शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Why are there repeated coup attempts in Bolivia
Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 30 जून 2024 (18:14 IST)

बोलीविया में क्यों बार-बार होती हैं तख़्तापलट की कोशिशें, ये हैं तीन बड़ी वजहें

बोलीविया में क्यों बार-बार होती हैं तख़्तापलट की कोशिशें, ये हैं तीन बड़ी वजहें - Why are there repeated coup attempts in Bolivia
Why are there repeated coup attempts in Bolivia : बोलीविया में तख़्तापलट और विद्रोह की अलग-अलग कोशिशें कोई नई बात नहीं हैं। ला पाज़ में राष्ट्रपति भवन पर सैनिकों के हमले के कुछ घंटों बाद बोलीवियाई पुलिस ने कथित तख़्तापलट की कोशिश करने वाले एक नेता को गिरफ़्तार कर लिया है। तख़्तापलट की कोशिशों के दौरान सैकड़ों सैनिक बख़्तरबंद गाड़ियों के साथ प्रमुख सरकारी इमारतों वाले इलाके मुरिलो स्क्वायर पर तैनात हो गए थे।
 
एक बख़्तरबंद गाड़ी के जरिए राष्ट्रपति भवन के प्रवेश द्वार को तोड़ने की कोशिश भी की गई। हालांकि बाद में सैनिक वापस लौट गए। लेकिन ऐसे कौनसे हालत थे जिनकी वजह से बोलीविया में तख़्तापलट जैसी स्थिति पैदा हुई। इसके पीछे ये 3 बड़ी वजहें बताई जा रही हैं।
 
बोलीविया में तख़्तापलट का इतिहास
1950 के बाद पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बार बोलीविया में तख़्तापलट की कोशिशें हुई हैं। यहां तक कि वर्तमान स्थिति में भी कुछ घंटों के लिए उन काले दिनों की यादें ताज़ा होती हुई दिखाई दीं जब सेना ने चुनी हुई सरकार को सत्ता से बाहर धकेल दिया था।
 
अमेरिकी इतिहासकार जोनाथन पॉवेल और क्लेटन थाइन के डेटा विश्लेषण के अनुसार, बोलीविया में पिछले 47 सालों के दौरान दर्जनों तख़्तापलट हुए हैं। हालांकि इनमें से आधी कोशिशें क़ामयाब नहीं हो पाईं। पॉवेल ने बीबीसी मुंडो को बताया कि बोलीविया, 'संभवतः' दुनिया में सबसे ज़्यादा तख़्तापलट वाला देश है, लेकिन 1950 से पहले उन सभी के बारे में विश्वसनीय जानकारी हासिल करना मुश्किल है।
 
विश्लेषकों ने बीबीसी मुंडो को बताया कि तख़्तापलट की गिनती में समस्या का एक हिस्सा यह है कि सैन्य तख़्तापलट को सामाजिक विद्रोह या सत्ता के असंवैधानिक कब्ज़े से अलग करके देखना एक मुश्किल भरा काम है। अमेरिका में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के राजनीतिक वैज्ञानिक फैब्रिस लेहोक के अनुसार, 1900 के बाद से लैटिन अमेरिका में लगभग 320 सैन्य तख़्तापलट हुए हैं। लेहोक ने बीबीसी मुंडो को बताया, इनमें से ज़्यादातर का संबंध बोलीविया, इक्वाडोर और अर्जेंटीना के साथ रहा है।
 
तख़्तापलट की ताज़ा कोशिश, क्या थी वजह?
तख़्तापलट की कोशिशों में शामिल सैनिकों का नेतृत्व जनरल जुआन जोस ज़ुनिगा कर रहे थे, जो मंगलवार को अपनी बर्ख़ास्तगी तक सेना के प्रमुख थे। राष्ट्रपति लुइस आर्से ने ज़ुनिगा को बर्ख़ास्त कर दिया, क्योंकि जनरल ने धमकी दी थी कि अगर मोरालेस 2025 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ते हैं, तो वे पूर्व बोलीवियाई राष्ट्रपति इवो मोरालेस को गिरफ़्तार कर लेंगे, जबकि संवैधानिक नियम उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं।
 
