जानने की कोशिश की है कि सरकार कीमतों पर लगाम लगाने के लिए क्या कर रही है।
 
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने बीती 23 मार्च को लोकसभा में बताया है, 'खाद्य तेलों समेत सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें मांग और आपूर्ति में अंतर, मौसमी परिस्थितियों, लॉजिस्टिक्स से जुड़े मसलों और अंतरराष्ट्रीय कीमतों की वजह से प्रभावित है। खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन घरेलू मांग की पूर्ति करने में असमर्थ है। खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 56 फीसद का अंतर है और यह आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। खाद्य तेलों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि से देश में खाद्य तेलों की घरेलू कीमतों पर प्रभाव पड़ रहा है।'
 
लेकिन सवाल ये उठता है कि आख़िर ऐसे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से पिछले कुछ महीनों से लगातार खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल देखा जा रहा है।
 
बीबीसी ने खाद्य तेल के व्यापार को समझने वाले घनश्याम खंडेलवाल से बात करके इन कारणों को समझने की कोशिश की है। खंडेलवाल पिछले 45 सालों से सरसों के तेल का कारोबार कर रहे हैं। 35 साल पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश के बरेली में अपनी कंपनी की नींव रखी थी जो अब सालाना 2500 करोड़ रुपए का कारोबार करती है।
 
बायोडीज़ल में खाद्य तेल का इस्तेमाल
पिछले एक दशक में दुनिया के कई देशों में बायोडीज़ल के प्रयोग को प्राथमिकता दी जा रही है। घनश्याम खंडेलवाल मानते हैं कि ये खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ने का एक बड़ा कारण है क्योंकि बायोडीज़ल की वजह से खाद्य तेलों की आपूर्ति में कमी आई है।
 
वे कहते हैं कि खाद्य तेलों के दामों में बढ़त के लिए ऊर्जा क्षेत्र में आया बदलाव शामिल है। जब से खाद्य तेलों से बायोडीज़ल बनने लगा है तब से इन तेलों के दाम पेट्रो के दामों के हिसाब से ऊपर-नीचे होने लगे हैं। सबसे ख़ास बात ये है कि दुनिया के तमाम देश बायोडीज़ल की तरफ़ बढ़ रहे हैं। कोई बी 15, कोई बी 20 और कोई बी 30 पर गया है। इसका मतलब ये है कि इन देशों में पेट्रोलियम उत्पादों में 30 फीसद बायोडीज़ल लगा रहे हैं। ऐसे में खाद्य तेल की मांग बढ़ती जा रही है जबकि उत्पादन इस रफ़्तार से नहीं बढ़ रहा है।
 
दुनिया भर में घटता उत्पादन
खाद्य तेल जिन फसल के जरिए हासिल होता है, उनके उत्पादन में गिरावट की बात दक्षिण अमेरिका से लेकर इंडोनेशिया जैसे देशों में भी सामने आई है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, हालिया दौर में दक्षिण अमेरिकी देशों में सोयाबीन की पैदावार में गिरावट दर्ज की गई है। खंडेलवाल मानते हैं कि मौजूदा दौर में कीमतें बढ़ने में इसकी एक अहम भूमिका है।
 
खंडेलवाल बताते हैं, "पिछले साल की दिक्कत ये हुई कि सबसे पहले अर्जेंटीना की फसल ख़राब हुई। पिछले साल कनोला की फसल कम हुई। फिर ब्राज़ील की फसल में सूखा लग गया। इसके साथ ही लॉकडाउन की वजह से उत्पादन पर असर पड़ा।
 
