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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 3 जून 2022 (07:52 IST)

मोदी सरकार को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की ज़रूरत क्यों नहीं है?

मोदी सरकार को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की ज़रूरत क्यों नहीं है? - modi government and population control law
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
23 जुलाई 2021 : ''मोदी सरकार नेशनल फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम के जरिए ही भारत में जनसंख्या को नियंत्रित रखने का काम कर रही है, जो स्वैच्छिक है और जनता को परिवार नियंत्रण के कई विकल्प देती है। मोदी सरकार 'टू चाइल्ड पॉलिसी' लाने पर कोई विचार नहीं कर रही और ना ही किसी दूसरी नीति पर।''
 
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में ये बात कही थी। उनके इस बयान को एक साल भी नहीं बीता। मोदी सरकार के दूसरे मंत्री का जनसंख्या नियंत्रण क़ानून को लेकर एक नया बयान सामने आया है।
 
31 मई 2022 : खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री प्रहलाद पटेल ने रायपुर में कहा कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए एक क़ानून जल्द लाया जाएगा।
 
संवाददाता सम्मेलन के दौरान उनसे जनसंख्या नियंत्रण क़ानून के बारे में पूछा गया था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा, "इसे जल्द लाया जाएगा, चिंता न करें। जब इस तरह के मज़बूत और बड़े फैसले लिए गए हैं तो बाकी को भी (पूरा) किया जाएगा।"
 
यानी 10 महीने के अंतराल में मोदी सरकार के दो मंत्रियों के एक ही मुद्दे पर दो अलग अलग बयान सामने आए हैं। ये बयान ये सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि इन 10 महीनों में ऐसा क्या बदल गया कि सरकार के मंत्री ने अपना स्टैंड ही बदल दिया। क्या वाकई भारत को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की ज़रूरत है भी?
 
जनसंख्या से जुड़े जानकारों का मानना है कि इस वक़्त केंद्र सरकार को ऐसे किसी क़ानून की ज़रूरत नहीं है। बीबीसी ने इस मुद्दे पर दो जानकारों से बात की, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया की पूनम मुतरेजा से और भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी से।
 
एसवाई कुरैशी ने हाल ही में इस मुद्दे पर एक किताब भी लिखी है - 'द पॉपुलेशन मिथ : इस्लाम, फ़ैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया'। दोनों जानकारों का मानना है कि भारत की जनसंख्या को लेकर कई भ्रम हैं, जिन्हें दूर करने की ज़रूरत है।
 
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए एसवाई कुरैशी ने कहा, भारत को जनसंख्या नियंत्रण पर क़ानून की ज़रूरत आज से 30 साल पहले थी। आज नहीं। जनसंख्या वृद्धि दर, प्रजनन दर, रिप्लेसमेंट रेशियो और गर्भनिरोधक के तरीकों की डिमांड सप्लाई का अंतर बताता है कि सरकार को जनसंख्या नियंत्रण पर क़ानून की ज़रूरत नहीं है।
 
जनसंख्या तेज़ी से नहीं बढ़ रही है
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ( एनएफएचएस) किसी भी राज्य में प्रजनन दर, फैमिली प्लानिंग, मृत्यु दर, जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य से जुड़े ताज़ा आँकड़े उपलब्ध कराने के नज़रिए से कराया जाता है।
 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आँकड़े बताते हैं कि हर दशक में जनसंख्या बढ़ने की दर कम हो रही है।
प्रजनन दर में भी कमी आ रही है और सभी धर्म के लोगों के बीच ऐसा हो रहा है।
 
एनएफएचएस 5 के आँकड़ों के मुताबिक़ भारत में राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर 2।1 से कम हो गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर (रिप्लेसमेंट रेशियो) से कम हो गई है।
 
प्रजनन दर एक अहम पैमाना है, जिससे जानकार पता लगाते हैं कि किसी राज्य में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है या नहीं।
 
