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Last Updated : गुरुवार, 14 सितम्बर 2017 (12:11 IST)

क्या लश्कर और आईएस से जुड़े हैं रोहिंग्या लड़ाकों के तार?

क्या लश्कर और आईएस से जुड़े हैं रोहिंग्या लड़ाकों के तार? - Rohingya Muslims
उपासना भट्ट (बीबीसी मॉनिट्रिंग)
अराकान रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी (एआरएसए) के बारे में आई हालिया रिपोर्टें बताती हैं कि इस संगठन के तार कई क्षेत्रीय जिहादी समूहों से जुड़े हो सकते हैं। इन रिपोर्टों से ये भी पता चलता है कि म्यांमार सेना की कार्रवाइयों की वजह से ये समूह अपना समर्थन बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।
 
इस साल 25 अगस्त को एआरएसए ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में पुलिस ठिकानों पर हमले किए थे जिसके बाद से म्यांमार की सेना रोहिंग्या लोगों के ख़िलाफ़ अभियान चला रही है। बीबीसी की मॉनिटरिंग सेवा ने अभी तक मीडिया में एआरएसए के बारे में आ रही ये जानकारियां जुटाई हैं।
 
पाकिस्तान और बांग्लादेश कनेक्शन
नई दिल्ली में म्यांमार के पत्रकारों की स्थापित की गई निजी कंपनी 'द मिज़्ज़िमा मीडिया ग्रुप' ने भारतीय ख़ुफ़िया सूत्रों के हवाले से कई बार कहा है कि एएसआरए के लड़ाकों को पाकिस्तानी चरमपंथी समूह लश्कर-ए-तैयबा प्रशिक्षण दे रहा है। मिज़्ज़िमा ने पिछले साल अक्तूबर में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि एएसआरए के नेता अताउल्लाह उर्फ़ हाफ़िज़ तोहार को एक अन्य चरमपंथी संगठन हरकत-उल-जिहाद इस्लामी अराकान (हूजी-ए) ने जोड़ा था। हरकत उल जिहाद इस्लामी अराकान (हूजी-ए) के पाकिस्तानी तालिबान और लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंध हैं।
 
इस रिपोर्ट में कई पाकिस्तानी और रोहिंग्या समूहों के बीच बीते कई सालों से चले आ रहे संबंधों का ज़िक्र है और बताया गया है कि रोहिंग्या समूह ने थाईलैंड और मलेशिया में रह रहे रोहिंग्या लोगों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है। रिपोर्ट में बांग्लादेश के चरमपंथ रोधी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी चरमपंथी समूहों के बीच तालमेल को भी खारिज नहीं किया जा सकता है।
 
1 सितंबर को साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में मिज़्ज़िमा के संपादक सुबीर भौमिक की एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसमें दोहराया गया था कि एआरएसए के अधिकतर लड़ाकों को लश्कर-ए-तैयबा ने प्रशिक्षण दिया है। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि एआरएसए के जमात-उल-मुजाहीदीन बांग्लादेश और इंडियन मुजाहिदीन के साथ संबंधों को लेकर दिल्ली और ढाका में नाराज़गी है।
 
सीमा पर लगे कैंप
मिज़्ज़िमा की 5 सितंबर को प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान की आईएसआई 25 अगस्त को हुए एआरएसए के हमलों के पीछे थी और उसने ही बांग्लादेश म्यांमार सीमा पर स्थित एआरएसए और जेएमबी के लड़ाकों को प्रशिक्षण दिया है। रिपोर्ट में अज्ञात सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि बांग्लादेश की ख़ुफ़िया एजेंसी ने आईएसआई और अताउल्लाह के बीच फोन कॉल टैप किए थे। इस कॉल में ही आईएसआई ने 25 अगस्त के हमलों का आदेश दिया था।
 
रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि इस्लामिक स्टेट के लिए लोगों की नियुक्ति करने वाले एक व्यक्ति ने समूह को हमले से पहले मुबारकबाद भी दी थी। ये व्यक्ति ख़ुद को 'अल-अमीन दाएशी' कहते हैं। मिज़्ज़िमा की रिपोर्ट में किए गए इन दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती है लेकिन इन पर कुछ सवाल ज़रूर उठ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर कथित इस्लामिक स्टेट का सदस्य स्वयं को दाएशी नहीं कहेगा क्योंकि इस शब्द को इस्लामिक स्टेट अपमानजनक मानता है। साथ ही ये भी साफ़ नहीं है कि म्यांमार में हमले से पाकिस्तान के कौन से रणनीतिक या कूटनीतिक हित सध सकते हैं।
 
सीमा पार कैसे जा रहे हैं लड़ाके और पैसा
स्ट्रेट टाइम्स में स्थानीय सुरक्षा सूत्रों के हवाले से 6 सितंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश से करीब दो सौ लड़ाके म्यांमार में घुसे हैं जिनमें विदेशी लड़ाके भी हो सकते हैं। रिपोर्ट में इंडोनेशिया के आचे प्रांत और फिलीपींस से आए लड़ाकों के म्यांमार पहुंचने का दावा भी किया गया है। ये भी कहा गया है कि सऊदी अरब से मलेशिया, थाईलैंड और बांग्लादेश के रास्ते पैसा लड़ाकों तक पहुंच रहा है।
 
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) ने अपने विश्लेषण में कहा है कि "बाहरी चरमपंथी समूहों से मिल रही मदद के बावजूद ऐसे कोई सबूत नहीं है जिनसे पता चलता हो कि एआरएसए के लड़ाके अंतरराष्ट्रीय जिहादी एजेंडे का समर्थन करते हैं।" आईसीजी ने ये भी कहा है कि म्यांमार सेना की कार्रवाइयों से लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ रहा है और इससे बने हालात जिहादी समूहों के अनुकूल हैं।
 
जिहादी प्रोपेगैंडा
अल क़ायदा इन यमन (एक्यूएपी), अल-शबाब और तालिबान जैसे अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी समूहों ने नए लड़ाके भर्ती करने के लिए प्रोपागेंडा सामग्री जारी की है। कश्मीर में हाल ही में पैदा हुए अल क़ायदा समर्थक समूह 'अंसार ग़ज़वात-उल-हिंद' के प्रमुख ज़ाकिर मूसा ने भी इस मुद्दे पर बात की है। इस्लामिक स्टेट के समर्थकों ने भी एआरएस के समर्थन में ऑनलाइन बयान जारी कर म्यांमार के ख़िलाफ़ हिंसा का आह्वान किया है।
 
बाहर के ख़तरे
सिंगापुर के एस राजारतनम स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ ने चेतावनी जारी की है कि म्यांमार के रोहिंग्या संकट का असर दक्षिणपूर्वी एशिया के सुरक्षा हालात पर हो सकता है। सोशल मीडिया पर म्यांमार में जिहाद के समर्थन में इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में सामग्रियां साझा की गई हैं।
 
7 सितंबर को प्रकाशित एक शोध पत्र में इस्लामी समूहों के म्यांमार के ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी कर रहे लोगों का वीडिया भी शामिल किया है। इंडोनेशिया के इंस्टीट्यूट ऑफ़ पॉलिटिकल एनेलिसिस ऑफ़ कनफ्लिक्ट (आईपीएसी) ने चेतावनी दी है कि ये मुद्दा इस्लामिक स्टेट समर्थकों को बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मलेशिया में और लड़ाके भर्ती करने में मदद कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था में इंडोनेशिया में 800 और मलेशिया में 56,500 रोहिंग्या पंजीकृत हैं। माना जाता है कि इनकी वास्तविक संख्या ज्यादा है।
 
