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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 29 जनवरी 2024 (09:00 IST)

नीतीश कुमार के पाला बदलने से इंडिया गठबंधन पर क्या असर पड़ेगा

Nitish Kumar
- नलिन वर्मा
What impact will Nitish Kumar's resignation have on India alliance :
नीतीश कुमार रविवार को पाला बदलकर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हो गए। उनके इस क़दम से 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ खड़ा हो रहे इंडियन नेशनल डिवेलपमेंट इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) को तगड़ा झटका लगा है।
 
मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेताओं के मुताबिक़ 'इंडिया' गठबंधन के आर्किटेक्ट नीतीश कुमार ही थे। यह इसलिए भी महत्वूर्ण था कि उन्होंने दिल्ली और पश्चिम बंगाल में अपने समकक्ष अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाक़ात कर उन्हें कांग्रेस के साथ इस गठबंधन में शामिल किया।
 
नीतीश कुमार के पाला बदलने का समय
नीतीश कुमार का यह क़दम उस दिन सामने आया, जब एक दिन बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' बंगाल से लगे किशनगंज के रास्ते बिहार में प्रवेश कर रही है।
 
शायद बीजेपी के रणनीतिकारों ने एनडीए को और अधिक फ़ायदा पहुंचाने के लिए नीतीश की एंट्री का दिन तय किया। इससे उसे कई राज्यों में सीट बँटवारे में फँसे 'इंडिया' गठबंधन पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल होगी। बीजेपी का अनुमान है कि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए उत्तर भारत में उनके लिए जबरदस्त माहौल तैयार किया है।
 
बीजेपी ने अभी हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का विधानसभा चुनाव जीता है। इससे हिंदी भाषी राज्यों में उसकी ताक़त बढ़ी है। अगस्त 2022 में नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल हो जाने से बीजेपी बिहार में असुरक्षित महसूस कर रही थी।
 
विधानसभा की 79 सीटों के साथ राष्ट्रीय जनता दल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी है। इसके नेता लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय की लड़ाई के सबसे बड़े योद्धा और हिंदुत्व विरोधी राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक हैं। हालांकि बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत दर्ज की थी।
 
लेकिन उसके रणनीतिकारों को इस बात का डर था कि नीतीश कुमार के महागठबंधन में रहते हुए वे शायद 2019 के चुनाव परिणाम को दोहरा न पाएं।
 
बिहार में कैसा प्रदर्शन करेगी बीजेपी?
क्या बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में 2019 के चुनाव परिणाम को दोहरा पाएगी? नीतीश के साथ आने से भाजपा के रणनीतिकार अब अपनी संभावनाओं को लेकर आशावादी हो सकते हैं। लेकिन इस सवाल का असली जवाब जानने के लिए हमें तब तक इंतज़ार करना होगा, जब तक कि चुनाव परिणाम नहीं आ जाते हैं।
 
नीतीश कुमार की जेडीयू ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले के दम पर लड़ा था। उसे करीब 15 फ़ीसदी वोट और दो सीटें मिली थीं। इसके बाद वो राजद और कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल हो गए, जिसने भाजपा के 53 सीटों के मुक़ाबले 178 सीटों पर जीत दर्ज की।
 
नीतीश 2017 में महागठबंध को छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। साल 2019 के चुनाव में जेडीयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीटें जीतीं और भाजपा ने 17 सीटें जीतीं। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को बड़ा घाटा हुआ। उसकी सीटें घटकर 42 रह गईं। 76 सीटें जीतने वाली भाजपा ने चुनाव पूर्व किए वादे के मुताबिक़ नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनवाया।
 
लेकिन चुनाव परिणाम साफ़तौर पर मतदाताओं के बीच नीतीश की घटती लोकप्रियता को दिखा रहे थे। उनकी पार्टी के नेताओं ने बीजेपी पर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को आगे कर जेडीयू की जीत की संभावनाओं को कम करने का आरोप लगाया।
 
उनका आरोप था कि चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी ने जेडीयू के ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़ा किए। जेडीयू के बयान के मुताबिक़ लोजपा ने भले ही अधिक सीटें न जीती हों, लेकिन उसके उम्मीदवारों ने 32 सीटों पर उसके उम्मीदवारों को हराने के लिए पर्याप्त वोट काटे।
 
संभव है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले हिंदुत्व और विपक्षी दलों के कथित समावेशी राजनीति के बीच नीतीश कुमार की आवाजाही से अच्छे प्रशासक वाली उनकी छवि प्रभावित नहीं हुई होगी। इसके अलावा नीतीश कुमार भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति के आरोपों से भी मुक्त हैं।
 
साल 2024 के लोकसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?
लेकिन बार-बार इधर-उधर करने से नीतीश कुमार की वैचारिक प्रतिबद्धता को नुकसान ज़रूर हुआ है। भाजपा के रणनीतिकार यह ज़रूर कह सकते हैं कि उन्होंने 'इंडिया' गठबंधन के पायलट को ही हटाकर, गठबंधन तोड़ दिया है।
 
