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Written By BBC Hindi
Last Updated : बुधवार, 15 नवंबर 2023 (11:11 IST)

छत्तीसगढ़ में धान और किसान किसकी लगाएंगे नैया पार: ग्राउंड रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ में धान और किसान किसकी लगाएंगे नैया पार: ग्राउंड रिपोर्ट - Paddy politics in Chhattisgarh assembly elections
-फ़ैसल मोहम्मद अली (बीबीसी संवाददाता, अछोटी ग्राम (दुर्ग), छत्तीसगढ़ से)
 
Paddy politics in Chhattisgarh: किसानों के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को धूल चटा चुकी कांगेस ने इस बार भी धान और किसान पर दांव लगा रखा था। लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी इस मैदान में कूद पड़े। इसके बाद धान और किसान छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बन गया है।
 
अमित शाह ने पहले चरण के मतदान यानी 7 नवंबर के ठीक 3 दिन पहले रायपुर में बीजेपी की सरकार बनने पर 3100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान ख़रीदने की 'मोदी गारंटी' दे डाली। कांग्रेस जैसे बीजेपी के ऐलान का ही इंतज़ार कर रही थी, उसने धान की सरकारी ख़रीद की दर को बीजेपी से 100 रुपए बढ़ाकर यानी 3200 रुपए प्रति क्विंटल देने की घोषणा कर दी।
 
किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने की बात कांग्रेस पार्टी पहले से ही कह रही थी। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी धान का सीज़न है। खेतों में चुनावी शोरगुल नहीं, हंसिये और धान के मिलन का संगीत सुनाई देता है। किसान धान की कटाई और ख़रीद केंद्रों पर फसल की तौल करवाने में व्यस्त हैं। लेकिन वो चुनावी बातों से बेख़बर नहीं दिखते।
 
धान पर राजनीति और किसान
 
अछोटी के किसान डोमार सिंह साहू कहते हैं, 'दोनों पार्टियां किसानों को अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश कर रही हैं, बीजेपी 3100 रुपए का रेट देने की बात कर रही है तो कांग्रेस 3200। ऐसे में किसानों का रुझान कांग्रेस की तरफ़ ही जाएगा।'
 
वहीं मन्नू लाल साहू मानते हैं कि ऐसा उनकी याद में पहली बार हो रहा जब दोनों दल एक दूसरे से बढ़कर पैसे देने की बात कर रहे हैं, क्या पता और भी कोई वादा कर लें।
 
ये पूछने पर कि मगर बीजेपी तो हर एकड़ 21 क्विंटल तक उपज 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से ख़रीदने की बात कर रही, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ़ 20 क्विंटल प्रति एकड़ का वादा किया है, तो किसान बीजेपी की ओर क्यों नहीं जा रहे, डोमार सिंह जवाब देते हैं, 'रमन सिंह ने किसानों के साथ धोखा किया था, 2 साल का बोनस नहीं दिया। जो सरकार किसानों के साथ होगा किसान उसी के साथ जाएगा।'
 
तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2013 के विधानसभा चुनावों के वक़्त वादा किया था कि बीजेपी की सरकार बनने पर किसानों को धान ख़रीदी पर प्रति क्विंटल 300 रुपए बोनस दिया जाएगा, सरकार बनी भी, लेकिन धान ख़रीदी पर बोनस बाद में बंद कर दिया गया।
 
किसानों से लेकर, विपक्षी दल और आरएसएस से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ इसके विरोध में सड़कों पर उतरे, लेकिन बात कहीं नहीं पहुंची। केंद्र में साल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आ गई, जिसके बारे में दावा किया जाता रहा है कि यह सरकार सब्सिडी ख़त्म करने के पक्ष में रही है।
 
हालांकि बीजेपी ने पिछले चुनाव के ठीक पहले बोनस का ऐलान कर भूल सुधार की कोशिश की, लेकिन तबतक मामला हाथ से निकल चुका था।
 
