• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Ukraine war: how much the world is dependent on Russian gas and oil
Written By BBC Hindi
Last Updated : बुधवार, 30 मार्च 2022 (07:52 IST)

यूक्रेन युद्ध: रूस के गैस और तेल पर कितनी निर्भर है ये दुनिया

यूक्रेन युद्ध: रूस के गैस और तेल पर कितनी निर्भर है ये दुनिया - Ukraine war: how much the world is dependent on Russian gas and oil
जेक हॉर्टन, डेनियल पालुंबो और टिम बॉलर, बीबीसी रियलिटी चेक
अमेरिका और यूरोपीय संघ तरल प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने वाले एक समझौते पर सहम​त हुए हैं। इसके तहत, रूस की ऊर्जा पर यूरोप की निर्भरता घटाने के लिए अमेरिका अब यूरोप को एलएनजी की आपूर्ति करेगा। फ़रवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस से तेल और गैस के आयात पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इस समझौते को मंज़ूरी दी गई है।
 
रूस पर क्या प्रतिबंध लगाए गए?
अमेरिका ने रूस से होने वाले तेल, गैस और कोयले के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इसके बाद, ब्रिटेन को इस साल के अंत तक रूस से होने वाले तेल की आपूर्ति को बंद करना है।
 
वहीं, यूरोपीय संघ अब रूस से आने वाले गैस का आयात दो-तिहाई कम करने जा रहा है। ब्रिटेन की सरकार का कहना है कि इससे उसे वैकल्पिक सप्लाई खोजने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने कहा है कि रूस के तेल को न ख़रीदने का 'दुनिया के बाजार पर विनाशकारी असर' होगा।
 
मालूम हो कि तेल और गैस की क़ीमतें पहले से ही तेज़ी से बढ़ी हुई हैं। ऐसे में यदि रूस के निर्यात पर रोक लगा दी गई तो दाम और बढ़ जाएंगे।
 
रूस कितना तेल निर्यात करता है?
अमेरिका और सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। वो प्रतिदिन लगभग 50 लाख बैरल कच्चे तेल का निर्यात करता है। इसमें से आधे से अधिक तेल यूरोप को जाता है। रूस से होने वाला तेल आयात ब्रिटेन की कुल तेल ज़रूरतों का 8% है।
 
रूसी तेल पर अमेरिका की निर्भरता कम है। 2020 में अमेरिका का लगभग 3% तेल रूस से आ रहा था।
 
तेल की कमी पूरी कैसे होगी?
ऊर्जा नीति पर अनुसंधान करने वाले बेन मैकविलियम्स का इस बारे में कहना है कि गैस की तुलना में तेल आपूर्ति का विकल्प ढूंढना आसान है, क्योंकि रूस से थोड़े ही तेल आते हैं, "बाक़ी दूसरे जगहों से आते हैं।"
 
उधर, अमेरिका सऊदी अरब से कह रहा है कि वो अपना तेल उत्पादन बढ़ाए। हालांकि सऊदी अरब ने तेल की क़ीमतें कम करने के लिए उत्पादन बढ़ाने का अमेरिकी अनुरोध पहले ख़ारिज कर चुका है।
 
तेल आपूर्ति करने वाले देशों के संगठन ओपेक में सऊदी अरब सबसे बड़ा उत्पादक है। मालूम हो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का लगभग 60% कारोबार ओपेक ही करता है। तेल की क़ीमतें तय करने ओपेक की भूमिका काफ़ी अहम है। अभी तक ओपेक का कोई भी सदस्य देश उत्पादन बढ़ाने के किसी अनुरोध पर तैयार नहीं हुआ है।
 
रूस हालांकि ओपेक का सदस्य नहीं है। लेकिन तेल उत्पादकों की आय सुधारने के लिए वो 'ओपेक प्लस' के नाम से 2017 से ओपेक के साथ काम कर रहा है।
 
अमेरिका, वेनेज़ुएला पर लगाए गए तेल निर्यात के प्रतिबंधों में ढील देने पर भी विचार कर रहा है। वेनेज़ुएला पहले अमेरिका जाने वाले तेल का प्रमुख निर्यातक हुआ करता था, लेकिन अब वो बड़े पैमाने पर चीन को अपना तेल बेच रहा है।
 
क्या हो यदि रूसी गैस का पश्चिमी यूरोप जाना बंद हो जाए?
ईंधन की क़ीमतें जो पहले से ही चढ़ी हुई है, तब और भी महंगी हो जाएंगी। विभिन्न देशों से यूरोपीय संघ के देशों में जाने वाले प्राकृतिक गैस में रूस की हिस्सेदारी अभी लगभग 40% है।
 