हालांकि जनरल ने अपनी इस कोशिश को 'लोकतंत्र को फिर से जीवित करने' का नाम दिया। हमले के बाद ज़ुनिगा को गिरफ़्तार कर लिया गया। गिरफ़्तारी के कुछ देर बाद उन्होंने बताया कि सेना ने राष्ट्रपति के अनुरोध पर हस्तक्षेप किया था। वहीं बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस आर्से ने 'तख़्तापलट की कोशिश' की निंदा की और जनता से 'लोकतंत्र के पक्ष में संगठित होने और लामबंद होने' का आह्वान किया।
 
इसके बाद सैकड़ों बोलीवियाई लोग सरकार के समर्थन में सड़कों पर उतर आए। हालांकि बोलीविया में अशांति का यह माहौल बढ़ते तनाव के बीच पैदा हुआ है। बोलीविया में कमज़ोर आर्थिक हालातों के अलावा आर्से और मोरालेस के बीच चली आ रही कड़वाहट भरी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते देश में पिछले कुछ महीनों के दौरान कई प्रदर्शन हुए हैं।
 
कभी सहयोगी थे राष्ट्रपति आर्से और पूर्व राष्ट्रपति मोरालेस
कभी एक दूसरे के राजनीतिक सहयोगी रहे राष्ट्रपति आर्से और उनसे पहले बोलीविया के राष्ट्रपति रहे मोरालेस इन दिनों 2025 के राष्ट्रपति चुनावों से पहले सत्ता संघर्ष में उलझे हुए हैं। वे एक ही राजनीतिक दल, मूवमेंटो अल सोशलिज्मो यानी समाजवाद के आंदोलन से जुड़े रहे हैं। जब मोरालेस ने ऐलान किया कि वे राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ेंगे तब आर्से और मोरालेस के बीच विवाद पैदा हो गया।
 
हालांकि दिसंबर 2023 में ही देश के संवैधानिक न्यायालय ने उन्हें चौथी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया था। बोलीविया की संवैधानिक न्यायालय ने अपनी वेबसाइट पर इस बारे में जानकारी देते हुए बताया, किसी के लिए तय की गई कार्यकाल की सीमा इसलिए बनाई गई है कि किसी को बार-बार सत्ता में बने रहने से रोका जा सके।
 
मोरालेस के इरादों को आर्से के लिए एक खुली चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, जिनके फिर से चुनाव लड़ने की उम्मीद है। सैन्य प्रमुख ने मोरालेस को 2019 में राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों में हेराफेरी करने की कोशिश के आरोपों के बाद पद से इस्तीफा देने और देश से भागने के लिए मजबूर कर दिया था। हालांकि मोरालेस ने इन आरोपों से इनकार किया था।
 
सेंटर-राइट जीनिन एनेज़ 2019 से 2020 तक देश की अंतरिम नेता थीं, लेकिन बाद में मोरालेस को हटाने के लिए तख्तापलट करने के आरोप में उन्हें 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि आर्से ने दोबारा से वोटिंग में जीत हासिल की। वहीं जनरल जुनिगा ने बुधवार को मुरिलो स्क्वायर पर कब्जा करने वाले सैनिकों का नेतृत्व किया था।
 
मोरालेस ने दी है धमकी
मोरालेस ने बोलीविया में सामाजिक उथल-पुथल की धमकी दी है। उन्होंने कहा यह धमकी उन्हें अयोग्य ठहराने या फिर उनकी उम्मीदवारी को रोकने के ख़िलाफ़ दी है। मोरालेस बोलीविया के पहले स्वदेशी राष्ट्रपति थे और 2006 से 2019 तक पद पर रहे। वे बोलीविया में एक बेहद लोकप्रिय लेकिन विवादित व्यक्ति बने हुए हैं।
 
मोरालेस ने चेतावनी देते हुए बताया कि उनके ख़िलाफ़ एक 'डार्क प्लान' बनाया जा रहा है। जिसमें आर्से और जनरल जुनिगा शामिल हैं। फिर भी सैन्य लामबंदी के दौरान मोरालेस ने बोलीवियाई लोगों से लोकतंत्र की रक्षा करने का आह्वान किया- जिसका मतलब है कि सेना को सत्ता संभालने की अनुमति देने की बजाय आर्से की सरकार को अल्पावधि में सत्ता में बने रहने देना।
 
राष्ट्रपति आर्से ने साल 2022 में बोलीविया सेना के प्रमुख जुनिगा को नियुक्त किया था। आर्से और सेना प्रमुख जुनिगा दोनों ही मोरालेस के आलोचक रहे हैं। सोमवार को एक टीवी इंटरव्यू के दौरान जुनिगा ने कहा था कि वे मोरालेस को संविधान को रौंदने से रोकेंगे।
 