छत्तीसगढ़ में किसान आत्महत्या की दर
 
कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर पूरे मामले की पृष्ठभूमि बयान करते हुए कहते हैं, '2015 आते-आते प्रदेश में किसान आत्महत्या की दर बढ़ चुकी थी, अगले 2-3 सालों में छत्तीसगढ़ किसान आत्महत्या के मामले में देश के उन 4 राज्यों में गिना जाने लगा था जहां ये तादाद सबसे ज़्यादा थी।'
 
'किसानों का आक्रोश चरम पर था और वो सड़कों पर उतर आए थे, उसी समय कांग्रेस पार्टी ने 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान ख़रीदने की घोषणा कर दी और छत्तीसगढ़ में राजनीति की दिशा बदल गई।'
 
लंबे समय तक किसान आंदोलन से जुड़े रहे संकेत ठाकुर कहते हैं, 'साल 2018 के चुनावों के दौरान एक नारा लगा था 'लबरा राजा'किसानों के मन में बात घर कर गई थी कि इस लबरा राजा को बदल देना है।'
 
संकेत ठाकुर कुछ सालों पहले तक आम आदमी पार्टी के राज्य में अहम कार्यकर्ताओं में शामिल थे।
 
पिछले विधानसभा के चुनाव के समय कांग्रेस के नेताओं ने जनता को भरोसा दिलाने के लिए हर रास्ता अपनाया, मंच पर बैठकर गंगा जल हाथ में लेकर सौगंध खाई गई कि 'हमारी सरकार अगर आएगी तो दस दिनों के भीतर किसानों का क़र्ज़ माफ़ करेंगे।'
 
2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कुल 90 में से 68 सीटें हासिल हुईं, माना जाता है कि ये बड़े तौर पर क़र्ज़ माफ़ी की सौगंध और केंद्र सरकार द्वारा तय एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य से छह से 7 सौ रुपए ज़्यादा क़ीमत पर धान ख़रीदने के वायदे का नतीजा थी।
 
धान ख़रीद और कांग्रेस की जीत
 
दैनिक छत्तीसगढ़ के संपादक सुनील कुमार कहते हैं कि कांग्रेस की भूपश बघेल सरकार ने पहली कैबिनेट मीटिंग में क़र्ज़ माफ़ किया।
 
इसके अलावा वे मौजूदा सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हैं, 'धान की सरकारी ख़रीद देश भर में सबसे अधिक दाम पर हो रही है जिससे किसान ख़ुशहाल है। दूसरा, एक और ग़लत संदेश लोगों के बीच केंद्र सरकार की उस कोशिश से भी गया है जिसमें उसने एमएसपी से ज़्यादा पैसे देने को लेकर ये तक कह दिया कि अगर ऐसा जारी रहा तो वो छत्तीसगढ़ से चावल की ख़रीद नहीं करेगा, ये एक तरह से संघीय ढांचे पर बहुत बड़ी चोट थी।'
 
प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार ने धान के बोनस को राजीव न्याय योजना के तहत इनपुट कॉस्ट के तौर पर देना शुरु किया, जो 2 या 3 क़िस्तों में किसानों के बैंक खाते में पहुंचता है।
 
चुनाव घोषणा पत्र जारी करने के बीच धान ख़रीद पर अमित शाह ने ये भी वादा किया कि बीजेपी की सरकार किसानों को ख़रीद का पैसा एक मुश्त देगी, कांग्रेस सरकार की तरह क़िस्तों में नहीं।
 
अछोटी गांव में प्राथमिक स्कूल के पास हमारी मुलाक़ात चंद किसानों से होती है जिसमें अरुण कुमार भी शामिल हैं, हालांकि वो प्रदेश की कांग्रेस सरकार से कुछ बातों को लेकर ख़फ़ा हैं लेकिन कहते हैं कि 'किसान को जो दे रहा है उसी को मुद्दा बनाएंगे।'
 
महिला किसान मिलापा साहू को मौजूदा सरकार से दूसरी बार भी क़र्ज़ माफ़ी की उम्मीद है क्योंकि उन्होंने कॉपरेटिव सोसाइटी से क़र्ज़ ले रखा है।
 
