मोहित कंधारी (जम्मू से)
"मेरा भाई निहत्था था। वो कोई क्रिमिनल नहीं था। उस के पास कोई हथियार नहीं था। इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच वो डॉक्टर फ़ारूक अब्दुल्ला के घर के अन्दर कैसे पहुंच गया। उसको वहां किस ने बुलाया था? उस के सीने पे गोली क्यूँ मारी? उस को गिरफ़्तार क्यूँ नहीं किया? उसे पकड़ जाँच-पड़ताल क्यों नहीं की गई?"
इतने सारे सवाल पूछते हुए मुर्फ़ाद शाह की बड़ी बहन शफ़िया, फूट फूट कर रोना शुरू कर देती हैं। हालांकि इतने गहरे सदमे के बावजूद भी वो सवाल पूछना बंद नहीं करती हैं। वो सिर्फ़ एक ही मांग दोहरा रहीं हैं, "मुझे मेरे भाई के क़ातिल का नाम बताओ।"
शनिवार की सुबह जैसे ही उन्हें पता चला कि उनके छोटे भाई की पूर्व मुख्यमंत्री और श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद डॉक्टर फ़ारूक अब्दुल्लाह के जम्मू में भठिंडी स्थित आवास पर संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है, उन्होंने वहां पहुँच कर मामले की सच्चाई जानने की कोशिश की।
लेकिन 24 घंटे से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी उनके हाथ अभी तक कुछ नहीं लगा है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस महानिदेशक डॉक्टर एसपी वैद ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही जम्मू के ज़िला आयुक्त रमेश कुमार ने भी मैजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं।
मुर्फ़ाद शाह के परिजनों का ग़ुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ है। रविवार को मुर्फ़ाद शाह को सुपुर्दे ख़ाक करने से पहले भी बड़ी संख्या में उनके परिजनों ने उनके ताबूत को सड़क के बीच रख कर इंसाफ़ की गुहार लगाई। उनके साथ बड़ी संख्या में परिवार की महिलाएं भी सड़क के बीच बैठ कर सरकार से इंसाफ़ मांगती रहीं। उन्होंने रियासत के गवर्नर एन एन वोहरा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी इंसाफ़ माँगा।
परिजनों ने सरकार को कटघरे में खड़े करते हुए कहा कि पहले सुरक्षाबलों की गोली का शिकार कश्मीर घाटी के युवा ही होते थे, लेकिन अब जम्मू में भी कोई महफ़ूज़ नहीं है। उन्होंने कहा अगर उनके परिवार को समय से इंसाफ़ नहीं मिला तो जम्मू संभाग में बाकी ज़िलों में भी उनके परिवार के लोग धरना प्रदर्शन शुरू करेंगे और इंसाफ़ मांगेगे।
मुर्फ़ाद शाह के मौसेरे भाई माजिद हुसैन ने बीबीसी हिंदी को बताया, "हम घटना की न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। जब तक सरकार इस की घोषणा नहीं करती हम चैन से नहीं बैठेंगे।"
उन्होंने कहा कि वो ख़ुद वक़ील हैं और ज़रूरत पड़ी तो वे ख़ुद इंसाफ़ के लिए लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने पुलिस के बयान को झूठ बताते हुए कहा कि वो लोग मुर्फ़ाद शाह के असली क़ातिलों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने पुलिस के अफ़सरों से पूछा कि डॉक्टर फ़ारूक अब्दुल्लाह तो ज़ेड प्लस की श्रेणी में आते हैं तो आख़िर कैसे उनका भाई मुख्य द्वार से 100 मीटर अंदर उनके घर की लॉबी तक जा पहुंचा? उनकी कार 15 फुट ऊँचे लोहे के मज़बूत गेट को बिना तोड़े अन्दर कैसे गई और उस पर सिर्फ़ खरोंचे आई हैं?
