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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 20 जून 2024 (08:45 IST)

पुतिन और किम जोंग उन की 'दोस्ती' चीन क्यों हद में रखना चाहेगा

पुतिन और किम जोंग उन की 'दोस्ती' चीन क्यों हद में रखना चाहेगा - Why china wants putin and kim jong friendship in limit
लौरा बिकर, चीन संवाददाता, बीबीसी न्यूज़
सुबह के तीन बजे एयपोर्ट पर गर्मजोशी से गले लगना, घुड़सवार सैनिकों का गार्ड ऑफ ऑनर देना, राजधानी प्योंगयांग के बीच राष्ट्रपति पुतिन और किम जोंग की बड़ी-बड़ी तस्वीरें एक साथ दिखाई देना। ये सब पश्चिम को परेशान के करने के लिए किया गया था।
 
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साल 2000 में पहली बार उत्तर कोरिया की यात्रा की थी। इतने लंबे समय के बाद यह यात्रा दोनों देशों के लिए किसी मौक़े की तरह थी कि वे अपनी दोस्ती को दुनिया के सामने बढ़ा-चढ़ा कर दिखाएं।
 
सिर्फ़ दिखावे भर की बात नहीं रही। उत्तर कोरिया के प्रमुख किम जोंग ने घोषणा की कि वे यूक्रेन युद्ध में रूस का पूरी तरह से समर्थन करते हैं। इन शब्दों और इस मुलाक़ात में दक्षिण कोरिया, अमेरिका और यूरोपीय संघ को बहुत बड़ा खतरा दिखाई दे रहा है।
 
हालांकि सच यह है कि दोनों नेताओं को लगता है कि उन्हें एक दूसरे की ज़रूरत है। पुतिन को युद्ध जारी रखने के लिए गोला-बारूद चाहिए, वहीं उत्तर कोरिया को पैसों की ज़रूरत है। लेकिन इस क्षेत्र में असली ताक़त उत्तर कोरिया के पास नहीं है।
 
पुतिन और किम जोंग, चीन की मदद से ही दोस्ती कर रहे हैं, इसलिए वे उसे नाराज़ नहीं करना चाहते, क्योंकि चीन दोनों देशों पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच व्यापार और प्रभाव बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
 
भले पुतिन, किम के साथ अपनी गहरी दोस्ती की तारीफ़ कर रहो हों, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि इसकी एक सीमा है और वह कोई और नहीं बल्कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं।
 
चीन की नज़र
ऐसे कुछ संकेत हैं कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने दो सहयोगियों के क़रीब आने से बहुत ख़ुश नहीं हैं। मई में चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने पुतिन से मुलाक़ात की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस मुलाक़ात के बाद पुतिन से यह अनुरोध किया गया था कि वे इस मुलाक़ात के बाद सीधे उत्तर कोरिया न जाएं।
 
ऐसा लगता है कि चीनी अधिकारियों को इस यात्रा में उत्तर कोरिया को शामिल किए जाने का विचार पसंद नहीं आया है।
 
चीनी राष्ट्रपति पर पहले से ही अमेरिका और यूरोप दबाव डाल रहे हैं कि वह रूस को अपना समर्थन देना बंद करे और उसे वह सामान न दे जो यूक्रेन युद्ध को बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
 
शी जिनपिंग इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। जिस तरह से दुनिया को चीन के सामान की ज़रूरत है, उसी तरह चीन को भी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने रहने, विदेशी पर्यटकों और निवेश की ज़रूरत है।
 
यह वजह है कि चीन अब यूरोप के कुछ देशों के साथ-साथ थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया से आने वाले लोगों को वीजा फ्री यात्रा की पेशकश कर रहा है। इतना ही नहीं एक बार फिर से विदेशी चिड़ियाघरों में पांडा भेजे जा रहे हैं।
 
चीन के महत्वाकांक्षी नेता शी जिनपिंग के लिए धारणाएं मायने रखती हैं, क्योंकि वे एक बड़ी वैश्विक भूमिका निभाना चाहते हैं और उनकी टक्कर सीधा अमेरिका से है।
 
यह बात तय है कि वे ख़ुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में नहीं देखते, जिसका बहिष्कार किया जाए या वे पश्चिमी देशों से नए दबाव का सामना भी नहीं करना चाहते।
 
बावजूद इन दबावों के चीन, रूस के साथ अपने संबंधों को संभाल रहा है। हालांकि उन्होंने अभी तक यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा नहीं की है, लेकिन उसने रूस को इस युद्ध में कोई बड़ी सैन्य सहायता भी नहीं भेजी है।
 
मई में राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात के दौरान चीनी राष्ट्रपति ने बहुत संभलकर बयान दिए थे, हालांकि दूसरी तरफ़ पुतिन उनके बारे में प्रशंसा करते हुए दिखाई दिए थे।
 
किम जोंग के परमाणु हथियारों को बढ़ाने की कोशिशों का चीन अब तक समर्थन करते आया है। उसने बार-बार संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों में टांग अड़ाने का काम किया है। हालांकि शी जिनपिंग, किम जोंग उन के इस रवैये के प्रशंसक नहीं हैं।
 