किसानों के क़र्ज़ की माफ़ी का वादा कांग्रेस सरकार ने राज्य में चुनाव का ऐलान होने के फ़ौरन बाद ही कर दिया था।
 
कांग्रेस की क़र्ज़ माफ़ी और बीजेपी की राजनीति
 
राज्य के पूर्व कृषि मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल कांग्रेस की क़र्ज़ माफ़ी स्कीम को एक बड़ा दिखावा क़रार देते हैं।
 
रायपुर के अपने चुनावी कार्यालय में देर रात बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, 'भूपेश बघेल सरकार ने जो लंबी और मध्य अवधि के किसानों के श्रृण हैं या फिर जो क़र्ज़ उन्होंने सरकारी बैंकों से ले रखे हैं उन्हें तो माफ़ नहीं किया है। कर्ज़ जो माफ़ हुआ है वो मुख्यत: जो फ़सल के चलते किसान लेते हैं वो हैं।'
 
उन्होंने यह भी बताया, 'इसी तरह धान की ख़रीद होती है 22 लाख किसानों से जबकि प्रदेश में किसानों की कुल संख्या 42 लाख है तो बाक़ी के बचे 20 लाख को ये लाभ नहीं मिल पा रहा है यही बीस लाख बीजेपी को वोट देंगे।'
 
बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस ने जो नीति किसानों को लेकर अपनाई है वो बीजेपी की ही पुरानी नीति है। ख़रीद पर अतिरिक्त राशि बीजेपी सिर्फ़ 2 साल नहीं दे पाई थी।
 
वो कहते हैं कि बीजेपी ने धान को लेकर जो वादा किया है उससे किसानों को अधिक फ़ायदा होगा, 'हमने 2 साल का बक़ाया बोनस देने का वादा भी किया है उससे किसानों को जो पैसा मिलेगा वो क़र्ज़ माफ़ी से ज़्यादा होगा। साथ ही जहां कांग्रेस के वायदे की दर से धान की बिक्री से किसानों को जितना पैसा मिलेगा उससे अधिक दाम हमारी सरकार बनने पर उनको मिल पाएगा क्योंकि हम एक एकड़ पर 21 क्विंटल तक धान ख़रीदने की बात कर रहे हैं।'
 
आठ गांवों की सहकारी समीति नारधा में धान की तौल जारी है। धौर गांव के फूलेश्वर साहू की कुल तौल चौबीस क्विंटल चालीस किलो की हुई जिसके पैसे 3 से 4 दिनों में उनके बैंक खाते में आ जाएंगे। हालांकि फूलेश्वर साहू नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं लेकिन छत्तीसगढ़ चुनाव में उनका मन कहीं और है।
 
'जो आगे काम कर चुका है उसी पर भरोसा।' वो साफ़-साफ़ कहते हैं।
 
लेकिन वादा तो इस बार नरेंद्र मोदी के नाम पर दिया गया है इस सवाल के जवाब में फूलेश्वर साहू कहते हैं, 'ये नरेंद्र मोदी का चुनाव थोड़े ही है, जब वो होगा तो उनको देंगे।'
 
धान की फसल पर राजनीति की रोटी
 
मुड़पाड़ ग्राम के मान सिंह साहू बताते हैं, 'किसान बढ़-चढ़कर धान की फ़सल कर रहे हैं, रेट बढ़ गया है, किसानों को धान से फ़ायदा हो रहा है तो वो ख़ूब धान लगा रहा है, धूर भर ज़मीन भी छोड़ने को किसान तैयार नहीं है।'
 
नारधा से तक़रीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर है धान ख़रीदी केंद्र मुरमुंदा। शाम होने को है, समिति के बंद होने का समय।
 
समिति में सहायक के तौर पर काम कर रहे टिकेंद्र कुर्रे बताते हैं कि उनकी समिति के अंतर्गत आने वाले 3 गांवों में ही धान की खेती में साल भर में सौ हैक्टेयर से अधिक की बुआई का फ़र्क़ आया है। पिछले साल धान की खेती का कुल रक़बा 600 हैक्टेयर के आसपास था जबकि इस सीज़न में फ़सल की बुआई 716 हैक्टेयर पार कर गई है।
 
