• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. why bjp gives ticket to Pankaja munde by cutting ticket of Pritam munde
Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 17 मार्च 2024 (07:57 IST)

भाजपा ने महाराष्ट्र के बीड में प्रीतम मुंडे का टिकट काटकर पंकजा पर क्यों जताया भरोसा?

pankaja munde
'मुझे इतने लंबे समय के लिए वनवास मिला है। ऐसा कहा जाता है कि इस युग में वनवास केवल पांच वर्ष के लिए होना चाहिए। पुराने समय में वनवास 14 वर्ष के लिए होता था। क्या पांच वर्ष का वनवास मेरे लिए काफ़ी है? या आप सब चाहते कि मुझे और वनवास मिले? क्या आप सब मेरे साथ हैं?'
 
ये शब्द बीजेपी नेता पंकजा मुंडे के हैं, जिन्हें बीजेपी की दूसरी लिस्ट से पता चला कि उनका वनवास ख़त्म हो गया है। उन्होंने टिकट मिलने के दो दिन पहले ही ये बयान दिया था।
 
पंकजा मुंडे को बीजेपी ने बीड लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित किया है। इस सीट से उनकी ही बहन प्रीतम मुंडे सांसद थीं। पार्टी ने पंकजा की बहन का टिकट काटकर उन्हें टिकट दे दिया।
 
पंकजा मुंडे कहती हैं, 'मुझे लोकसभा के लिए नामांकित किया गया है। मैं इससे ख़ुश हूं। प्रीतम के साथ मेरा कॉम्बिनेशन अच्छा था। लेकिन प्रीतम का टिकट काटकर मुझे दे दिया गया, इसलिए मेरी मिली-जुली भावनाएं हैं। अब मैं लोकसभा चुनाव की तैयारी करने जा रही हूं।'
 
पंकजा साल 2019 के विधानसभा चुनाव में अपने चचेरे भाई और नेशलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता धनंजय मुंडे से हार गई थीं। इसके बाद हुए विधान परिषद और राज्यसभा चुनाव में पंकजा मुंडे को जगह मिलने की चर्चा थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें मौका नहीं दिया।
 
फिर, साल 2020 के बाद उन्हें राष्ट्रीय मामलों की राष्ट्रीय सचिव बनाया गया। उन्हें मध्य प्रदेश प्रभारी की ज़िम्मेदारी भी दी गई। इस बदलाव से ऐसा लग रहा था कि पंकजा राष्ट्रीय राजनीति में उतर सकती हैं। हालांकि, अब पंकजा मुंडे को उनकी बहन प्रीतम मुंडे की जगह उम्मीदवार बनाए जाने से कई सवाल भी खड़े हुए हैं।
 
pritam munde with pankaja munde
इन कारणों से बाहर हुईं प्रीतम मुंडे?
पंकजा मुंडे 2014 में परली विधानसभा क्षेत्र से चुनी गईं थीं। उन्हें राज्य कैबिनेट में भी जगह मिली थी, मगर 2019 के विधानसभा चुनाव में उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे ने उन्हें हरा दिया।
 
पंकजा लगातार राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रहीं, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई बार बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की आलोचना कर अपनी नाराज़गी जाहिर की थी।
 
वहीं, उनकी बहन प्रीतम मुंडे पिछले दस साल से बीड लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी कहते हैं कि उनका काम लोगों पर प्रभाव नहीं डाल सका।
 
वह कहते हैं, "प्रीतम मुंडे को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह तक नहीं मिली। दूसरी ओर पंकजा, प्रीतम मुंडे से ज़्यादा लोकप्रिय हैं। किसी न किसी वजह से वे लगातार ख़बरों में बनी रहती हैं। उनके पीछे एक बड़ा वंजारी समुदाय है। तो ऐसे में लंबे समय तक पंकजा को उपेक्षित करना बीजेपी के लिए संभव नहीं था।"
 
साल 2014 में अपने पिता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में प्रीतम मुंडे सबसे ज्यादा अंतर से जीती थीं। उन्हें सात लाख वोटों से जीत हासिल हुई थी।
 
साल 2019 के चुनाव में प्रीतम को फिर से टिकट दिया गया। वो चुनाव जीत तो गईं लेकिन उनके जीत के अंतर में भारी गिरावट आई। वो महज़ 1 लाख 68 हज़ार वोटों से ही जीत हासिल कर सकीं।
 
ओबीसी वोट बचाने की जुगत
पिछले कुछ चुनावों में धनंजय मुंडे और पंकजा मुंडे के बीच टकराव के कारण ओबीसी वोटों का बंटवारा हुआ था। मगर अजित पवार से गठबंधन के बाद धनंजय मुंडे और पंकजा मुंडे के बीच का पुराना विवाद भी सुलझ गया है।
 