लॉकडाउन के चलते मलेशिया में मजदूर प्लांट्स पर नहीं पहुंच सके। इंडोनेशिया में भी यही देखा गया। अब जाकर यूक्रेन से माल आना बंद हो गया है। रूस से थोड़ा-बहुत आ रहा है। ऐसे में हर बार जब हम इस कोशिश में होते हैं कि भाव सामान्य हो जाएं तब तक कुछ ऐसा हो जाता है कि कीमतों में उछाल देखने को मिलता है। और हम लगभग 60 फीसद खाद्य तेल आयात करते हैं, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय कीमतों में परिवर्तन आने पर स्थानीय स्तर पर तेल की कीमतों में परिवर्तन होना लाज़मी है।
 
इसके साथ ही खंडेलवाल कहते हैं कि कीमतों में नाटकीय बदलाव के लिए फ़्यूचर बाज़ार भी एक हद तक ज़िम्मेदार है जिसकी वजह से सरकार एमसीबीएक्स और एमसीएक्स में तेल की ट्रेडिंग को प्रतिबंधित कर दिया है।
 
यूक्रेन और रूस युद्ध का असर
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़, रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का असर खाद्य तेलों के दामों पर दिखना शुरू हो गया है। भारतीय व्यापारियों ने बेहद ऊंची कीमतों पर रूसी निर्यातकों से सूरजमुखी का तेल ख़रीदने के लिए करार किया है।
 
रूस से 12 हज़ार टन ख़रीदने का अनुबंध करने वाली कंपनी जेमिनी एडिबल्स एंड फैट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रदीप चौधरी ने बताया है कि यूक्रेन में माल चढ़ाया जाना संभव नहीं है, ऐसे में ख़रीदार रूस से आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं।
 
रिफाइंड बनाने वाली कंपनियों ने सूरजमुखी का कच्चा तेल 2150 डॉलर प्रति टन ख़रीदने का अनुबंध किया है जबकि यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले यह कीमत प्रति टन 1630 डॉलर थी।
 
चौधरी ने बताया है कि यूक्रेन में संघर्ष शुरू होने से पहले पाम ऑयल की तुलना में सूरजमुखी का तेल सस्ता था लेकिन यूक्रेन के बड़े निर्यातकों की ओर से आपूर्ति बंद होने की वजह से ख़रीदारों को ऊंची कीमतों पर तेल ख़रीदना पड़ रहा है।
 
यूक्रेन युद्ध के असर को लेकर खंडेलवाल कहते हैं, "अब राहत भरी ख़बरें आ रही हैं कि यूक्रेन और रूस में शायद शांति वार्ता चलती दिख रही है। ऐसे में अब मौजूदा दौर से लेकर 2023 तक धीरे - धीरे तेल के दामों में गिरावट होती दिखेगी।
 
यूक्रेन के युद्ध की वजह से तेल के दामों में बढ़त इसलिए है क्योंकि दक्षिण भारतीय राज्यों में सूरजमुखी के तेल की खपत काफ़ी ज़्यादा है। लेकिन युद्ध की वजह से आपूर्ति बिलकुल बंद सी हो गई है। ऐसे में जो रेट 1400 डॉलर प्रति टन था वो अब बढ़कर 2150 डॉलर प्रति टन हो गया है।
 
यहां ये बात समझना ज़रूरी है कि अगर किसी एक तेल के दाम बढ़ते हैं तो उसकी वजह दूसरे खाद्य तेलों की कीमतों में भी इजाफ़ा होगा।
 
खंडेलवाल इसे समझाते हुए कहते हैं, 'अगर सनफ़्लॉवर तेल के दाम बढ़ेंगे तो उसकी देखा-देखी दूसरे तेलों के दाम भी बढ़ेंगे। सनफ़्लॉवर अगर बढ़ेगा तो कनोला के रेट भी बढ़ेंगे। और सोयाबीन तेल के दामों में भी बढ़त दिखती है। यही बात दूसरे तेलों पर भी लागू होती है कि अगर पाम ऑयल की कीमत में बढ़त होगी तो सोया समेत दूसरे तेलों की कीमत भी बढ़ेगी।
 