सरकार द्वारा धान ख़रीद का लक्ष्य भी इन 3 गावों के लिए 35.385 क्विंटल है जबकि पिछले सीज़न में 24,700 क्विंटल की ख़रीद हुई था।
 
संकेत ठाकुर एक ही फ़सल -धान पर अधिक फ़ोकस को लंबे समय के लिए घातक बताते हैं, 'पहले खरीफ़ में सोयाबीन, सूरजमुखी वग़ैरह लगाया जाता था लेकिन चूंकि धान पर पैसे अधिक मिल रहे तो किसान कुछ और लगाना नहीं चाहता। रबी में भी वो गर्मी का धान लगा रहा है तो फ़सल चक्र ख़त्म होने की ओर बढ़ रहा है। स्थिति वही हो रही है जो कुछ इलाक़ों में कपास की लगातार खेती को लेकर हुई।'
 
लेकिन वो ये भी मानते हैं कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को गति मिली है।
 
पिछले सालों में धान की ख़रीद से जो 20 से 25 हज़ार करोड़ रुपए किसानों के हाथ में आए हैं वो बाज़ार में आया है जिससे बाज़ार यानी अर्थव्यवस्था को गति मिली है, बाज़ार में पैसा दिखता है।
 
उदाहरण देते हुए वो कहते हैं, 'आप देखेंगे कि छोटे-छोटे क़स्बों तक में मोटरसाइकिल की डीलरशिप खुल गई है, जबकि ये कभी रायपुर में ही हुआ करती थी।'
 
छत्तीसगढ़ की 70 प्रतिशत जनता रोज़ी-रोटी के लिए खेती पर आश्रित है इसलिए राजनीतिक दलों को लगता है कि किसान समर्थक ऐलानों से जीत पक्की है, मगर गांवों में भी लोगों के अपने मुद्दे हैं।
 
कांग्रेस सरकार की किस बात से नाराज हैं लोग
 
अछोटी गांव में ही तालाब के पास चौराहे पर हमें विश्वनाथ साहू मिलते हैं जो कांग्रेस सरकार के शराबबंदी के वायदे को पूरा न करने को लेकर बेहद नाराज़ हैं और कहते हैं कि चुनाव में पलड़ा बीजेपी का भारी रहेगा।
 
एक किसान का दावा था कि किसानों को जो फ़ायदा मिला है वो खेतिहर मज़दूरों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
 
लेकिन भूपेश बघेल की छत्तीसगढ़ सरकार को अपनी धान और किसान नीति पर इस क़दर भरोसा है कि हाल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक खेत में किसान बनने की कोशिश करते दिखे।
 
तो क्या कांग्रेस इस चुनाव में किसानों के भरोसे अपना बहुत कुछ दांव पर लगा रही है?
 
सुनील कुमार कहते हैं, 'पिछली बार यानी साल 2018 में बीजेपी कांग्रेस के वोटों का फ़ासला दस फ़ीसदी था। उससे पिछले चुनाव में ये दूरी पौन फ़ीसदी वोटों की थी। पौन प्रतिशत की दूरी में दोनों दलों के बीच दस सीटों का अंतर था।'
 
'इस बार कहा जा रहा है कि दोनों मुख्य दलों के बीच वोटों का फ़ासला 4 प्रतिशत का होगा वो सीटों को किस ओर ले जाएगा ये निश्चित तौर पर कहना बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि मैदान में वो लोग भी हैं जो महज़ वोटों का कुछ हिस्सा काटेंगे। लेकिन इस सबके बीच एक बात पक्की है न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ का ये चुनाव बल्कि आनेवाले कई चुनाव के बाद सरकारें खेतों से ही उगेंगी।'
 
सुनील कुमार एक बात को लेकर बहुत निश्चित हैं कि बीजेपी की इस चुनाव में हार-जीत किसानों को लेकर उसकी नीतियों में बड़ा बदलाव ला सकती है।
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