हालांकि बुधवार को अपनी गिरफ़्तारी के दौरान जुनिगा ने आर्से पर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए तख़्तापलट की साज़िश रचने का आरोप लगाया। हालांकि जुनिगा ने अपने दावे को सही साबित ठहराने के लिए कोई भी सबूत नहीं दिया है और ये अराजक घटनाएं क्यों हुई हैं? इसकी भी वजह सामने नहीं आ पाई हैं।
 
बेहद कमज़ोर आर्थिक हालातों में है बोलीविया
बोलीविया में मचा बवाल जटिल आर्थिक और सामाजिक हालातों के बीच है। सालों से बोलीविया की अर्थव्यवस्था लैटिन अमेरिकी देशों में सबसे अलग रही है। बोलीविया तेज़ विकास और कम महंगाई के लिए जाना जाता रहा है, जबकि इसके कई पड़ोसी देश काफी महंगाई से जूझ रहे हैं।
 
हालांकि बोलीविया में गरीबी की दर लैटिन अमेरिका में सबसे ज़्यादा है। लोकल करेंसी में लगातार आ रही गिरावट के बीच देश में लोग खरीदारी के लिए अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि धीरे-धीरे अमेरिकी नोट मिलना भी मुश्किल होता जा रहा है।
 
जिसके बाद देश के अर्थशास्त्री जिसे 'आर्थिक चमत्कार' कह रहे थे उस अवधारणा पर ही ख़तरा पैदा होता जा रहा है। अमेरिकी डॉलर की कमी से बोलीविया के आयात और निर्यात को नुकसान पहुंच रहा है, और बोलीविया के लोग चावल और टमाटर जैसी बुनियादी चीजों को खरीदने के लिए अपनी जेब ढीली कर रहे हैं।
 
डॉलर में कमी आने की क्या है वजह
बोलीवियाई अर्थशास्त्री जैमे डन का कहना है कि अमेरिकी डॉलर की कमी आंशिक रूप से देश के प्राकृतिक गैस उत्पादन में गिरावट के चलते आई है। यह गिरावट तब से है जब मोरालेस ने 2006 में हाइड्रोकार्बन उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया था।
 
इंडियन राष्ट्र ने मोरालेस और आर्से प्रशासन के दौरान अमेरिकी डॉलर का उपयोग करके बड़ी सब्सिडी वाले ईंधन ख़रीद कार्यक्रम जैसी सामाजिक योजनाओं में पैसा खर्च किया। हाइड्रोकार्बन का निर्यात करने की स्थिति के बाद अब बोलीविया को ईंधन मांगना पड़ रहा है।
 
डन के मुताबिक़ इससे देश में भारी आर्थिक संकट पैदा होता जा रहा है। एक तो लोगों की कमाई में गिरावट आ रही है दूसरा उनका खर्च भी बढ़ते जा रहा है। 2014 में बोलीविया को प्राकृतिक गैस से रेवेन्यू मिलता था लेकिन अब यह देश कर्ज़ में डूबा हुआ है।
 
राष्ट्रपति आर्से के अनुसार, बोलीविया 56% पेट्रोल और 86% डीजल का आयात करता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बोलीविया के पास अपनी ज़रूरत के ईंधन का आयात करने के लिए भी पर्याप्त डॉलर नहीं हैं, जिससे देशभर में सार्वजनिक प्रदर्शन बढ़ रहे हैं।
 
तख़्तापलट की कोशिशों की निंदा
दुनियाभर के देशों ने बुधवार को बोलीविया में हुई तख्तापलट की कोशिशों की निंदा की है। विश्लेषक अब कह रहे हैं कि यह बात साफ होती जा रही है कि बुधवार का प्रदर्शन गलत तरीके से किया गया सैन्य विद्रोह था। अभी यह देखा जाना बाकी है कि क्या सरकार जल्द अपना नियंत्रण वापस ले पाएगी?
 
क्या उसकी क्षमता घट गई है? और 2025 के चुनावों की तरफ बढ़ते देश में वह कम लोकप्रिय होते जा रही है? या फिर सत्ता के लिए जूझ रही बोलीवियाई राजनीति, देश की स्थिति को और भी ज़्यादा कमज़ोर करती रहेगी।
ये भी पढ़ें
जापान में मांस खाने वाले जानलेवा बैक्टीरिया का बढ़ता कहर