सरकार क्या कर सकती है?
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की मंत्री साध्वी निरंजन ने लोकसभा में बताया है कि सरकार बढ़ी हुई कीमतों को ध्यान में रखते हुए सब्सिडी पर तेल उपलब्ध कराने की दिशा में विचार नहीं कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार ऐसे कौन से कदम उठा रही है जिससे कीमतों में कमी आ सके।
 
बीबीसी से बात करते हुए एक खुदरा तेल विक्रेता ने लगभग यही सवाल उठाया था। दिल्ली में रोजमर्रा के सामान से जुड़ी दुकान चलाने वालीं किरन अग्रवाल कहती हैं, 'दो समस्याएं अहम हैं, पहली बात ये है कि नया माल मिलने में दिक्कत हो रही है। ट्रेडर से पांच पेटी मांगो तो बोल रहा है कि एक पेटी दे पाऊंगा। और दूसरी बात ये है कि हमारा मार्जिन प्रति किलो के हिसाब से कम होता जा रहा है। अब एक तरफ तो जो भी ख़रीदने आ रहा है, उसे भी दिक्कत हो रही है, दूसरा हम पूरे दिन में पांच पैकेट रिफाइंड बेचेंगे तब जाकर पचास रुपये की कमाई हो रही है। वो भी तब जब हम एमआरपी पर बेच रहे हैं, पहले एमआरपी से पांच-सात रुपये कम पर भी बेचते थे तब भी हमें आठ-दस रुपये का लाभ हो जाता था। लेकिन अब मुश्किल है। पता नहीं ये सब कब तक चलेगा।'
 
पिछले कुछ दिनों में खाद्य तेल के साथ-साथ तमाम अन्य चीजों के दामों में महंगाई आने की वजह से जनता में असहजता देखी जा रही है।
 
लेकिन खंडेलवाल मानते हैं कि अब ये समस्या ज़्यादा दिन की नहीं हैं। इस समस्या का एक फायदा ये हुआ है कि स्थानीय उत्पादकों को फायदा हुआ है। और आने वाले दिनों में कीमतों में भी कमी आएगी क्योकिं ऊंचे दामों की वजह से भारत समेत दुनिया भर में किसान खाद्य तेलों वाली फसल को तरजीह देंगे।
 
भारत में इस साल ही 1.2 लाख टन की रिकॉर्ड फसल दर्ज की गयी है जो कि पिछले साल 90-95 लाख टन थी। जिस किसान को आज सरसों का 6000 रुपये मिल रहा है, वो तो उगाएगा क्योंकि पिछले साल उसे चार हज़ार रुपये भी नहीं मिलता था। भारतीय किसान को पिछले साल के मुकाबले 50 फीसद का इजाफा हुआ है। अगर ये कीमतें ऐसे ही मिलती रहीं तो वह गेहूं क्यों उगाएगा।
 
लेकिन अगर सरकार की ओर से मौजूदा संकट के समाधान के लिए उठाए जा रहे कदमों की बात करें तो सरकार आयात शुल्क कम करने की दिशा में बढ़ रही है।
 
साध्वी निरंजन ज्योति ने लोकसभा में बताया है कि "सरकार ने कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क को 2.5 फीसद से घटाकर शून्य कर दिया गया है, इन तेलों पर कृषि उपकर 5 फीसद कर दिया गया है। रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क 32.5 फीसद से घटाकर 17.5 फीसद कर दिया गया है और रिफाइंड पाम ऑयल पर मूल शुल्क को 17.5 फीसद से घटाकर 12.5 फीसद कर दिया है।"
 
इसके साथ ही एनसीडीईएक्स पर सरसों के तेल में वायदा कारोबार को समाप्त कर दिया है। लेकिन इन कदमों और यूक्रेन में शांति की संभावनाएं सामने आने से तेल के दामों में कितनी जल्दी गिरावट आएगी, ये आने वाले दिनों में सामने आएगा।
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