यदि यह स्रोत बंद हो जाता है, तो इटली और जर्मनी विशेष रूप से मुश्किल में घिर जाएंगे।
 
उसके बाद यूरोप गैस के मौजूदा निर्यातकों जैसे क़तर, अल्जीरिया या नाइजीरिया का रुख़ कर सकता है। हालांकि तेज़ी से उत्पादन बढ़ाने के रास्ते कई व्यावहारिक बाधाएं हैं।
 
रूस ​अभी ब्रिटेन आने वाली गैस की आपूर्ति का लगभग 5% देता है। वहीं अमेरिका फ़िलहाल रूस से बिल्कुल भी गैस नहीं मंगवाता।
 
यूक्रेन युद्ध के बाद प्रतिबंध लगने और अन्य समस्याओं के चलते यूरोप, ब्रिटेन और कुछ हद तक अमेरिका में गैस की क़ीमतें काफ़ी बढ़ गईं। हालां​कि अब वो फिर से ​घट गए हैं।
 
क्या रूस के गैस का विकल्प है?
अमेरिका इस साल के अंत तक यूरोप को अतिरिक्त 15 अरब घन मीटर तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) भेजने पर सहमत हो गया है।
 
इसका उद्देश्य कम से कम 2030 तक हर साल 50 अरब घन मीटर अतिरिक्त गैस की आपूर्ति करना है।
 
हालांकि ऊर्जा नीति पर अनुसंधान करने वाले बेन मैकविलियम्स का कहना है कि रूस से निर्यात होने वाल गैस का विकल्प ढूंढ़ना आसान नहीं है।
 
मैकविलियम्स कहते हैं, "गैस का विकल्प ढूंढ़ना इसलिए कठिन है कि हमारे पास बड़े बड़े पाइप हैं, जिससे रूस की गैस यूरोप जा रही है।''
 
यूरोप ऊर्जा के दूसरे स्रोतों के उपयोग में भी तेजी ला सकता है, लेकिन तुरंत और आसानी से ऐसा नहीं हो सकता।
 
एक अन्य शोध विश्लेषक सिमोन टैगलीपिएट्रा कहते हैं, "अक्षय ऊर्जा का उत्पादन शुरू होने में समय लगता है। इसलिए थोड़े से वक़्त में ऐसा करना संभव नहीं है।"
 
वो कहते हैं कि ऐसे में अगली सर्दियों से निपटने के लिए इटली और जर्मनी की तरह कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र खोलने की योजना है। आपात दशा में यह बहुत बड़ा काम करेगा।"
 
यूरोपीय संघ ने 2030 से पहले यूरोप को रूस के जीवाश्म ईंधन से आज़ाद करने की योजना बनाने का सुझाव दिया है।
 
इसमें गैस आपूर्ति को विविध बनाने और घरों को गर्म करने और बिजली उत्पादन के लिए गैस का इस्तेमाल बंद करने के उपाय शामिल हैं।
 
ईंधन के ख़र्चों का क्या होगा?
इस युद्ध के चलते उपभोक्ताओं को बिजली और ईंधन के बढ़े हुए बिलों का सामना करना पड़ेगा। ब्रिटेन में, ईंधन की क़ीमतों पर लगाम लगाकर ईंधन बिल क़ाबू में रखे गए हैं। हालांकि अप्रैल में जब इसके दामें पर लगे कैप बढ़ा दी जाएगी तो अप्रैल में ईंधन का बिल 700 पाउंड से बढ़कर क़रीब 2,000 पाउंड हो जाएगा। आने वाले पतझड़ के मौसम में जब दाम फिर बढ़ाए जाएंगे तो ईंधन का बिल लगभग 3,000 पाउंड तक पहुंच हो जाएगा।
 
ब्रिटेन में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें भी बढ़ गई हैं। अब सरकार ने ईंधन शुल्क घटाने का एलान किया है, क्योंकि गाड़ी चलाने वाले रिकॉर्ड क़ीमतों के साथ संघर्ष कर रहे हैं।
 
मैकविलियम्स के अनुसार, "मुझे लगता है कि हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां यदि रूसी तेल और गैस यूरोप जाना बंद कर दे, तो हमें इसका इस्तेमाल करने के लिए हमें इन चीज़ों की राशनिंग करनी होगी।"
 
मैकविलियम्स ने कहा, "अब बातचीत का हिस्सा ये है कि क्या हम लोगों से कह सकते हैं कि वे अपने घरों को एक डिग्री कम गर्म करें।"
ये भी पढ़ें
बंगाल की राजनीति से हिंसा का साथ नहीं छूटता