नीतीश के पाला बदकर बीजेपी की ओर जाने का बिहार से बाहर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा। छह बार सांसद और लंबे समय तक केंद्र सरकार में मंत्री रहने के बाद भी नीतीश एक ऐसे राष्ट्रीय नेता के रूप में नहीं उभर पाए, जो दूसरे राज्यों की राजनीति को प्रभावित कर सके।
 
अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश, ममता बनर्जी को बंगाल और कांग्रेस को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ाई में नीतीश कुमार की बहुत कम ज़रूरत है।
 
राजद, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन की सरकार की ओर से बिहार में जाति सर्वेक्षण कराने, अति पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति-जनजाति का आरक्षण 65 फ़ीसदी तक बढ़ाने और युवाओं को क़रीब चार लाख नौकरियां देने की पृष्ठभूमि में नीतीश कुमार ने पाला बदला है।
 
साल 2020 के चुनाव में राजद नेता और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियां देने का वादा किया था। उनकी पार्टी जाति आधारित जनगणना और हाशिए के समाज को आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देने के लिए दवाब डाल रही थी। तेजस्वी यादव ने नौकरी देने का जो वादा किया था, महागठबंधन सरकार ने कम से कम उसे पूरा किया है।
 
इतने बड़े आधार पर नौकरियां देने और वंचित तबके का आरक्षण बढ़ाने का श्रेय तार्किक रूप से लालू प्रसाद यादव की राजद को ही जाता है। ईसीबी, ओबीसी और एससी-एसटी का बढ़ा हुआ आरक्षण बीजेपी के आक्रामक हिंदुत्व के मुक़ाबले वंचित समाज और अल्पसंख्यकों को राजद के पीछे लामबंद कर सकता है।
 
राजद के साथ सीपीआई-एमएल भी है, जिसका बिहार के कुछ इलाकों के ग़रीबों में अच्छा प्रभाव है। नीतीश कुमार के डिप्टी के रूप में तेजस्वी यादव ने अच्छा काम किया है। युवाओं में उन्होंने अच्छी साख भी कमाई है।
 
नीतीश कुमार ने क्यों बदला पाला?
पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के साथ 2015 के विधानसभा चुनाव में काम किया था। वो कहते हैं, ''साल 2022 में नीतीश कुमार के पाला बदलकर महागठबंधन में शामिल होने का कारण जेडीयू थी, उन्हें डर था कि 45 विधायकों वाली उनकी पार्टी को बीजेपी तोड़ कर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा सकती है।''
 
''वह मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी बचाने के लिए महागठबंधन में शामिल हुए थे। अब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए बीजेपी के साथ गए हैं। लेकिन यह कोई नहीं जानता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद वो क्या करेंगे। नीतीश ख़ुद नहीं जानते हैं कि वो क्या करेंगे। वह वही करेंगे जो उस समय उन्हें अच्छा लगेगा।''
 
जेडीयू ने 'इंडिया' गठबंधन से नीतीश के अलग होने का दोष कांग्रेस पर मढ़ दिया है। जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, ''हमारे नेता (नीतीश) ने 'इंडिया' गठबंधन को बनाने के लिए कठिन परिश्रम किया। वो इसमें कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल को लेकर आए, लेकिन कांग्रेस हमेशा घमंड में रही।''
 
''उसने अपनी मज़बूत पकड़ वाले क्षेत्रों में क्षेत्रीय दलों को जगह नहीं दी, लेकिन उनकी बदलौत वह उन क्षेत्रों में बढ़त बनाना चाहती थी, जहाँ उसका अस्तित्व नहीं है। कांग्रेस की ज़िद ने नीतीश को उसे छोड़ने पर मजबूर किया।''
 
हालांकि नीतीश कुमार ने इस बात से हमेशा इनकार किया कि वो 'इंडिया' गठबंधन का संयोजक या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना चाहते हैं। लेकिन जेडीयू के नेता चाहते थे कि 'इंडिया' गठबंधन उन्हें अपना संयोजक या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए।
 
इस बात की चर्चा थी कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने मुंबई में हुई 'इंडिया' की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में किया था और ये दोनों नेता नीतीश कुमार को 'इंडिया' का संयोजक बनाए जाने के ख़िलाफ़ थे।
 
अभी हाल में हुई 'इंडिया' गठबंधन की ऑनलाइन बैठक में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने नीतीश का नाम संयोजक के रूप में प्रस्तावित किया था। उनके इस प्रस्ताव का कांग्रेस और राजद समेत अन्य दलों ने समर्थन किया था। लेकिन नीतीश ने यह ज़िम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था। बैठक में ममता बनर्जी शामिल नहीं हुई थीं।
 
कई दलों को 'इंडिया' गठबंधन में शामिल कराने के प्रयासों के बाद भी नीतीश शायद पाला बदल राजनीति की वजह से गठबंधन के संयोजक के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए राजनीतिक दलों का विश्वास नहीं जीत पाए थे। वे विश्वास की कमी से पीड़ित थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया शिक्षक और लोककथाओं के स्वतंत्र शोधार्थी हैं)