उत्तर कोरिया बार-बार हथियारों का परीक्षण करता है। यही वजह है कि जापान और दक्षिण कोरिया, अमेरिका के साथ अपने कड़वे इतिहास को भुलाकर उसके क़रीब गए हैं।
 
जब तनाव बढ़ता है तो प्रशांत महासागर में अधिक अमेरिकी युद्धपोत दिखाई देने लगते हैं। ऐसे में ‘पूर्वी एशियाई नेटो’ बनने की संभावना से चीन को डर लगने लगता है।
 
क्या रूस अपने फ़ैसले पर विचार करेगा?
चीन की नाराज़गी रूस को इस बात के लिए मजबूर कर सकती है कि वह उत्तर कोरिया को और अधिक तकनीक बेचने के फ़ैसले पर पुनर्विचार करे। यह अमेरिका के लिए भी एक बहुत बड़ी चिंता है।
 
एनके न्यूज़ के निदेशक आंद्रेई लांकोव को इस बारे में संदेह है। वे कहते हैं, "मुझे उम्मीद नहीं है कि रूस उत्तर कोरिया को बड़ी मात्रा में सैन्य टेक्नोलॉजी देगा।"
 
उनका मानना है कि रूस को बहुत कुछ नहीं मिल रहा है और अगर उसे कुछ मिलता भी है तो ऐसा करने से भविष्य में उसके लिए समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
 
हालांकि उत्तर कोरिया के तोपखाने, पुतिन के लिए यूक्रेन युद्ध में एक बड़ी ताक़त साबित होंगे, लेकिन इसके बदले मिसाइल तकनीक का इस्तेमाल करना कोई बड़ी बात नहीं होगी।
 
पुतिन को यह एहसास हो सकता है कि चीन को नाराज़ करना फ़ायदे का सौदा नहीं है, क्योंकि वह रूस से तेल और गैस ख़रीदता है। इतना ही नहीं पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच चीन ने उसका हाथ पकड़ा हुआ है।
 
उत्तर कोरिया को चीन की ज़रूरत और भी ज़्यादा है। यह एकमात्र ऐसा देश है, जहां किम जोंग जाते हैं। उत्तर कोरिया का क़रीब आधा तेल रूस से आता है, लेकिन उसका कम से कम 80 प्रतिशत व्यापार चीन के साथ होता है।
 
चीन और उत्तर कोरिया के संबंधों पर टिप्पणी करते हुए एक विश्लेषक का कहना है कि यह किसी एक ऐसे तेल के दिए की तरह है जो लगातार जल रहा है।
 
हालांकि पुतिन और किम जोंग भले ही सहयोगी दिखने की कोशिश करें लेकिन दोनों के लिए चीन की अहमियत कहीं ज्यादा है।
 
चीन को कोई भी नहीं खोना चाहता
‘साम्राज्यवादी पश्चिम’ के ख़िलाफ़ उनकी घोषित लड़ाई के बावजूद यह युद्ध को देखते हुए की गई साझेदारी है। यह और मज़बूत हो सकती है लेकिन अभी के लिए ऐसा लगता है कि हर कोई इसमें अपना फ़ायदा-नुक़सान देख रहा है। भले ही वे अपनी साझेदारी को गठबंधन के स्तर तक क्यों न ले जाएं।
 
रूस और उत्तर कोरिया के बीच 'कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप' एग्रीमेंट इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि किम जोंग गोला-बारूद की आपूर्ति जारी रख सकेंगे, क्योंकि किम को अपने लिए भी इसकी बड़ी ज़रूरत है। इसकी वजह है कि दक्षिण कोरिया उसके सामने बैठा है और उससे रक्षा के लिए भी उसे हथियारों की ज़रूरत है।
 
विश्लेषकों का यह भी मानना ​​है कि रूस और उत्तर कोरिया अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें से उत्तर कोरिया के सिस्टम की क्वॉलिटी बहुत अच्छी नहीं है और वह पुराना होते जा रहा है।
 
इससे भी ज्यादा ज़रूरी बात यह है कि रूस और उत्तर कोरिया ने दशकों तक अपने संबंधों को प्राथमिकता नहीं दी।
जब पश्चिम के साथ उनके दोस्ताना संबंध थे तब पुतिन ने उत्तर कोरिया पर 2 बार प्रतिबंध लगाए थे। इतना ही नहीं उत्तर कोरिया को परमाणु कार्यक्रम छोड़ने के लिए मनाने में रूस अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ शामिल तक हो गया था।
 
2018 में जब किम जोंग ने कूटनीतिक शिखर सम्मेलनों के लिए बाहर क़दम रखा तो उनकी राष्ट्रपति पुतिन से सिर्फ़ एक बार ही मुलाक़ात हुई। उस वक़्त किम के चेहरे पर मुस्कान, गर्मजोशी से गले मिलना और रूस के साथ दोस्ती का दिखावा करना, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के लिए था।
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