रिप्लेसमेंट रेशियो 2.1 का मतलब है, दो बच्चे पैदा करने से पीढ़ी दर पीढ़ी वंश चलता रहेगा। (प्वाइंट वन इसलिए क्योंकि कभी कभी कुछ बच्चों की मौत छोटी उम्र में हो जाती है।)
 
रिप्लेसमेंट रेशियो का 2 से नीचे जाना, आगे चल कर चिंता का सबब भी बन सकता है। एसवाई कुरैशी कहते हैं कि केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि रिप्लेसमेंट रेशियो 2.1 के आसपास ही बना रहे।
 
प्रजनन दर कितनी चिंताजनक
एनएफएचएस 5 के आँकड़े देखें तो बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर वो राज्य हैं जहाँ प्रजनन दर 2.1 से अब भी ज़्यादा है।
 
केंद्र सरकार को कुछ करना है तो इन राज्यों में करने की ज़रूरत है, ताकि अगले पाँच साल में इन राज्यों में भी प्रजनन दर को राष्ट्रीय औसत के करीब लाया जा सके।
 
ये काम फैमिली प्लानिंग के प्रोग्राम के ज़रिए ही बाक़ी राज्यों ने हासिल कर लिया है तो ऊपर के पाँच राज्य भी प्रजनन दर कम कर सकते हैं। ऐसा एसवाई कुरैशी का मानना है।
 
गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की चाहत और उपलब्धता में फासला एक और भ्रम परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने को लेकर है।
 
पूनम मुतरेजा कहती हैं, एनएफएचएस 5 के आँकड़े ये भी बताते हैं कि भारत में 9.4 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो परिवार नियोजन के तरीके अपनाना चाहती हैं लेकिन उनके पास तरीके उपलब्ध नहीं हैं। यानी सरकार के पास ये एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ ध्यान देने की ज़रूरत है।
 
महिलाओं की इस बेसिक ज़रूरत को उन तक पहुँचाने का काम अगर केंद्र और राज्य सरकार मिलकर करें तो भी जनसंख्या क़ानून की ज़रूरत भारत को नहीं पड़ेगी।
 
इसके साथ ही सरकारों को महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर ध्यान देने की ज़रूरत है। शिक्षित महिलाएं परिवार नियोजन के तरीके अपनाने में ज़्यादा आगे है, ऐसा आँकड़े बताते हैं।
 
मुसलमानों में प्रजनन दर
एसवाई कुरैशी कहते हैं, "भारत में जनसंख्या वृद्धि को लेकर सबसे बड़ी भ्रांति ये है कि मुसलमान ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं और उनकी वजह से जनसंख्या ज़्यादा बढ़ रही है। लेकिन ये पूरी तरह से तथ्य से परे है।
 
एनएफएचएस के पिछली पाँच रिपोर्ट के आँकड़े बताते हैं कि हिंदू और मुसलमानों में बच्चे पैदा करने का अंतर एक बच्चे से ज़्यादा कभी नहीं रहा। साल 1991-92 में ये अंतर 1.1 का था, इस बार ये घट कर 0.3 का रह गया है। ये बताता है कि मुस्लिम महिलाएं तेजी से फैमिली प्लानिंग के तरीके अपना रही हैं। गर्भनिरोधक तरीकों की डिमांड भी उनमें ज़्यादा है जो पूरी नहीं हो रही।
 
कम बच्चे तो खुशहाल देश
चीन की बात की जाए तो वहां की 'एक बच्चा नीति' दुनिया के सबसे बड़े परिवार नियोजन कार्यक्रमों में से एक है। इस नीति की शुरुआत साल 1979 में हुई थी और ये क़रीब 30 साल तक चली। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़, चीन की फर्टिलिटी रेट 2.81 से घटकर 2000 में 1.51 हो गई और इससे चीन के लेबर मार्केट पर बड़ा प्रभाव पड़ा।
 
चीन की सरकार को अपनी एक बच्चा नीति पर पुनर्विचार करना पड़ा। इस वजह से भी भारत को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की अभी ज़रूरत नहीं है।
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