विशेषज्ञों के मुताबिक़ अगर इस चुनाव में ओबीसी वोटों का बंटवारा नहीं हुआ और धनंजय और पंकजा मुंडे मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी आसानी से जीत सकती है।
 
कहा जा रहा है कि इसी भरोसे के चलते बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने पंकजा को लोकसभा के लिए चुनने का फ़ैसला किया होगा।
 
लोकमत के सहायक संपादक संदीप प्रधान पंकजा की उम्मीदवारी पर कहते हैं, "गोपीनाथ मुंडे बीजेपी के बड़े नेता थे। उनको पार्टी के लिए काम करते समय कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। चूंकि पंकजा और प्रीतम गोपीनाथ मुंडे की उत्तराधिकारी हैं, इसलिए उम्मीद थी कि दोनों को पार्टी में जगह मिलेगी। 2014 और 2019 के चुनाव के दौरान उन्हें ये जगह मिली भी।"
 
"लेकिन मोदी अपनी राजनीति में वंशवाद के ख़िलाफ़ बयान देते आए हैं। इसलिए इस उम्मीदवारी से यह संदेश गया कि 'एक परिवार, एक पद' नीति के तहत पंकजा या प्रीतम में से किसी एक को मौक़ा दिया जाएगा। यदि दोनों की तुलना की जाए तो पंकजा मुंडे एक नेता के तौर पर प्रीतम की तुलना में अधिक प्रभावशाली हैं, लेकिन कई बार पंकजा ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वरिष्ठ नेताओं की आलोचना की है।"
 
पंकजा का राजनीतिक सफर
पंकजा मुंडे के राजनीतिक सफ़र की शुरुआत उनके पिता गोपीनाथ मुंडे की छत्रछाया में हुई। वह अपने पिता के साथ जनसंपर्क भी किया करती थीं।
 
2009 में गोपीनाथ मुंडे बीड लोकसभा से चुने गए। इसी साल विधानसभा चुनाव में पंकजा मुंडे को परली विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया। इससे उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे नाराज़ हो गए। लेकिन विधान परिषद में उन्हें अपनी शिकायतें दूर करने का मौक़ा दिया गया। फिर, 2013 में धनंजय मुंडे एनसीपी में शामिल हो गए। गोपीनाथ मुंडे के लिए यह एक झटका था।
 
2014 के लोकसभा चुनाव में गोपीनाथ मुंडे भारी अंतर से जीते लेकिन चंद दिनों बाद ही उनकी एक सड़क दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु हो गई। इसके बाद सारी ज़िम्मेदारी पंकजा मुंडे पर आ गई। उस समय पंकजा को गोपीनाथ मुंडे के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन गोपीनाथ मुंडे की सीट पर प्रीतम मुंडे को लोकसभा उम्मीदवार बनाया गया।
 
वहीं, साल 2014 के विधानसभा चुनाव में परली विधानसभा क्षेत्र से पंकजा मुंडे और धनंजय मुंडे के बीच मुक़ाबला हुआ था। पंकजा बड़े अंतर से चुनी गईं। उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में महिला बाल कल्याण, जल संरक्षण और ग्रामीण विकास का प्रभार मिला।
 
पंकजा के बयान जो बने सुर्खियां
इस बीच पंकजा अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में बनी रहीं। उन्होंने कई बयान दिए। "जनता के मन में मैं मुख्यमंत्री हूं" - यह बयान उनमें से एक है।
 
पंकजा के आक्रामक स्वभाव के कारण राज्य में कई बड़े बीजेपी नेताओं से उनके मतभेद रहे। उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर कई नेताओं के प्रति अपनी नाराज़गी भी जाहिर की है।
 
मंत्री रहते हुए पंकजा मुंडे पर चिक्की घोटाले का आरोप लगा। पंकजा के भाई धनंजय मुंडे ने ये आरोप लगाए थे जिसकी जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई।
 
कुछ महीनों बाद पंकजा को 'क्लीन चिट' मिल गई। लेकिन चिक्की घोटाले से उनकी छवि खराब हुई थी। पार्टी के आंतरिक संघर्ष और निर्वाचन क्षेत्र में उपलब्धता कम होने के कारण भी उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ा।
 
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में फिर से पंकजा बनाम धनंजय मुंडे का मुक़ाबला हुआ। इसमें पंकजा मुंडे की हार हुई थी। इसके बाद पिछले पांच साल से वह राष्ट्रीय स्तर पर संगठनात्मक जिम्मेदारियां निभा रही हैं।
 
इस बीच उन्होंने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की भी आलोचना की थी। तब कहा गया था कि वो भारतीय जनता पार्टी छोड़ सकती हैं।
 
इन कयासों पर उन्होंने कहा था, "मेरी निष्ठा इतनी कमजोर नहीं है। अगर कभी बुरा वक़्त आया तो मैं खेत में जाकर काम करना पसंद करूंगी लेकिन अपनी निष्ठा गिरवी नहीं रखूंगी।"