बढ़ रही है तादाद
एआरएसए और म्यांमार सुरक्षाबलों के बीच हुई झड़पों से भी इस समूह के बारे में जानकारियां मिलती हैं। एआरएसए ने अपने पहले हमले अक्तूबर 2016 में किए थे। अधिकारियों का मानना है कि इस समूह में चार सौ लड़ाके हो सकते हैं। म्यांमार का कहना है कि एआरएसए के हमले के बाद की गई जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने पिस्टलों, तलवारों और चाकुओं से लैस करीब तीन सौ लड़ाकों का सामना किया है।
 
म्यांमार का कहना है कि 25 अगस्त 2017 को हुए हमले में करीब साढ़े छह हज़ार लोगों ने हमलों में हिस्सा लिया था। रिपोर्टों के मुताबिक एआरएसए ने हमलों में आईईडी, बारूदी सुरंगों और ग्रेनेडों का इस्तेमाल किया है।
 
डेमोक्रेटिक वॉयस ऑफ़ बर्मा में प्रकाशित समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि समूह के अगस्त में किए गए हमले से पता चलता है कि सेना की बीते साल अक्तूबर में हुई कार्रवाइयों के बाद से युवा रोहिंग्या बड़ी तादाद में इस समूह से जुड़े हैं। स्थानीय लोगों के हवाले से कहा गया है कि अक्तूबर में सैन्य कार्रवाइयों के बाद से समूह ने गांवों में अपने दल बनाए और इससे जुड़े लोगों ने व्हाट्सऐप और वीचैट जैसे माध्यमों के ज़रिए एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखा।
 
पुराने हथियार
लेकिन अभी भी इस समूह का म्यांमार की सेना से कोई मुकाबला नहीं है- न तो संख्या में और न ही हथियारों के मामले में। एएफ़पी की एक रिपोर्ट में एक एआरएसए सदस्य के हवाले से कहा गया है कि समूह के नए साथियों को तलवारों, चाकुओं और डंडों तक का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।
 
बांग्लादेश पहुंचे समूह के सदस्यों ने एएफ़पी से कहा है कि उनके पास हथियार बेहद पुराने हैं और जब उन्हें लगा कि हमलों का कोई मतलब नहीं है तो वो बांग्लादेश चला आया। एक अन्य सदस्य ने कहा कि एआरएसए के पास बहुत कम ठीक हथियार हैं। म्यांमार ने अंतरराष्ट्रीय समूहों पर भी रोहिंग्या लड़ाकों को हथियार बनाने के लिए सामग्री मुहैया कराने के आरोप लगाए हैं। म्यांमार का कहना है कि रोहिंग्या लोगों ने खाद और स्टील पाइपों से आईईडी बनाए हैं।
 
लड़ने का दबाव
ऐसे संकेत भी हैं कि एआरएसए पुरुषों और जवानों को लड़ने के लिए मजबूर कर रही है। एनजीओ फोर्टीफाई राइट्स ने मोंगडॉ में एक युवा से किए गए साक्षात्कार के हवाले से कहा है कि एआरएसए ने सिर्फ़ महिलाओं और बच्चों को ही गांव छोड़ने दिया और पुरुषों को भागने पर जान से मारने की धमकियां दी गईं।
 
एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि उनके समूह को बांग्लादेश सीमा की ओर ले जा रहे गाइड को रोहिंग्या लड़ाकों ने पीटा था और समूह से कहा था कि वापस लौटो और सरकार से लड़ो। फोर्टीफ़ाई राइट्स के मुताबिक ऐसे आरोप भी हैं कि समूह ने सरकार के लिए जासूसी करने के आरोपों में लोगों की हत्याएं की हैं।
 
शरणार्थियों ने बताया है कि चरमपंथी युवाओं के छोटे-छोटे समूह हैं जिन्होंने नागरिकों जैसी पोशाकें पहनी हुई हैं। कई बार ये काली शर्ट पहने हुए होते हैं। इनके पास डंडे, छोटे चाकू और कभी-कभी तलवारें और आईईडी होते हैं। इस समूह से जुड़ने के बदले युवाओं को चाकू, डंडे और थोड़ा पैसा मिला है।