क्या कहना है पुलिस का
जम्मू के पुलिस अधिक्षक डॉक्टर विवेक गुप्ता ने बताया, "26 वर्षीय मुर्फ़ाद शाह शनिवार सुबह 10 बजकर 13 मिनट पर अपनी तेज़ रफ़्तार एसयूवी कार में सवार हो कर डॉक्टर फ़ारूक अब्दुल्ला के घर के दरवाज़े से जा टकराया था। उसने जबरन घर में घुसने का प्रयास किया और चेतावनी दिए जाने पर भी जब उसने सुरक्षाबलों की एक न सुनी तो मौक़े पर तैनात जवानों ने उन पर गोली चला दी जिससे उनकी मौत हो गयी थी।"
केंद्रीय सुरक्षा बल ने भी अलग से बयान जारी कर कहा कि चिनौर निवासी मुर्फ़ाद शाह ने जब जबरन पूर्व मुख्यमंत्री के घर के अंदर घुसने का प्रयास किया तो गाड़ी सीधे गेट से टकराते हुए अंदर घुस गई। कार का दरवाज़ा खोल वो सीधे कमरे की ओर भागा। सीढ़ियों के पास उसे रोकने का प्रयास किया तो उस ने हाथापाई की। इस में सीआरपीएफ के एक जवान को चोट लगी। उसके बाद उस पर गोली चलायी गई जिससे उसकी मौत हो गई।
घटना के बाद हर कोई यह जानना चाहता था कि मुफ़ार्द शाह कौन है और वो डॉक्टर अब्दुल्ला के घर क्या कर रहा था। घटना के समय न तो डॉक्टर अब्दुल्ला और न ही उनके पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह अपने आवास पर मौजूद थे।
प्रारंभिक जांच में मुफ़ार्द शाह के पास से कोई भी हथियार या उनकी कार से विस्फ़ोटक सामान बरामद नहीं हुआ था। मुफ़ार्द शाह का परिवार पुंछ ज़िले की मेंधड़ तहसील का रहने वाला है। 1990 के आस-पास उनका परिवार जम्मू आ कर बस गया था और उनके पिता स्टेट फॉरेस्ट कॉर्पोरेशन के मुलाज़िम हैं।
'मेरा भाई रोज़ नमाज़ पढ़ता था'
मुफ़ार्द शाह की बड़ी बहन शफ़िया ने बीबीसी से कहा, "मेरा भाई बहुत अच्छा था। वो सुबह नमाज़ पढ़ता था और उसके बाद जिम जाता था। जिम से वापिस आकर वो नाश्ता करता था। शनिवार सुबह भी उस ने यही किया। नमाज़ पढ़ कर वो जिम चला गया। जिम से निकल कर वो घर नहीं आया। रास्ते में उसे भाई मिला था और पूछे जाने पर उसने बताया था कि उसे किसी ने बुलाया है।"
शाफ़िया ने बताया, "मुझे इस बात का कुछ नहीं पता कि मेरा भाई वहां क्यूँ गया।" इतना बोलते बोलते वो रो पड़ीं और एक बार फिर सवाल पूछने लगी, "मेरे भाई को अगर टांग पे गोली मारते तो वो बच जाता, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यूँ नहीं किया?"
शफ़िया ने बताया कि उनका भाई कॉलेज में सेकंड इयर का छात्र है और साथ में पारिवारिक काम संभालता है। उनके परिवार के लोग गन विक्रेता के काम से जुड़े हैं और मुफ़ार्द शाह भी अपने परिवार के काम-काज की देखभाल कर रहा था।
शाफ़िया से जब यह पूछा गया कि क्या उनके भाई को किसी ने इसी सिलसिले में डॉक्टर अब्दुल्ला के घर बुलाया था तो वो जवाब में कहती हैं ऐसा संभव हैं, लेकिन वे पूरे यक़ीन के साथ यह बात नहीं बोल सकती। उनका कहना था कि अगर उनके भाई के मोबाइल फ़ोन की जांच पड़ताल होगी तो शायद इस सवाल का जवाब भी मिल जाए।
अपने भाई को याद करते हुए उन्होंने कहा कि मुफ़ार्द का मां से बहुत लगाव था। मुफ़ार्द शाह के पिता इम्जाद हुसैन शाह ने कहा, "मुझे अभी तक इस बात का यक़ीन नहीं हो पा रहा कि आख़िर मेरा बेटा डॉक्टर फ़ारूक अब्दुल्ला के घर कैसे पहुंचा। ये जांच का विषय है। हम सरकार से यही अपील कर रहे हैं कि वो मामले की निष्पक्ष जांच करवाए और हमारे बेटे के मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों को कड़ी सज़ा दिलवाएं।"
परिजनों ने पुलिस के दावों पर उठाए सवाल
परिवार के सदस्यों ने रविवार को राज्य पुलिस और सीआरपीएफ़ के बयान को साज़िश करार देते हुए कुछ सवालों के जवाब मांगे हैं। मुफ़ार्द के परिजनों का कहना है कि अगर केंद्रीय सुरक्षा बल के अफसर कह रहे है कि तेज़ रफ़्तार एसयूवी कार पर सवार हो कर मुफ़ार्द शाह डॉक्टर फ़ारूक अब्दुल्लाह के दरवाज़े से टकराया था तो गाड़ी के अंदर का एयर बैग क्यों नहीं खुला? अगर गाड़ी तेज़ रफ़्तार थी तो गाड़ी का बम्पर टूटा क्यों नहीं या उस पर डेंट क्यों नहीं पड़ा? ना ही गाड़ी का एक भी शीशा टूटा।
अगर मुफ़ार्द के पास कोई हथियार नहीं था तो उस के सीने पे गोली क्यूँ मारी गई? उस को ज़िंदा पकड़ कर पूछताछ क्यों नहीं की गई?
परिजनों ने कहा कि अगर पुलिस पूर्व मुख्यमंत्री के घर के गेट के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज, सभी जवानों और उसके बेटे के मोबाइल की कॉल डिटेल निकाले तो साज़िश का पर्दाफ़ाश जरूर होगा।